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बुजुर्गों को जब अपनों ने ठुकराया तो आनंद ने दिया सहारा, निभा रहे धर्मपुत्र की जिम्मेदारी

आश्रम में रह रहे रघुबीर सिंह कहते हैं कि बुढापे में जो अपनों ने छीन लिया वो आनंद ने दिया। बुढ़ापे में परिवार ने छत छीन ली तो आनंद के पास आसरा मिला।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 07:15 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 07:15 PM (IST)
बुजुर्गों को जब अपनों ने ठुकराया तो आनंद ने दिया सहारा, निभा रहे धर्मपुत्र की जिम्मेदारी
बुजुर्गों को जब अपनों ने ठुकराया तो आनंद ने दिया सहारा, निभा रहे धर्मपुत्र की जिम्मेदारी

सोनीपत, जागरण संवाददाता। जीवन के अंतिम दिन गिन रहे बुजुर्ग जब अपनों को बोझ लगने लगते हैं तो बेटे-बहू उन्हें घर से बेघर कर देते हैं। ऐसे में 18 बुजुर्गों के धर्मपुत्र बने हुए हैं आनंद। शहर में पिछले 30 साल से किराए की बिल्डिंग में चल रहे ओल्ड एज होम में जिदंगी जी रहे बुजुर्गों के लिए आनंद धर्मपुत्र हैं। जब पैदा किए बेटों ने नहीं अपना तो आनंद उनके धर्मपुत्र बनकर इस धर्म को बखूबी निभा रहे हैं।

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पुलिस लाइन के पीछे प्रगति नगर एक्सटेंशन में समाज कल्याण शिक्षा समिति किराए की बिल्डिंग में वृद्धाश्रम चला रही है। सोनीपत के इकलौते वृद्धाश्रम में इन दिनों 18 बुजुर्ग अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। हालात के थपेड़े झेल चुके इन बुजुर्गों को अब रोना नहीं आता, इन्हें अपने जैसे हमदर्दों का सहारा मिल गया है। लोग घरों में सालगिरह, जन्मदिन और अन्य त्योहार मनाते हैं, लेकिन इन बुजुर्गों के लिए हर दिन एक जैसा है।

ऐसी है आनंद की कहानी

निरथान गांव से गढ़ी ब्राह्मणान में किराए के मकान में रह रहे आनंद ने बताया कि 1990 में दिल्ली पुलिस भर्ती का शारीरिक परीक्षा पास करने के बाद वे साक्षात्कार के लिए गए थे। दिल्ली बस अड्डे पर उतरा तो दो बुजुर्ग उसके पास आकर खाना खिलाने की कहने लगे। पूछा तो बताया कि घर वालों ने घर से निकाल दिए है। उन्हें अपना खाना दे दिया और आनंद का ऐसा मन बदला कि नौकरी करने की बजाय बुजुर्गों के लिए आश्रम बनाने की सोच ली। दोनों बुजुर्गों के गांव में ले आया। फिर वृद्ध आश्रम की खरखौदा में शुरुआत की। वृद्धाश्रम में घरवालों ने भी हौसला बढ़ाया और वे भी सेवा कार्य में सहयोग देने लगे। शहर में वृद्धाश्रम चला रही समाज कल्याण शिक्षा समिति अब आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है। बुजुर्गों को चिंता यह है कि कहीं यह छत भी छिन न जाए।

जो अपनों ने छीना वो आनंद ने दिया

आश्रम में रह रहे रघुबीर सिंह कहते हैं कि बुढापे में जो अपनों ने छीन लिया वो आनंद ने दिया। बुढ़ापे में परिवार ने छत छीन ली तो आनंद के पास आसरा मिला। रघुबीर सिंह बताते हैं कि जवानी में ही उनके बड़े भाई की मौत हो गई थी। कुछ समय बाद पत्नी की भी मौत हो गई ऐसे में अपना सबकुछ छोड़कर भतीजे को ही अपना बेटा मानकर पाला। अब भतीजे की पत्नी ने अच्छा सलूक नहीं किया तो घर छोड़ना पड़ा। 72 साल की उम्र में अब किसी काम धंधे के लायक भी नहीं। ऐसे में वृद्ध आश्रम में दिन काटने पड़ रहे हैं।

अपने बेटे तो फर्ज से गिर गए, धर्मपुत्र ने निभाई जिम्मेदारी

आश्रम में रह रहे दिल्ली निवासी भारत भूषण कहते अपने बेटे तो फर्ज से गिर गए। बुढा़पे में दर-दर की ठोकर खाने को छोड़ दिया। ऐसे में अगर आनंद न होते तो सड़क पर ही सोना पड़ता। आनंद ने धर्मपुत्र बनकर जो जिम्मेदारी निभाई है। उसे मारते दम तक नहीं भुलाया जा सकता।

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