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Chaitra Navratri 2024: ऊंचे पर्वत की गोद में विराजमान तीन देवियां, दूर-दराज से आते हैं श्रद्धालु; जानें ये रोचक किस्सा

Chaitra Navratri 2024 हरियाणा-हिमाचल की सीमा पर ऊंचे पर्वत की गोद में तीन देवियां विराजमान हैं। इस मंदिर में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। बुजुर्ग व बीमार लोगों के लिए एंबुलेंस की सुविधा विश्राम गृह फस्टऐड डिस्पेंसरी और सूचनाकेंद्र पार्किंग जैसी सुविधा मुहैया कराई जाती है। साथ ही यात्रियों के रहने के लिए यात्री निवास व धर्मशाला का प्रबंध भी है।

By Sanjeev kumar Edited By: Himani Sharma Published: Mon, 08 Apr 2024 03:30 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2024 03:30 PM (IST)
430 मीटर ऊंचे पर्वत की गोद में है तीन देवियों का धाम

जागरण संवाददाता, साढौरा। Chaitra Navratri 2024: हरियाणा की सीमा से सटे हिमाचल के सिरमौर जिले में 430 मीटर ऊंचे पर्वत की गोद में तीन देवियों का धाम है। करीब 450 वर्ष प्राचीन मां बालासुंदरी, ललिता, त्रि-भवानी देवियों के होने से त्रिलोकपुर से विख्यात गांव में नवरात्र पर चौदह दिन का मेला लगता है।

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हर बार नवरात्र में उत्तर भारत से हजारों श्रद्धालु दर्शनों को पहुंचते हैं जिले से भी रोज हजारों श्रद्धालु त्रिलोकपुर मेले में आते जाते हैं, जिनकी सुविधा के लिए हरियाणा रोडवेज की दर्जनों बसे भी लगाई गई हैं।

वहीं, प्राइवेट बसों, मैक्सी कैब व टूर एंड ट्रेवल कंपनियों की गाड़ियों से भी हजारों श्रद्धालु त्रिलोकपुर लेकर आती हैं। बुजुर्ग व बीमार लोगों के लिए एंबुलेंस की सुविधा, विश्राम गृह, फस्टऐड, डिस्पेंसरी और सूचनाकेंद्र, पार्किंग जैसी सुविधा मुहैया कराई जाती है। साथ ही यात्रियों के रहने के लिए यात्री निवास व धर्मशाला का प्रबंध भी है।

त्रिलोकपुर धाम से जुड़ी है ये गाथा

पौराणिक कथा के अनुसार सन 1573 के आसपास स्थानीय दुकानदार रामदास उत्तरप्रदेश के देवबंद से नमक का बैग लाया था। दुकानदार दिनभर बैग से नमक की बिक्री करता रहा, लेकिन फिर भी नमक कम नहीं हुआ। यह चमत्कार देख वह अचंभे में रह गया। उसी रात रामदास को स्वप्न में मां भगवती ने बाल रूप में दर्शन देकर कहा कि मैं पिंडी रूप में तुम्हारी नमक की बोरी में आ गई और अब मेरा निवास तुम्हारे आंगन में स्थित पीपल वृक्ष की जड़ में है।

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लोक कल्याण के लिए तुम यहां एक मंदिर का निर्माण करो। सुबह होने पर व्यापारी ने देखा कि बिजली की चमक व बादलों की गड़गड़ाहट से पीपल का पेड़ जड़ से फट गया तथा माता साक्षात रूप में प्रकट हो गई। तब आसपास के लोगों से रामदास ने रात में आए स्वप्न बारे बताया और तभी से पिंडी को मां बाला सुंदरी के स्वरूप में पूजा जाने लगा।

उस समय सिरमौर राजधानी का शासन महाराज प्रदीप प्रकाश के अधीन था। उन्होंने जयपुर राजस्थान से कारीगरों को आमंत्रित किया गया और तीन वर्षों में मंदिर बनकर तैयार हो गया, जो उत्तर-कारीगरी का एक अद्भुत उदाहरण है और वास्तुकला का भारत-फारसी शैलियों का मिश्रण है।

देवी बालासुंदरी की पूजा शाही परिवार में बनी परंपरा

यह उत्तर भारत के इस प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। इसे 1851 में महाराजा रघुवीर प्रकाश 1823 में और महाराजा फतेह प्रकाश ने पुनर्निर्मित किया। मंदिर बनने के बाद देवी बालासुंदरी की पूजा शाही परिवार में परंपरा बन गई। मंदिर की स्थापना के बाद से लाला रामदास के वंशज वहां मुख्य पूजा करते आ रहे हैं।

माता बाला सुंदरी के भवन से ढाई किलोमीटर दूर पूर्व में मां ललिता और 10 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में त्रि-भवानी मंदिर है। इन दोनों देवियों के मध्य में माता ने स्थान ग्रहण किया है। तीनों देवियों के धाम के कारण गांव का नाम त्रिलोकपुर नाम से विख्यात है। बीती तीन मार्च 1974 से मंदिर की देखरेख का कार्य हिमाचल प्रदेश सरकार ने लिया और माता बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर बोर्ड का गठन किया गया।

मां के दर्शनों के साथ ध्यानु भगत के दर्शन जरूरी

त्रिलोकपुर तक पहुंचने के लिए कालाआंब से आठ किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है, जबकि यमुनानगर से कालाआंब की दूरी 50, बराड़ा से 30, अंबाला से 53, चंडीगढ़ से 72 किलोमीटर है। यमुनानगर में साढौरा तो हिमाचल में नाहन के रास्ते श्रद्धालु कालाआंब होकर त्रिलोकपुर पहुंचते हैं।

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ऐसी मान्यता है कि माता बाला सुंदरी के दर्शनों के साथ ध्यानु भगत के दर्शन करने जरूरी है, तब जाकर भक्तों की यात्रा सफल मानी जाती है। त्रिलोकपुर में तीनों देवियों के अलावा मां काली, मां संतोषी, मां दुर्गा, मनसा देवी, शेरावाली, गणेश, हनुमान, शिव परिवार, भैरवनाथ की आलौकिक मूर्तियां व प्रतिमाएं हैं।


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