..जहां बॉक्सर मंजूरानी ने पांच साल बहाया पसीना वहां सरकारी रिग तक नहीं
रिठाल गांव का वह स्थान जहां बॉक्सर मंजू रानी ने पांच साल पसीना बहाया।
रतन चंदेल, रोहतक
रिठाल गांव का वह स्थान जहां बॉक्सर मंजू रानी ने पांच साल पसीना बहाया। वहां तक आज भी सरकारी रिग की सुविधा नहीं है। जबकि यहां रोजाना 50 से अधिक बच्चे एक साथ अभ्यास करने आते हैं। जिनमें दस से अधिक लड़कियां भी शामिल हैं। ये सभी नन्हें खिलाड़ी पेड़ पर पंचिग बैग लटकाकर मुक्केबाजी का अभ्यास करते हैं। यही इनका बॉक्सिग रिग हैं। आज विश्व पटल पर श्रेष्ठ महिला मुक्केबाजों में शुमार मंजू ने कभी इसी गांव में अपने प्राथमिक कोच साहब सिंह से बॉक्सिग का ककहरा सीख अपने खेल कॅरियर की शुरुआत की थी। गांव में अब एक नहीं बल्कि मंजू रानी की तरह ही और भी मुक्केबाज तैयार हो सकते हैं बशर्ते की उनको गांव में बॉक्सिग रिग आदि तमाम सुविधाएं सरकार की ओर से मुहैया कराई जाए।
ग्रामीणों की मानें तो 2012 में कोच साहब सिंह ने गांव में बच्चों की टीम तैयार की और उनको कबड्डी व बॉक्सिग के दांव पेंच सिखाने लगे। हालांकि साहब सिंह को बॉक्सिग का अनुभव नहीं था लेकिन बच्चों की पसंद के अनुसार उन्होंने उनको बॉक्सिग भी सीखाना शुरू कर दिया। मंजू ने यहीं पर बॉक्सिग का ककहरा सीखा। ग्रामीणों की मानें तो एक दिन यह खिलाड़ी रोहतक में सीआर स्टेडियम में आए तो यहां बॉक्सिग कोच सूबे सिंह बेनीवाल भी उनके खेल के प्रति जोश और उत्साह से प्रभावित हुए। उधर, गांव में खेलों के प्रति रूझान को देखते हुए कोच साहब सिंह व अन्य ग्रामीणों ने खेल विभाग से गांव में कोच मुहैया कराए जाने की मांग की। कुछ समय बाद उनकी मांग पूरी हो गई है और सूबे सिंह के रूप में बच्चों को यहां बॉक्सिग कोच मिल गया। बस फिर क्या था। इसके बाद मंजू रानी सहित तमाम खिलाड़ियों ने यहां जमकर पसीना बहाया। प्राथमिक कोच साहब सिंह ने जैसे तैसे रिग व पंचिग बैग तैयार करा बच्चों को मुहैया कराया तो सरकारी कोच सूबे सिंह ने उनको बॉक्सिग की बारीकियां सिखाई। इसके बाद सूबे सिंह का यहां से पदोन्नति के साथ तबादला हो गया तो प्राथमिक कोच साहब सिंह ने फिर से मोर्चा संभाला और खिलाड़ियों का जोश ठंडा नहीं होने दिया। वहीं, 2017 से संदीप कोच यहां बच्चों को निशुल्क अभ्यास करा रहे हैं। साहब सिंह अब शहर में आकर रहने लगे हैं और यहां भी खिलाड़ियों को निशुल्क अभ्यास करा रहे हैं। गांव में बच्चों का खेल के प्रति रूझान देकर कर मैंने 2012 में उनको निशुल्क अभ्यास कराना शुरू कराया। मंजू रानी ने भी गांव में खेतों में पंचिग बैग पर जमकर पसीना बहाया। सुविधाओं के अभाव में भी मंजू ने बेहतर प्रदर्शन किया। बॉक्सिग के प्रति उनके जुझारूपन का ही परिणाम है कि उनका नाम अब विश्व स्तर की श्रेष्ठ महिला मुक्केबाजों में शुमार किया जाने लगा है। उनकी इस उपलब्धि पर सभी को गर्व है।
- साहब सिंह, मंजू रानी के प्राथमिक कोच । खाली प्लाट में करते हैं अभ्यास :
गांव में नन्हें खिलाड़ियों के होसले बुलंद है। सुविधाओं का अभाव भी उनके जुनून को कमजोर नहीं बना पाया है। खिलाड़ी यहां खाली प्लाट में पेड़ की टहनी पर पंचिग बैग लटका कर बॉक्सिग का अभ्यास करते हैं। गांव में करीब सात साल से बच्चों को निशुल्क अभ्यास कराया जा रहा है।