हरियाणा के कड़क सपनों की कहानियां: समाज से अशिक्षा के अंधेरे को दूर करने में जुटे हैं जय कुमार
कई बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूल की फीस किताबें वर्दी जूते या बैग तक खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। जयकुमार अपनी पेंशन के रुपये बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर देते हैं। इस महानता को सम्मानित करते हुए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा जा जुका है।
हर बच्चे को शिक्षा का समान अधिकार है, लेकिन कुछ बच्चों को अपने परिवार के हालातों के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। 73 वर्षीय जयकुमार रोहिला एक ऐसे शिक्षक हैं जो किसी भी छात्र की शिक्षा में रुकावट नहीं आने देते। 38 वर्ष तक राजकीय स्कूल में शिक्षक रह चुके जयकुमार पद से सेवानिवृत्त होकर भी समाज से अशिक्षा का अंधेरा दूर करने में जुटे हुए हैं। उनमें आज भी बच्चों को पढ़ाने का जज्बा कम नहीं हुआ और सुबह से उठकर उनका पूरा ध्यान बच्चों को पढ़ाने पर होता है।
कई बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूल की फीस, किताबें, वर्दी, जूते या बैग तक खरीदने में सक्षम नहीं होते हैं। जयकुमार अपनी पेंशन के रुपये बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर देते हैं। इस महानता को सम्मानित करते हुए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा जा जुका है। इसके साथ-साथ उनको इंटरनेशनल आइकान अवार्ड, भारतीय शिक्षा रतन अवार्ड, राष्ट्रीय निर्माण गोल्ड अवार्ड, नेशनल स्टेट एक्सीलेंस एजुकेशन अवार्ड, राष्ट्रीय विकास रतन अवार्ड, एशिया पेसिफिक इंटरनेशनल अवार्ड व नेशनल अचीवमेंट अवार्ड जैसे कई विशेष सम्मान मिल चुके हैं।
कजाकिस्तान के अलमाटी शहर में आयोजित ग्लोबलाइजेशन इकनॉमिक एंड सोशल डेवलपमेंट कार्यक्रम में उनको सम्मानित किया गया। जयकुमार के अनुसार, इन सभी सम्मानों का असली श्रेय उनके छात्रों और उनके परिवारों को जाता है जो अनेकों बाधाओं के बावजूद भी शिक्षा का दिया जलाए रखे हैं। अपने छात्रों के बीच में एक मिसाल कायम करते हुए उन्होंने अपनी आंखें व शरीर को मरणोपरांत दान करने का संकल्प लिया है। इसके साथ ही जयकुमार पौधरोपण व गरीब कन्याओं का विवाह कराने के लिए भी जाने जाते हैं।
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