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शहरनामा : डीपी आर्य

सावन का स्मरण होते ही मन आह्लादित होने लगता है। हल्की फुहार रिमझिम-रिमझिम ना उमस ना सर्दी बस निकल पड़े शहर की सड़कों पर मस्तीवाली घुमक्कड़ी करने।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 05:39 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 05:39 PM (IST)
शहरनामा : डीपी आर्य
शहरनामा : डीपी आर्य

दो टके के नाले में लाखों का सावन जाए

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सावन का स्मरण होते ही मन आह्लादित होने लगता है। हल्की फुहार, रिमझिम-रिमझिम, ना उमस ना सर्दी, बस निकल पड़े शहर की सड़कों पर मस्तीवाली घुमक्कड़ी करने। ऊपर वाले ने सावन का ऐसा माहौल बनाया, जैसा सदियों पुराना। अपने साहब इसमें चूक गए। नाले-सीवर और ड्रेनेज का ऐसा घालमेल हुआ कि सड़कों पर कूड़ा-कीचड़ और जलभराव। क्या करे सावन की मस्ती। चाय-चीला-पकौड़े के सहारे कब तक टीवी देखें। शहर का हाल ऐसा, पैदल तो दूर, दोपहिया वाहन से भी निकलना मुश्किल। जब सावन की फुहार में जलभराव हो और बरसात होने पर कई घंटे तक जलक‌र्फ्यू का सामना करना पड़े, तब कौन किसको सुनाए, सावन की मल्हार और प्रकृति का प्यार। ऐसे में घर से बाहर निकलने का मतलब है, थोड़ी देर में सिस्टम और बराबर से निकले वाहन वालों पर भड़ास निकालते गुनगुनाए, तेरे दो टके के नाले में मेरा लाखों का सावन जाए। .. संभलकर कहीं गिर न जाएं।

सुरक्षा और आस्था, साहब का कितना वास्ता

सुरक्षा और आस्था के चक्रव्यूह में दोनों बड़े साहब ऐसे फंसे कि इसका अर्थ निकालने में ही अच्छे-अच्छे फंस गए। एक ओर जहां कोरोना का संक्रमण, वहीं बाबा भोलेनाथ की आस्था। साहब ने ऐसा रास्ता निकाला कि पहले बचाओ जीवन, तब होगा पूजन-वंदन। पत्रकारों को बुलाया, दोनों साहब ने आदेश सुनाया। घर पर करो शिव की आराधना, मंदिरों को रखा जाएगा बंद। साहब का संदेश वायु गति से चला तो राजनीति के कैलाश यानि चंड़ीगढ़ तक जा पहुंचा। जो कैलाश पर विराजमान ही आस्था के दम पर हुए हैं, उनके राज में मंदिर बंद। हे भोले, राजनीतिक विचारों में भूचाल आया, डर सताया, क्रोधित जनता का तीसरा नेत्र ना खुल जाए। दो घंटे में साहब का निर्णय हुआ क्वारंटाइन। अब कोरोना है तो है, आस्था भी तो जरूरी है इसलिए शारीरिक दूरी बनाओ, मास्क लगाओ, घंटा मत बजाओ, प्रसाद ना खाओ, बाबा को फासले से जल चढ़ाओ, चुपचाप घर लौट जाओ।

कोरोना यार, छीन लिया गुड़ और अचार

आप सोच रहे होंगे, कोरोना और गुड़-अचार का क्या संबंध? इनका संबंध और ना मिलने का दर्द पूछो हरियाणा वालों से, बेचारे परेशान हैं। प्रदेश में गुड़ और अचार की पूर्ति होती है उत्तर प्रदेश से। हरियाणा के सिपहसालारों को कोरोना का ऐसा डर सताया, कि सबसे पहले उत्तर प्रदेश की सीमा सील कराईं। खाकी वाले खड़े करके रोका तो था कोरोना, और रुक गए गुड़ और अचार। उत्तर प्रदेश में आना-जाना हुआ बंद, तो साथ ही रुक गई गुड़ और अचार वाले आम की आवक। अब कोरोना आए या जाए, लेकिन भोजन के समय इनकी कमी खूब सताए। हरियाणा के लोगों को गुड़ और अचार का है बड़ा शौक। सब्जी चाहे तीन हों, लेकिन गुड़-अचार के बिना खाना रहे अधूरा। अब तो गई बात पूरे एक साल को। बेचारे लोगों की अब यही दुआ है, हे भगवान, मत भेजना ऐसा कोरोना, जिससे सालभर पड़े गुड़-अचार को रोना।

रात की बात.. चुपचाप

कहावत है रात गई तो बात गई। यह केवल कहावत है। बात होती है तो झेलनी पड़ती है, जाती कहां है। इसके भुक्तभोगी शहर के लोग हैं। यहां रात में स्ट्रीट लाइट बंद रहने से लोगों का सफर भगवान भरोसे रहता है। खैर, देखभाल कर चल भी लें, लेकिन दिल में टीस रहती है कि जनता के टैक्स के रुपयों के लाखों इन पर खर्च होते हैं। दिन में शिकायत करो तो अफसर मानने को तैयार नहीं कि लाइट बंद हैं। यही हाल लाखों की लागत से लगे सीसीटीवी का है। अचंभा तब हुआ, जब शहर के कई हिस्सों में ठीक-ठाक कैमरों को रात में बंद कर दिया जाता है। कंट्रोल रूम से इनको सुबह छह बजे चलाया जाता है। एक फा‌र्च्यूनर चोरी होने पर सीसीटीवी देखने का प्रयास किया, तो इसकी जानकारी हुई। डीएसपी ने जमकर लताड़ लगाई, लेकिन उसके बाद भी हाल वहीं, यानि रात गई तो बात गई।


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