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सोनीपत लोकसभा सीट से अब तक सांसद नहीं बन पाई है कोई महिला

- महिलाओं को टिकट देने में राजनीतिक पार्टियों ने भी नहीं दिखाई है खास दिलचस्पी - पहले चुनाव में कांग्रेस और वर्ष 2004 में इनेलो ने दिया था महिला को टिकट - 2004 के अलावा एक भी महिला प्रत्याशी नहीं बचा पाई थी अपनी जमानत

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 07:29 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 06:31 AM (IST)
सोनीपत लोकसभा सीट से अब तक सांसद नहीं बन पाई है कोई महिला
सोनीपत लोकसभा सीट से अब तक सांसद नहीं बन पाई है कोई महिला

संजय निधि, सोनीपत

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सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से अब तक एक भी महिला संसद तक का सफर तय नहीं कर पाई है। यहां के वोटरों ने कभी महिलाओं पर भरोसा नहीं जताया है। आलम यह है कि सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के लिए अब तक हुए 11 आम चुनावों में कुल आठ महिलाओं ने अपनी किस्मत आजमाई है, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। दूसरा पहलू यह है भी कि इस सीट पर अब तक किसी भी प्रमुख राजनीतिक पार्टी ने भी महिलाओं को टिकट देने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। वर्ष 1977 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस और इसके बाद 2004 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने ही महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा है, लेकिन उन्हें भी जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। 1977 में कांग्रेस की प्रत्याशी सुभाषिनी की तो जमानत भी जब्त हो गई थी। कृष्णा को छोड़ नहीं बची किसी की जमानत

रोहतक से अलग होकर स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र बने सोनीपत में वर्ष 1977 में पहली बार चुनाव हुए थे। इस चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर सुभाषिनी मैदान में थीं और वे दूसरे नंबर पर रही थीं। इमरजेंसी के बाद हो रहे इस चुनाव में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के प्रति लोगों में जबरदस्त रोष था और इसका गुस्सा लोगों ने वोट देकर निकाला। भारतीय लोकदल के मुखत्यार सिंह के पक्ष में जबरदस्त वोटिग हुई और सुभाषिनी को मात्र 15 फीसद वोट से संतोष करना पड़ा। इसके बाद 1980 और 1984 के आम चुनाव में किसी महिला ने किस्मत नहीं आजमाई। वर्ष 1989 के चुनाव में ओम रानी ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया और उन्हें मात्र 0.23 फीसद वोट से संतोष करना पड़ा। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में दो महिलाएं महेंद्र कौर व पुष्पा चुनाव मैदान में थीं, लेकिन दोनों क्रमश: 2.70 व 0.49 फीसद वोट ही ले पाई। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से एक महिला बिमला मोर ने किस्मत आजमाई, लेकिन नतीजा वही रहा। मात्र 1.23 फीसद वोट लेकर बिमला ने अपनी जमानत राशि भी गंवा दी। इसके बाद वर्ष वर्ष 1998 में केलावती निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में आई, लेकिन उन्हें मात्र 0.04 फीसद ही वोट मिले। वर्ष 2004 के चुनाव में दूसरी बार प्रदेश के किसी प्रमुख दल ने महिला को टिकट दिया था। कृष्णा मलिक इनेलो की टिकट पर चुनाव मैदान में डटी थीं। उन्होंने बेहतर प्रदर्शन करते हुए कुल डाले गए वोट में से 26.98 फीसद वोट हासिल किया और तीसरे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में विजयी प्रत्याशी भाजपा के किशन सिंह सांगवान को 31.67 फीसद वोट मिले थे।


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