अंतिम दिन कैनवास पर बिखरे एग्री समिट के रंग
चौथी एग्री लीडरशीप समिट अंतिम दिन कलाकारों के नाम रहा। समिट के दौरान देशभर से आए 10 चित्रकारों ने अपनी चित्रकारी से किसानों का ध्यान आकर्षित किया। खेती और किसानी को दर्शाती हुई चित्रकारी किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र रही, जिसमें किसानों की जीवन गाथा भी चित्रों के माध्यम से उकेरी गई थी। तीसरे और अंतिम दिन शाम को चित्रकारों के कला की प्रदर्शनी का किसानों अवलोकन किया। शिविर के समन्वयक राजीव रंजन ने बताया कि देशभर से कलाकारों की हिस्सेदारी इस शिविर को राष्ट्रीय फलक प्रदान कर रही है।
जागरण संवाददाता, सोनीपत : चौथा एग्री लीडरशीप समिट अंतिम दिन कलाकारों के नाम रहा। समिट के दौरान देशभर से आए 10 चित्रकारों ने अपनी चित्रकारी से किसानों का ध्यान आकर्षित किया। खेती और किसानी को दर्शाती हुई चित्रकारी किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र रही, जिसमें किसानों की जीवन गाथा भी चित्रों के माध्यम से उकेरी गई थी। तीसरे और अंतिम दिन शाम को चित्रकारों के कला की प्रदर्शनी का किसानों अवलोकन किया। शिविर के समन्वयक राजीव रंजन ने बताया कि देशभर से कलाकारों की हिस्सेदारी इस शिविर को राष्ट्रीय फलक प्रदान कर रही है।
गन्नौर के अंतरराष्ट्रीय फल एवं सब्जी मंडी में आयोजित एग्री लीडरशिप समिट-2019 के तीसरे दिन शाम तक कृषि व किसान कल्याण को लेकर विभिन्न सेमीनारों का दौर भी चलता रहा। कला शिविर में शिरकत कर रहे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ. रामविरंजन ने कहा कि आज यमुना के किनारे बसा गन्नौर का यह इलाका बेपानी होता जा रहा है। भविष्य के खतरे के प्रति आगाह करने के लिए हमने कैनवास पर ऐसी ¨चताओं की लकीरें भी उभारने का प्रयास किया। जामिया मिलिया से आई प्रोफेसर शबनम खान ने कहा कि बदलते दौर में महिला किसानों की संख्या भी बढ़ी है। अब महिलाएं चूल्हा ही नहीं जलाती, बल्कि खेत में ट्रैक्टर भी चला रही हैं। कार्यक्रम में कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव नवराज संधू ने कहा कि यह कार्यशाला कला को जनसाधारण के मध्य ले जाने का एक प्रयोग है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के महानिदेशक अजीत बालाजी जोशी ने कहा कि विद्यार्थियों को यह बताना होगा कि खेती उत्पादक स्थल नहीं, भारतीय परंपरा है, खेती की संस्कृति भारतीय संस्कृति है।
माटी के खुशबू नाटक का मंचन
एग्री समिट के समापन के दौरान रंगकर्मियों ने माटी की खुशबू नाटक का मंचन कर लोगों को भावविभोर कर दिया। नाटक के माध्यम से लोगों से ऑर्गेनिक खेती करने की अपील की गई। नाटक में गंगा-जमुना-काबेरी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि नदियों से आया हुआ जल पूरे समाज को प्रवाहित करता है। जैसे-जैसे नदियां सूख रही हैं, वैसे ही समाज भी सूख रहा है। हमें अपनी धरती का संरक्षण करना होगा तभी माटी की खुशबू वापस आएगी और जीवन में आर्द्रता बनी रहेगी। नाटक में पहले लोकगीतों व के रागिनियों के माध्यम से भी किसानों से संवाद करने का प्रयास किया गया।