समानता के अधिकार की लड़ाई लोगों के लिए लड़कर अमर होना चाहते हैं अमरनाथ
आज जहां लोगों के पास खुद के व अपने परिवार के लिए समय नहीं है वहीं अमरनाथ लोगों के लिए ही जीना चाहते हैं।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : आज जहां लोगों के पास खुद के व अपने परिवार के लिए समय नहीं हैं, ऐसे में फर्कपुर के अंबेडकर नगर के अमरनाथ गौरा दूसरों को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। दिन देखते हैं न रात, सुबह हो या शाम। उनके पास कोई जरूरतमंद काम लेकर आया नहीं कि उसके साथ निकल पड़ते हैं समस्या का समाधान कराने। अब तक दर्जनों लोगों की समस्याओं का न केवल निवारण करवा चुके हैं बल्कि शरारती तत्वों के खिलाफ भी अभियान चला रखा है। 2011 में बनाई थी एनजीओ
समाज सेवा के उद्देश्य से अमरनाथ गौरा ने एक जनवरी 2011 में सर्वजन एवं अनुसूचित जाति समस्या निवारण समिति बनाई थी। अमरनाथ इस समिति के चेयरमैन हैं। जब समिति का गठन किया तो इसके महज आठ सदस्य थे। बाद में समिति के कार्यों को देखते हुए अब 70 लोग जुड़ चुके हैं। समस्या चाहे सामाजिक हो या फिर किसी की व्यक्तिगत उसके समाधान के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया जाता है। समाधान के लिए पहले छोटे अधिकारी को फरियाद लगाई जाती है। इसके बाद उच्चाधिकारियों का दरवाजा खटखटाया जाता है। इतना ही नहीं अब तक दर्जनों पत्र मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को लिख चुके हैं। 2010 में इंस्पेक्टर पद से हुए सेवानिवृत्त :
68 वर्ष के हो चुके अमरनाथ गौरा 31 जुलाई 2010 को हरियाणा पुलिस से इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्त हुए थे। अमरनाथ ने बताया सेवानिवृत्त होने के बाद वे घर नहीं बैठना चाहते थे। उन्हें पता था कि यदि घर पर बैठ गए तो कई तरह की बीमारियां शरीर में लग जाएंगी। इसलिए पांच माह में ही समिति का गठन किया और फिर लोगों की सेवा में लग गए। लोग इनके पास अक्सर राशन कार्ड, बुढ़ापा पेंशन, अधिकारियों की ओर से शिकायत पर कार्रवाई नहीं करना, कोई अधिकारी गलत कार्य करता है तो उसके बारे में सरकार को अवगत कराना आदि काम करवाते हैं। शिकायत भी खुद टाइप कराते हैं
इनके पास काफी लोग ऐसे भी आते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती। यहां तक की शिकायत लिखवाने के लिए भी पैसे नहीं होते। ऐसे लोगों की शिकायत समिति खुद टाइप करवाती है। साढौरा के टपरियां गांव के लोग गांव का नाम बदल कर डा. भीमराव अंबेडकर नगर रखना चाहते थे। परंतु अधिकारियों ने साफ इंकार कर दिया। तब इन्होंने चार साल कोर्ट में केस लड़ा और सरकार को गांव का नाम बदलना पड़ा। रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी अब गांव का नाम बदल गया है। थाने से संबंधित यदि कोई मामला आता है तो उसमें भी यही प्रयास करते हैं कि दोनों पक्षों में समझौता हो जाए और केस दर्ज करने की नौबत न आए।