दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती आई एक ही घर, मना जश्
्रहरविद्र सिंह के यहां 13 साल बाद तीन बेटियों की किलकारियां गूंजी। जश्न इतना कि अस्पताल से लेकर गांव तक को सजाया गया।
बेटियां बोझ हैं। बेटों से ही वंश चलता है। इस दकियानुसी सोच पर प्रहार हुआ है रटौली गांव में। हरविद्र सिंह के यहां 13 साल बाद तीन बेटियों की किलकारियां गूंजी। जश्न इतना कि अस्पताल से लेकर गांव तक को सजाया गया। सजाई हुई गाड़ियों से तीनों बेटियों को लेकर गए। आगे बैंड बज रहे थे। हर कोई जश्न के बारे पूछ रहा था। सिंह की पत्नी सर्वजीत कौर भी तीन बेटियों के जन्म से बेहद खुश थीं। जुबां पर यही था कि हमें तो भगवान ने एक साथ तीन खुशियां दी। हमारी किस्मत बहुत अच्छी है कि घर में तीन देवियां आई। इनकी खुशी उन लोगों के लिए भी सीख है जो बेटियों के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं। कन्या को जन्म देने पर महिला को प्रताड़ित किया जाता है। आए दिन इस तरह के केस पुलिस के पास व कोर्ट में आते हैं। यदि सभी लोग हरविद्र की तरह बेटियों के जन्म पर जश्न मनाएं तो समाज में निश्चित तौर पर बदलाव आएगा। क्योंकि वह बेटा बेटी में कोई अंतर नहीं मानते हैं। इस रिपोर्ट पर सभी की निगाह
ट्विन सिटी में स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। जन प्रतिनिधि भी खुलकर विरोध कर रहे हैं। व्यवस्था में सुधार के लिए गत दिनों ट्विन सिटी के कई वार्डों में स्ट्रीट लाइटों को एलइडी में बदलने की कवायद भी शुरू हुई, लेकिन एक कदम बढ़ने से पहले भी आरोप-प्रत्यारोपों में घिर गई। मामला सीएम के दरबार तक पहुंचा। जांच के लिए कमेटी भी गठित कर दी गई ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। अब सभी की निगाह कमेटी की रिपोर्ट पर है। गाज किस पर गिरेगी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इस मामले को लेकर अधिकारी भी कम चितित नहीं है। क्योंकि मामला बड़ा है। हर कोई सच्चाई से वाकिफ होना चाहता है। स्ट्रीट लाइटों का काम रुकने के कारण शहर की गलियों में अंधेरा छा जाता है। क्योंकि यहां लगी लाइटें पुरानी होने के कारण जवाब दे चुकी हैं। अधिकांश खराब पड़ी हैं।
अब नहीं तो कब चेतेंगे साहब
मानसून सीजन सिर पर है। रुक-रुककर बारिश भी जारी है, लेकिन नालों के हालात ठीक नहीं है। दो बार उच्चाधिकारी दौरा कर चुके हैं। बावजूद इसके कचरे से अटे व टूटे नाले नगर निगम अधिकारियों व कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं। शहरवासी चितित हैं। सोच रहे हैं कि अफसर अब नहीं चेते तो कब चेतेंगे। बारिश के दिनों हर बार जलभराव की स्थिति पैदा होती है। शायद ही कोई ऐसी कॉलोनी होगी जहां घरों व दुकानों में पानी न घुसता हो। नीचले इलाकों में हालात अधिक खराब देखे जाते हैं। घरों में रखा सामान खराब हो जाता है। बचाव के लिए अधिकारी बड़े-बड़े दावे करते हैं। इस बार भी कर रहे हैं। लेकिन हकीकत सभी के सामने है। जगाधरी के मुख्य नाले गंदगी व गाद से अटे पड़े हैं। ऐसे हालातों में पानी की निकासी नहीं हो पाएगी। अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए। ताकि शहर सुरक्षित रहे। अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत
समय का पहिया कब बिगड़ जाए। किस पर भारी पड़ जाए। कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि साकारत्मक रहते हुए हमेशा इस बात को याद रखें तो बेहतर हैं। भ्रम टूटते भी समय नहीं लगाता। अब ज्यादा दिक्कत भी उसी को होती है जो जमीं पर पैर नहीं रखते। पांव के नीचे जमीन हो तो गिरने की नौबत भी न आए। समय जब बदला तो साहब की अचानक कुर्सी छूट गई। दफ्तर बदलने का दर्द इतना हुआ कि अब दवाई लेते हुए दौड़ लगा रहे हैं। कभी धर्मनगरी तो कभी मेटल नगरी में चक्कर लग रहे हैं। वहां भी जाने में कोई संकोच नहीं है जिनको मन से पंसद ही नहीं करते थे। दवाई देने वाले और लाइन में खड़े लोग भी इस बदलाव से हैरत में है। कहते हैं कि जमीन पर संभल कर चले तो पैर में मोच ही क्यों आए। कैबिनेट मंत्री कहते हैं कि तबादले के बाद मेरे पास आए थे यह सच है। कहा गया है कि यदि पहले से ही परहेज रखे तो बड़ी से बड़ी बीमारी पर भी काबू किया जा सकता है। जब जागे तभी सवेरा है।