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'मन की बात' में पीएम मोदी ने किया किसान कंवल सिंह चौहान का जिक्र, जानें इनके बारे में

कंवल सिंह चौहान ने कहा कि उन्होंने 1978 में खेती शुरू की थी। धान और गेहूं की खेती से कर्जा भी नहीं उतरता था। 1998 में बेबीकाॅर्न की खेती शुरू की और किस्मत ने साथ दिया। आज खेती को व्यवसाय की तरह ले रहे हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 02:56 PM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 02:56 PM (IST)
'मन की बात' में पीएम मोदी ने किया किसान कंवल सिंह चौहान का जिक्र, जानें इनके बारे में
सोनीपत के किसान कंवल सिंह चौहान की फोटो

सोनीपत [संजय निधि]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में अटेरना गांव के प्रगतिशील किसान पद्मश्री कंवल सिंह चौहान का उदाहरण देकर देशभर के किसानों को प्रोत्साहित किया। 15 साल की उम्र से खेती करने वाले कंवल सिंह को पिछले ही वर्ष खेती में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पद्मश्री से नवाजा गया है। प्रधानमंत्री ने उनका और उनके गांव के अन्य किसानों का उदाहरण देकर किसानों को हताशा और निराशा से उबरकर आधुनिक तरीके से खेती करने और अपनी मर्जी से कहीं भी फसल बेचने के फायदे बताये।

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प्रगतिशील किसान कंवल सिंह चौहान और गांव अटेरना का नाम लेते हुए प्रधानमंत्री ने एपीएमसी (कृषि उपज मंडी समिति) एक्ट में बदलाव कर सब्जी व फलों को इससे बाहर करने से यहां के किसान लाभान्वित हुए। कंवल सिंह का नाम लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले उन्हें अपनी फसल मंडी से बाहर बेचने पर उनकी गाड़ियां तक जब्त कर ली जाती थी।

वर्ष 2014 में फल व सब्जी को एपीएमसी एक्ट से बाहर करने के बाद कंवल सिंह ने अटेरना में किसान उत्पादक समूह बनाया और अब वे अपनी मर्जी से स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न को दिल्ली के आजादपुर मंडी, बड़ी रिटेल चेन, फाइव स्टार होटलों में सीधे सप्लाई करते हैं। इस क्षेत्र में स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न व मशरूम उत्पादन का श्रेय पद्मश्री कंवल सिंह चौहान को ही जाता है। इसलिए प्रधानमंत्री ने उनका नाम लिया। प्रधानमंत्री से मुंह से अपना सुनकर बेहद उत्साहित कंवल सिंह ने बताया कि इससे उनका हौसला बढ़ा है। अपने जीवनभर उन्होंने खेती को बढ़ाने के लिए जो मेहनत की है, यह उसी का फल है।

कभी थे कर्ज में, आज 200 लोगों को दे रहे नौकरी

गांव अटेरना के किसान कंवल सिंह चौहान भी आम किसानों की तरह की कर्ज में डूबे थे। गांव में अपनी जमीन पर परंपरागत खेती को छोड़कर वर्ष 1998 में सबसे पहले मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती शुरू की। यह जोखिम कामयाब रहा और दोनों फसलों ने उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी और फिर वे अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए। कंवल सिंह भी किसानों को अपने जोड़ने लगे और उन्हें बेबी कॉर्न, मशरूम, स्वीट कॉर्न, मधुमक्खी पालन आदि के लिए जागरूक करने लगे। देखते ही देखते गांव के दूसरे किसान भी उनकी राह पर चल पड़े और अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की। आज गांव की तस्वीर बदलने के साथ ही करीब 200 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार भी दे रहे हैं। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ-साथ लोगों को रोजगार, स्वरोजगार के साथ जोड़ने की उनकी मुहिम के सभी कायल हैं।

इंग्लैंड व अमेरिका तक निर्यात होता है उत्पाद

जब गांव में बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न का उत्पादन बढ़ा तो किसानों को बाजार की दिक्कत न हो, इसके लिए कंवल सिंह ने वर्ष 2009 में फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दी। लगभग दो एकड़ में स्थित इस यूनिट में बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, अनानास, फ्रूट कॉकटेल, मशरूम बटन, मशरूम स्लाइस सहित लगभग आठ प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। आज इस यूनिट से प्रतिदिन लगभग डेढ़ टन बेबी कॉर्न व अन्य उत्पाद इंग्लैंड व अमेरिका में निर्यात होता है। यहां वे टमाटर, स्ट्राबेरी का प्यूरी भी बनाते हैं।

खेती को व्यापार की तरह करें, लाभ मिलेगा

कंवल सिंह चौहान ने कहा कि उन्होंने 1978 में खेती शुरू की थी। धान और गेहूं की खेती से कर्जा भी नहीं उतरता था। 1998 में बेबीकाॅर्न की खेती शुरू की और किस्मत ने साथ दिया। आज खेती को व्यवसाय की तरह ले रहे हैं। युवाओं को रोजगार देने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगा ली है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि सरकारी नौकरी की बजाय खेती को ही व्यापार की तरह करें। आधुनिक तरीके से और बेहतर प्रबंधन के साथ खेती की जाए तो इससे बहुत लाभ मिल सकता है।

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