चर्चा में भाजपा-कांग्रेस, खुलकर नहीं बोल रहे वोटर
वोटिग में अब आठ दिन का समय शेष रह गया है। चुनाव प्रचार भी चरम पर पहुंचने लगा है। सियासी पारा परवान पर है। गलियों चौराहों नुक्कड़ों सार्वजनिक स्थानों पर अब इसकी चर्चा भी शुरू हो गई है।
जागरण संवाददाता, सोनीपत
वोटिग में अब आठ दिन का समय शेष रह गया है। चुनाव प्रचार भी चरम पर पहुंचने लगा है। सियासी पारा परवान पर है। गलियों, चौराहों, नुक्कड़ों, सार्वजनिक स्थानों पर अब इसकी चर्चा भी शुरू हो गई है। सोनीपत विधानसभा क्षेत्र के लोग भी चुनावी चर्चा करते हैं, लेकिन खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं।
सोनीपत पूरी तरह से शहरी विधानसभा क्षेत्र है और हमने यहां के मतदाताओं का मूड जानने के लिए पैदल शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक की दूरी तय की। हमारे सफर की शुरुआत आठ मरला से हुई, जो मॉडल टाउन, एटलस रोड, सुभाष चौक, रेलवे स्टेशन होते हुए लाइनपार क्षेत्र गोहाना रोड होते हुए पुलिस लाइन तक गई। हमने पाया कि लोगों में चुनावी चर्चा तो है, लेकिन वे अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। पार्टियों के समर्थकों के कुरेदने पर भी सामान्य वोटरों की खामोशी नहीं टूटती। इससे नेताओं के पसीने छूट रहे हैं।
सुबह के करीब 10 बज रहे होंगे। हम आठ मरला स्थित एक चाय की दुकान पर खड़े थे। चाय की चुस्की के साथ पास के ही रहने वाले कृष्ण ने चाय वाले से चुनाव का हालचाल पूछ लिया। दुकानदार ने भी मजाकिया अंदाज में बोल दिया, इस बार तो कांग्रेस ने भी खूब जोर लगा रखा है। तभी वहां पर जार से बिस्कुट निकल रहा युवक बोल पड़ा, ताऊ सरकार जिसकी है, उसका तो फर्क पड़ता और लोग तो यह भी देखते हैं कि सरकार किसकी आने वाली है।
जब हमने बीच में टोका कि आखिर सोनीपत में किसका जोर है, दुकानदार ने हंसते हुए जवाब दिया, जोर का तो 21 को बेरा पाटैगा। उसके कहने के अंदाज से सभी हंसने और हम भी हंसते हुए मॉडल टाउन की ओर निकल गए। मॉडल टाउन में पार्क के पास पेड़ के नीचे तीन-चार लोग खड़े जरूर थे, लेकिन चुनावी चर्चा नदारद थी। अभी हम उनसे कुछ पूछना ही चाह रहे थे कि अचानक एक चुनाव प्रचार की गाड़ी वहां गुजरी।
गाड़ी पर लगे पोस्टर, बैनर देखकर वहां खड़ा एक व्यक्ति बोल पड़ा, सोनीपत में तो केवल तीन ही बैनर-पोस्टर दिख रहे हैं। चुनाव का पता नहीं, लेकिन भाजपा, कांग्रेस के बीच ये आप वाला भी खूब शोर मचा रहा है। हम भी सिर हिलाते हुए वहां से आगे बढ़ गए। एटलस रोड और सुभाष चौक पार करते हुए अब हम रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे। यहां ई-रिक्शा वालों का जमावड़ा लगा था। इनकी बातचीत में चुनावी चटखारे थे।
जेब से कुछ टटोलते हुए एक अधेड़ से रिक्शा चालक ने कहा, भाई इस बार चुनाव ठीक चल रहा है। चुनाव कार्यालय में खाना-पीना हो जाता है। इतने में दूसरे ने चुटकी ली, भई खाना-पीना ही नहीं, कुछ कॉलोनियों में तो कई और भी इंतजाम हो रहे हैं। ..खर्चा तो खूब किया जा रहा है, पता नहीं इस बार किस्मत चमकेगी या नहीं?
अब हमारे कदम यहां से भी आगे बढ़ते हुए गोहाना रोड पर बढ़े जा रहे थे। सुभाष स्टेडियम के आगे बढ़ने पर जाट धर्मशाला पर नजर पड़ी तो यहां भी हाल जानने के लिए हम पहुंच गए। यहां बुजुर्ग रामेश्वर, रणधीर, बलराज, रामनारायण, सुखदेव आदि दिन के भी दूसरे पहर को काटने के लिए ताश की बाजी लगा रहे थे। अंदर दाखिल होकर हमने चुनावी चर्चा छेड़ी तो बुजुर्गों ने कहा, ईमानदार, हमारा मान रखने वाला और समाज का भला करने वाला विधायक होना चाहिए। हालांकि जब हमने स्पष्ट करना चाहा तो उन्होंने नाम न लेते हुए इतना जरूर कह दिया कि बिरादरी को भी देखना पड़ता है। यहां कुछ देर सुस्ताने के बाद हम पुलिस लाइन और लघु सचिवालय की ओर बढ़ चले थे। पुलिस लाइन से पहले पुल के नीचे एक दुकान के सामने कई लोग बैठकर बातचीत में मशगूल थे। हम भी वहां सुस्ताने के ख्याल से रुक गए और धीरे-धीरे उनकी बातचीत में शामिल होते हुए चुनावी चर्चा शुरू कर दी। यहां संभवत: कुछ लोग भाजपा के भी समर्थक बैठे थे। चर्चा शुरू होते हुए अपने प्रत्याशी के मुकाबले किसी को मान ही नहीं रहे थे। तभी पीछे बैठे बुजुर्ग जिनका नाम शायद देवेंद्र था, बोल पड़े भाई ऐसा तो बिल्कुल नहीं। दूसरा प्रत्याशी भी मजबूत है और पूर्व मुख्यमंत्री का अभी भी कुछ प्रभाव तो क्षेत्र में है।