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डेथ लाइन बन गई, 182 गांवों की लाइफलाइन, अब से पहले 61 गवां चुके जान

चार बार पार्षद रहे गुलशन अरोड़ा की मौत से परिवार में मातम छा गया। रविवार को गमगीन माहौल में उनका अंतिम संस्कार कर दिया। सरकार की इस अनदेखी का दंश अब से पहले 60 परिवार और झेल चुके हैं लेकिन आज अब तक इस दिशा में कोई समाधान नहीं हो पाया। जबकि चारों विधान सभा से विधायक सत्ता में हैं। जगाधरी विधायक तो विधानसभा अध्यक्ष हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:39 AM (IST)
डेथ लाइन बन गई, 182 गांवों की लाइफलाइन, अब से पहले 61 गवां चुके जान
डेथ लाइन बन गई, 182 गांवों की लाइफलाइन, अब से पहले 61 गवां चुके जान

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : चार बार पार्षद रहे गुलशन अरोड़ा की मौत से परिवार में मातम छा गया। रविवार को गमगीन माहौल में उनका अंतिम संस्कार कर दिया। सरकार की इस अनदेखी का दंश अब से पहले 60 परिवार और झेल चुके हैं, लेकिन आज अब तक इस दिशा में कोई समाधान नहीं हो पाया। जबकि चारों विधान सभा से विधायक सत्ता में हैं। जगाधरी विधायक तो विधानसभा अध्यक्ष हैं। 182 गांवों का है संबंध

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शहर की सड़कों पर वाहनों के दबाव और लगातार हो रहे हादसों को नियंत्रित करने के लिए बना कलानौर-कैल बाइपास डेथपास बनकर रह गया है। 23 किलोमीटर लंबे इस बाइपास पर मौत के आठ कट खुले हैं। इनसे क्रासिग करते समय जान सांसत में रहती है। कब कौन सा वाहन अपने चपेट में ले ले, कुछ कहा नहीं जा सकता। अंडरपास या ओवरब्रिज न होने के कारण यहां हर दिन हादसे हो रहे हैं। बता दें कि जिले सहित करनाल के 182 गांव ऐसे हैं, जिनसे लोग अपने वाहनों के जरिए इन कटों को क्रॉस करते हैं। अब से पहले 61 लोग यहां जान गंवा चुके हैं और सैकड़ों लोग चोटिल हो गए। 32 गांवों से गुजर रहा हाईवे

कलानौर से भंभौली तक बाईपास की लंबाई 23 किलोमीटर है और यह 32 गांवों से होते हुए गुजर रहा है। भंभौल से वाया शाहा और बरवाला होते हुए पंचकूला पहुंचेगा। इस मार्ग में एक स्टेट हाईवे, दो नहरों और एक रेलवे लाइन पर फ्लाईओवर बनाया गया है। पीडब्ल्यूडी व मार्केट कमेटी की सड़कों की क्रासिग पर ओवरब्रिज व अंडरपास नहीं दिए गए हैं। नहीं सुनीं क्षेत्र के लोगों की आवाज

ट्रैफिक सिस्टम को दुरुस्त और लगातार हो रहे हादसों को गंभीरता से लेते हुए 2002 में बाईपास बनाने की घोषणा की। हुड्डा सरकार में 2010 में कंस्ट्रक्शन प्रक्रिया शुरू हुई। मुआवजे को लेकर विरोध व सरकार का कंपनी से मतभेद होने के कारण काम शुरू नहीं हुआ। एनओसी में रुकावट व अन्य दिक्कतों के चलते कंपनी काम छोड़ कर चली गई। 2015-16 में गुजरात की कंपनी ने टेंडर लिया और 2018 में काम पूरा हुआ। लगा रहता दिनभर तांता

सुबह 10 बजे तक और शाम को चार बजे के बाद सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ जाता है। कुरुक्षेत्र-सहारनपुर हाईवे और कुरुक्षेत्र-चंडीगढ़ हाईवे से होकर गुजरने वाले वाहन भी अब बाईपास से ही गुजर रहे हैं। उप्र व पंजाब की ओर जाने वाले सभी वाहन यहीं से गुजरते हैं। गति की कोई सीमा नहीं है। ऐसे में क्रासिग के समय हादसों की आशंका और भी बढ़ जाती है। ओवरब्रिज या अंडर पास ही समाधान

कलानौर से कमालपुर रोड, मंडोली अकालगढ़ रोड, दुसानी-तिगरी रोड, खूजरी रोड, जयपुर-अलाहर रोड, हरनौल रोड, सुढल-सुढैल रोड व कैल की माजरी रोड पर अंडरपास या ओवरब्रिज होना जरूरी है। भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों ने भी इस मार्ग पर ओवर ब्रिज बनाने की मांग उठाई थी। पदाधिकारी यहां फ्लाई ओवर की मांग को लेकर सीएम, स्पीकर के माध्यम से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी व एनएएचआइ के अधिकारियों से मिल चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं हुआ। फोटो : 23

सुरक्षा की चिता नहीं

बरसान निवासी विनोद कुमार का कहना है कि बाइपास बनाते समय सुरक्षा की चिता नहीं की गई। नहर, रेलवे ट्रैक व एसके रोड पर ही अंडर पास दिया है, लेकिन बाकी जगह हादसों के कट खोल दिए गए हैं। यहां से गुजरते समय मुट्ठी में जान रहती है। अधिकारियों को इस बारे संज्ञान लेना चाहिए। हर दिन हो रहे हादसे

जठलाना निवासी सेठ जय प्रकाश का कहना है कि वह हर दिन यमुनानगर शहर में आते हैं लेकिन जब से ये बाइपास शुरू हुआ है तब से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। बाइपास पर मांग के बावजूद अंडरपास नहीं दिए गए। इसके कारण हर दिन हादसे हो रहे हैं। करेहड़ा सहित अन्य सभी कटों पर अंडरपास की सुविधा जरूरी है। वाहनों का लगा रहता तांता

जठलाना निवासी उमेश गर्ग का कहना है कि खजूरी रोड पर वाहनों की संख्या बहुत अधिक है। अंडर पास न होने के कारण हर दिन हादसे हो रहे हैं। वाहन आपस में भिड़ रहे हैं। बाईपास क्रास करने से पहले कई बार सोचना पड़ता है। वाहनों चालकों की सुरक्षा को देखते हुए यहां अंडरपास या ओवरब्रिज की आवश्यकता है।


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