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जिद और जुनून ने सुमित को बनाया हॉकी का स्टार, कभी जूते खरीदने के लिए नहीं थे पैसे; मां-बाप करते थे मजदूरी

Tokyo Olympics सुमित की जिद और जुनून ने उनको इस मुकाम तक पहुंचाया है। एक ऐसा भी वक्त था जब घंटो कड़ा अभ्यास करने के बाद सूखी रोटी खानी पड़ी। कई बार रोटी पर लगाने के लिए घर में घी तक नहीं होता था।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 12:58 PM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 12:58 PM (IST)
जिद और जुनून ने सुमित को बनाया हॉकी का स्टार, कभी जूते खरीदने के लिए नहीं थे पैसे; मां-बाप करते थे मजदूरी
हॉकी खिलाड़ी सुमित की फाइल फोटो। फोटो सौ. परिजन

सोनीपत [दीपक गिजवाल]। ओलिंपिक में हॉकी को ब्रांज दिलाने वाली टीम का हिस्सा रहे खिलाड़ी सुमित का ये सफर किसी परी कथा से कम नहीं है। एक वक्त था जब जूते न होने की वजह से सुमित हॉकी ग्राउंड से पलट कर वापस घर की ओर चल दिया था। अचानक ही मन में ख्याल आया क्यों न समस्या कोच साहब को बताई जाए। करीब 10 साल के सुमित ने ये समस्या कोच को बताई तो कोच उसकी बेबसी समझ गए। जूते देने का वादा कर ग्राउंड पर आने को कहा। कोच नरेश आंतिल बताते हैं कि उसके बाद से सुमित ने कभी पलट कर नहीं देखा।

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सुमित के प्रारंभिक कोच नरेश आंतिल बताते है कि गांव के खेल मैदान पर बच्चों को हाकी के गुर सिखाते थे। वर्ष 2004-2005 के गर्मियों के दिन थे। जब सुमित अन्य बच्चों के साथ हॉकी खेलने आया।

सुमित ने पूछा कोच साहब मैं भी खेल सकता हूं क्या? नरेश आंतिल बताते है कि उस दिन तो सुमित को खेलने की अनुमति दे दी और सुमित को आगे से जूते पहन कर आने के लिए बोला। खेलने के बाद सुमित वापस चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद वापस आया और नरेश आंतिल को बताया कि उसके पास जूते नहीं है। ऐसे में कोच ने कहा अगर रोज आओगे तो जूते मिल जाएंगे और स्टीक भी।

नरेश हंस कर बताते हैं कि उसके बाद सुमित ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। देखते ही देखते कोच के चेहते खिलाड़ियों में शुमार हो गए। हॉकी ग्राउंड से लेकर घर में खाने-पीने तक का ध्यान कोच रखने लगे। फिर एक दिन ऐसा आया जब साई सेंटर में कोचिंग लेने का मौका मिला। वहां कोच एनके गौतम ने प्रतिभा को पहचाना तो आगे मौके मिलने लगे। इस बात को सुमित और उनके बड़े भाई अमित भी मानते है कि यदि कोच साहब ने जूते न दिए होते तो शायद ही सुमित खेल के बारे में कभी सोच पाता। परिवारिक हालात ऐसे नहीं थी कि खेलने के लिए जूते खरीदे जा सकते। हाकी टीम की जीत के बाद कोच नरेश ने सुमित के घर पहुंच कर परिवार को बधाई दी।

जिद और जुनून ने बनाया सुमित को स्टार

सुमित की जिद और जुनून ने उनको इस मुकाम तक पहुंचाया है। एक ऐसा भी वक्त था जब घंटो कड़ा अभ्यास करने के बाद सूखी रोटी खानी पड़ी। कई बार रोटी पर लगाने के लिए घर में घी तक नहीं होता था। हालात ऐसे थे कि घर चलाने के लिए मां को भी मजदूरी करनी पड़ती थी। इन सब के बीच सुमित ने कभी हौसला नहीं टूटने दिया। सुमित को जानने वाले बताते है कि खेल को लेकर उसकी जिद और जुनून हमेशा बरकरार रहा। उनके कौशल को निखारने में मदद देने वाले साई कोच पीयुष दूबे बताते हैं कि सुमित को दूसरे खिलाड़ियों से जो बात अलग करती है जब तक बेस्ट ना दें तो वह रुकता नहीं है, फिर चाहे मैदान की बात हो या अभ्यास की।

मां से किया वादा और मजदूर पिता का सपना किया पूरा

सुमित के पिता प्रताप ने मजदूरी कर परिवार को पाला है। मां भी घर के साथ ही खेतों में काम कर उनका हाथ बढ़ाती। सुमित ने मां से वादा किया था वो ओलिंपिक जरूर खेलेगा। हालांकि सुमित की उपलब्धि को देखने के लिए मां कृष्णा अब इस दुनिया में नही है। पिता प्रताप गर्व से कहते है कि सुमित मां से किया वादा और मेरा सपना पूरा किया है। गर्व है ऐसे बेटे पर भगवान ऐसा बेटा सबको दे।

जूनियर स्तर से ही टीम का स्तंभ रहा है सुमित

सुमित वही खिलाड़ी हैं जिसके शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 2016 में जूनियर हॉकी का वर्ल्ड कप जीता था। उनकी कामयाबी में एशियाई कप से लेकर एशियन चैंपियनशिप का मेडल भी शामिल है जबकि इसके अतिरिक्त जोहर कप एवं सुल्तान अजलान शाह हाकी टूर्नामेंट में भी उसकी हॉकी स्टिक खूब बोली थी। सुमित ने 2017 में सुल्तान अजलान शाह कप से राष्ट्रीय टीम के लिए पर्दापण किया था। 


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