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चलती ट्रेन में बीएसएफ जवान को कचौरी खिला बेहोश किया, लूट ले गया मोबाइल और हजारों रुपये

संवाद सहयोगी डबवाली अवध-आसाम रेलगाड़ी से घर लौट रहे बीएसएफ हवलदार कश्मीर के बाराम

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Feb 2020 11:28 PM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 06:13 AM (IST)
चलती ट्रेन में बीएसएफ जवान को कचौरी खिला बेहोश किया, लूट ले गया मोबाइल और हजारों रुपये
चलती ट्रेन में बीएसएफ जवान को कचौरी खिला बेहोश किया, लूट ले गया मोबाइल और हजारों रुपये

संवाद सहयोगी, डबवाली : अवध-आसाम रेलगाड़ी से घर लौट रहे बीएसएफ हवलदार कश्मीर के बारामूला जिला के गांव सिंहपुरा निवासी शब्बीर अहम्मद को कचौरी में नशा देकर लूटने का मामला सामने आया है। लुटेरे को ढूंढते-ढूंढते जवान डबवाली पहुंच गया। बाजार में कपड़े की दुकानें छान मारी। उसका कहीं कोई सुराग नहीं लगा। दरअसल, कटिहर जंक्शन पर लुटेरा जवान के साथ सीट पर बैठा था। दोनों में बातचीत शुरू हुई तो लंबी चर्चा में बदल गई। बातों-बातों में आरोपित ने अपना नाम डबवाली निवासी नरेश बताते हुए खुद को कपड़ा कारोबरी कहा। गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के निकट बीएसएफ जवान को कचौरी खाने के लिए दी थी। जिसे खाने के बाद जवान बेहोश हो गया। बेहोशी की अवस्था में यात्रा करते हुए मंगलवार सुबह बठिडा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। बताया जाता है कि वहां जीआरपी ने उसे नीचे उतारा। कुछ देर बाद होश आया तो पर्स तथा मोबाइल गायब पाए। बताया जाता कि पर्स में जरूरी कागजात तथा 18 हजार की नकदी थी। आरोपित को ढूंढता हुआ शब्बीर डबवाली पहुंचा। 40 दिन की छुट्टी पर घर लौट रहा था

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शब्बीर अहमद के अनुसार वह बीएसएफ की 193 बीएन बटालियन में कार्यरत है। साथ ही उसका परिवार कश्मीर में सेब की खेती करता है। इस बार वह 40 दिन की छुट्टी लेकर घर जा रहा था, ताकि सेब के बाग को ठेके पर दे सकें। वह गुवाहटी रेलवे स्टेशन से अवध-आसाम एक्सप्रेस में सवार हुआ था। गोरखपुर के नजदीक कचौरी खाने के बाद उसे कुछ पता नहीं कि क्या हुआ। वह अभी तक परिजनों को सूचित नहीं कर सका है। चूंकि बारामूला इलाके में मोबाइल सेवा शुरू नहीं हुई है। मेरे पिता फौजी थे, वो कारगिल युद्ध लड़े थे, मेरा विश्वास करो

खुद को फौजी साबित करने के लिए शब्बीर अहमद को काफी मिन्नतें करनी पड़ी। उसके पास आधार कार्ड की दो फोटो कॉपी थी। जो उसने बठिडा से जम्मूतवी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए बैग में रखी थीं। उसने फोटो कॉपी दिखाते हुए कहा कि मेरे पिता गुलाम मोहम्मद डार बीएसएफ में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध लड़ा था। मैं 1996 में सेना में भर्ती हुआ था। मणिपुर में नक्सली अटैक के दौरान उसके दाएं कंधे के निकट गोली लगी थी। उसने गोली के निशान दिखाए तो लोगों को भरोसा हुआ। उसकी मदद करते हुए उसे घर तक पहुंचने का किराया दिया।


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