क्राइम फाइल से : डीपी आर्य
कोरोना का डर मास्क लगाओ या रहो घर। इसी थीम पर खाकी वालों का टास्क अब मास्क पर है।
भारी पड़ रहा मास्क का टास्क
कोरोना का डर, मास्क लगाओ या रहो घर। इसी थीम पर खाकी वालों का टास्क अब मास्क पर है। बड़े साहब ने पहले समझाया, बिना मास्क वालों पर अभियान चलवाया। खाकी वाले मुलाजिम क्यों बेवजह झंझट मोल लें, वाहनों पर लगे माइक से मास्क का शोर मचाया, पर कार्रवाई गायब। अबकी बार साहब ने दिया टारगेट, वो भी रोजाना का। अब क्या करें बेचारे, चालान बुक लेकर आ गए मैदान में। पुलिसवाला अदृश्य खलनायक की तरह छिपा रहता है और एकाएक आ जाता है सामने। कभी कार के पीछे से तो कभी पेड़ के नीचे से। खाकी को सामने देख बिना मास्क वाले डर से थरथराते हैं, तो टारगेट का एक और शिकार आता देख खाकी वाले मुस्कुराते हैं। बहरहाल मास्क का टास्क मनोरंजक तरीके से चल रहा है। आमने-सामने आने पर दोनों के चेहरे के भाव अजीब हो जाते हैं, चालान करने वाले के और कराने वाले के भी।
साहब पेश कर रहे टीम लीडर की मिसाल
कोरोना संक्रमण के डर से ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी लोगों से दूरी बनाए हैं। कोई फरियाद सुनने को तैयार नहीं। कई तो अभी तक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। खाकी वाले क्या करें, उनको तो जनता के बीच रहना है। खाकी के मुलाजिमों को लीड करने के लिए लीडर को सामने रहना होगा। इसको बड़े साहब बखूबी समझते हैं। वह लोगों से बचकर रहेंगे तो मुलाजिम ड्यूटी कैसे करेंगे? पुलिस का वर्क फ्रॉम होम से क्या नाता? इसका जिम्मा संभाला खाकी वाले कप्तान ने। रोजाना आफिस में बैठना, फरियाद सुनना। खुद सैनिटाइज होकर, मास्क लगाकर बैठना और फरियादियों का मास्क, सैनिटाइजेशन उनकी शैली में है। ठीक 10 बजे आफिस में होते हैं और बिना नागा फरियादियों से मिलते हैं। उनके बैठने का मतलब है सभी पुलिस अधिकारियों का मौजूद रहना और लोगों से मिलना। मतलब सुरक्षा के साथ ड्यूटी। साहब को देख पुलिस भी मुस्तैद है, हर चौक-चौराहे से थाने तक।
साहब हों तो ऐसे, चाहे कम मिले पैसे
थानों से लेकर चौराहों तक सबसे ज्यादा ड्यूटी करते हैं। सबसे ज्यादा भागदौड़ भी गृहरक्षक करते हैं और उपेक्षित हैं। अबकी बार तो मनमानी की पराकाष्ठा हो गई। थाने वाले साहब लॉकडाउन में ड्यूटी 15 घंटे लेने लगे। छोटे कर्मचारी थे, थाने वाले साहब के हुक्म की तामील हुई। अब लॉकडाउन खत्म होने पर भी ड्यूटी के घंटे रहे बरकरार। अपनी पीर सुनाते, तो साहब हड़काते, डीएसपी मुस्कुराते। जब सहनशक्ति जवाब दे गई तो चुपचाप की एक मीटिग। पीर पर्वत सी हुई तो याद आए कप्तान। अब शेर के गले में घंटी कौन बांधे। डरते-डरते एक उपाय समझ में आया, साहब के मोबाइल पर मैसेज पहुंचाया। उनका मूड अच्छा था, मिलने को बुलाया। 15 घंटे की ड्यूटी की सुनकर तत्काल फरमान सुनाया। आठ घंटे की ड्यूटी और साथ में वीकली ऑफ भी। अब तो खुशी का ठिकाना नहीं है। कह रहे हैं, साहब हों तो ऐसे, चाहे कम मिले पैसे। खाकी को चुनौती दे रहे बाइकचोर
चोरों का अपना धंधा है, जो मंदा नहीं पड़ता। बाजार की जरूरत के हिसाब से चोर धंधा करते हैं। जिले में सबसे मुफीद है बाइक चोरी। न बिक्री करने में परेशानी, न पुलिस ज्यादा पीछा करती। बाइक चोरी हो जाने पर लोग भी जल्द ही सब्र कर लेते हैं। हाईवे पार करते ही उत्तर प्रदेश में चोरी की बाइक का बड़ा बाजार है। यानि कम रिस्क पर ज्यादा मुनाफा, धंधा चोखा है। हालत यह है कि यहां रोजाना आठ-दस बाइक चोरी हो रही हैं, इनमें से चार-पांच की ही रिपोर्ट होती है। रिपोर्ट तो बीमा लेने वाले ही कराते हैं, बाकी तो मुंह लटकाए घर लौट जाते हैं। करें भी क्या, चोरी की रिपोर्ट लिखवाने से पहले थाने वाले मुंशी जी, ऐसा इंटरव्यू लेते हैं कि कइयों को लगता है बाइक चोरी होके गलती हो गई या खुद अपनी बाइक चोरी कर ली। ऐसी पूछताछ होती है कि पूछो न भाई।
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प्रस्तुति : डीपी आर्य