Move to Jagran APP

संत दादू के मठ के कारण अंग्रेजों ने गांव का नाम रखा मठदादू

ऐलनाबाद रोड पर डबवाली से करीब 21 किलोमीटर दूरी पर बसे गांव मटद

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 08:59 PM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 08:59 PM (IST)
संत दादू के मठ के कारण अंग्रेजों ने गांव का नाम रखा मठदादू
संत दादू के मठ के कारण अंग्रेजों ने गांव का नाम रखा मठदादू

संवाद सहयोगी, डबवाली : ऐलनाबाद रोड पर डबवाली से करीब 21 किलोमीटर दूरी पर बसे गांव मटदादू का सही नाम है मठदादू। यह नाम अंग्रेजों ने गांव में स्थित ऐतिहासिक मठ के कारण दिया था। बुजुर्ग ग्रामीण बताते है कि गांव की सीमा निर्धारित करने के लिए अंग्रेज अधिकारी मौके पर आए थे। गांव के नाम पर चर्चा हुई तो करीब सात मंजिला मठ दिखाई दिया। अंग्रेजों ने पूछा कि यह क्या है, ग्रामीणों ने बताया कि मठ है। अधिकारी ने अगला सवाल किया कि किसका मठ है, तो पता चला कि संत दादू दयाल का है। अधिकारी ने उसी वक्त गांव को मठदादू कहकर संबोधित किया। गांव की स्थापना 1790 के आस-पास बताई जाती है। करीब 231 साल पूर्व बसे गांव का आंकलन वर्तमान परिस्थितियों से करें तो रकबा 28156 कनाल 15 मरले है। कुल आबादी 4096 है। जिसमें 2039 पुरुष तथा 2057 महिलाएं शामिल है।

loksabha election banner

---------

पाकिस्तान के जंबर गांव से जुड़ा है इतिहास

गांव मठदादू का इतिहास पाकिस्तान के जिला कसूर की तहसील पत्तो के गांव जंबर कलां, जंबर खुर्द से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण गुरमेल सिंह बताते है कि गांव मठदादू की जमीन बठिडा जिला के गांव सेखू के ग्रामीणों की थी। उस वक्त अंग्रेजों को लगान देना पड़ता था। अकाल होने के कारण सेखू के ग्रामीण लगान नहीं दे सके अंग्रेजों ने जमीन कुर्क कर ली थी। बुजुर्ग बताया करते थे कि सेखू के ग्रामीणों की रिश्तेदारी उस वक्त के जिला लाहौर की तहसील चुन्नियां के तहत आने वाले गांव जंबर में थी। जंबर समृद्ध इलाका था। रिश्तेदारों ने सूचित किया कि अगर जंबर के लोग चाहे तो लगान अदा करके जमीन पा सकते हैं। जंबर के लोगों ने ऐसा ही किया, अंग्रेजों को लगान अदा करके जमीन हासिल कर ली। इसलिए मठदादू के लोग नाम के पीछे जंबर शब्द का इस्तेमाल करते है।

----

सात मंजिला था मठ, क्रांतिकारी लेते थे पनाह

ग्रामीण रणदीप सिंह बताते है कि अक्सर बुजुर्ग कहानी सुनाया करते थे कि मठ सात मंजिला था। सबसे ऊपरी मंजिल पर मशाल जलती थी। जो बहुत दूर से भी दिखाई देती थी। बताते है कि ऊंचाई ज्यादा होने के कारण छाया दो किलोमीटर दूर स्थित गांव मलिकपुरा में दिखाई देती थी। बुजुर्गों का यह भी कहना था कि उपरोक्त मठ में क्रांतिकारी पनाह लेते थे। जिसे अंग्रेजो विद्रोही बताते थे। इस वजह से अंग्रेजों ने मठ का बहुत बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दिया था। क्षतिग्रस्त हिस्से का कुछ अंश आज भी शेष है।

----

पानी की कमी सताती है

गांव का इतिहास करीब ढाई सौ साल पुराना हो चला है। इसके बावजूद ग्रामीणों को पानी की कमी सताती है। हालांकि भाखड़ा का पानी पहुंचता है। गांव में मटदादू माइनर की टेल है तो वहीं मिठड़ी माइनर का पानी लगता है। पीने के पानी की किल्लत हमेशा बनी रहती है। गांव से कुछ दूरी पर स्थित मौजगढ़ गांव में भाखड़ा हेड है। ग्रामीण धार्मिक है। ऐसे में धार्मिक स्थलों की संख्या ज्यादा है। मठ के अलावा गांव में जन्मीं बीबा साहिब कौर की याद में गुरुद्वारे बने है। ग्रामीण बीबा साहिब कौर को बुआ जी कहकर पुकारते थे। उनकी मान्यता गांव में ज्यादा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.