नमो देव्यै, महा देव्यै : कभी कॉलेज में दाखिला लेना भी था सपना, अब उसी कॉलेज में एसोसिएट् प्रोफेसर बनकर पढ़ा रही है गीता
गांव खतरावां निवासी गीता कुमारी ने बारहवीं तक की पढ़ाई गांव के
गुरनैब सिंह, बड़ागुढ़ा : गांव खतरावां निवासी गीता कुमारी ने बारहवीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में ही पूरी की। बारहवीं के बाद पहली बार जब सिरसा आई और कॉलेज देखा तो सोचने लगी कि क्या वह भी कभी कॉलेज में पढ़ पाएगी। मां का देहांत हो चुका था। पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे। पढ़ाई जारी रखी। नेशनल कॉलेज में दाखिला मिल गया तो बीकॉम की। बाद में चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय से एम कॉम किया साथ ही साथ वर्ष 2017 नेट भी क्लीयर कर लिया। पहले सिरसा के सीएमके कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में नौकरी की और छह महीने बाद उसी नेशनल कॉलेज में बतौर एसोसिएट्स प्रोफेसर पढ़ाने लगी जिसमें कभी दाखिला लेने का उसका सपना था। --------- खतरावां निवासी किसान राम सिंह मूल रूप से अलीगढ़ का रहने वाला है। 1991 में खतरावां में आकर रहने लगा। इसी दौरान पत्नी का देहांत हो गया। परिवार में दो बेटियों गीता, गिरीजा व बेटे ललित को पढ़ाया। गीता पढ़ाई में होशियार थी। घर का कामकाज करती, साथ ही पढ़ती। उस समय सरकारी स्कूल के मुख्याध्यापिका सरोज आर्य, प्राध्यापक बलजीत, राजकुमार बांगड़वा, राजीव मेहता, जसबीर कौर निर्मल ने उसे हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और समय समय पर आर्थिक सहायता देकर उसकी मदद भी करते रहे। बारहवीं की पढ़ाई के बाद राजकुमार शेखुपुरिया ने उसे भगत सिंह संस्थान से आर्थिक सहयोग दिलवाया। 2016 में एम कॉम पूरी करते ही नेट का टेस्ट भी दिया और पहली ही कोशिश में क्लीयर कर लिया। 2017में भाग्य ने साथ दिया और नेशनल कालेज में बतौर एसोसिएट्स प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हुई।
-------- पिता पर है गर्व
गीता कहती है कि उसे अपने पिता राम सिंह पर गर्व है। गरीब होने के बावजूद तीनों भाई बहनों को पढ़ाया और उन्हीं की बदौलत आज वह इस काबिल बनी है। उसने बताया कि एसोसिएट्स प्रोफेसर बनने के बाद वह दूसरी छात्राओं की हर संभव मदद करती है। दूसरी लड़कियों को यही संदेश देना चाहती है कि कभी भी जिदगी में हार नहीं माननी चाहिए। जिदगी में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।