समझदारों ने बांट दिया मुल्क, पागलों ने नहीं मानी सहरद की दीवार
हिदुस्तान का बंटवारा हो गया दो मुल्क बन गए हिदुस्तान और पाकिस्तान बंटवारे के कुछ सालों बाद दोनों मुल्कों की सरहदों को ख्याल आया क्यों न आम इंसानों की तरह पागलों का भी बंटवारा किया जाए। जहां तथाकथित समझदार लोग मुल्क का बंटवारा कर देते हैं दुनिया की नजरों में पागल समझे जाने वाले भाईचारे को टूटता देख सरहद की दीवार को मानने से इंकार कर रहे हैं। सआदत हसन मंटो की कहानी टोबा टेकसिंह पर आधारित नाटक बंटवारे के दर्द को बयां करता है।
जागरण संवाददाता, रोहतक : हिदुस्तान का बंटवारा हो गया, दो मुल्क बन गए, हिदुस्तान और पाकिस्तान, बंटवारे के कुछ सालों बाद दोनों मुल्कों की सरहदों को ख्याल आया क्यों न आम इंसानों की तरह पागलों का भी बंटवारा किया जाए। जहां तथाकथित समझदार लोग मुल्क का बंटवारा कर देते हैं, दुनिया की नजरों में पागल समझे जाने वाले भाईचारे को टूटता देख सरहद की दीवार को मानने से इंकार कर रहे हैं। सआदत हसन मंटो की कहानी टोबा टेकसिंह पर आधारित नाटक बंटवारे के दर्द को बयां करता है। सप्तक रंगमंडल की ओर से संडे थियेटर में इस सहादत हसन मंटो रचित कहानी टोबा टेक सिंह और गीतकार, स्क्रिप्ट राइटर गुलजार की कहानी सीमा और रावी पार पर आधारित नाटकों का का मंचन हुआ। टोबाटेक सिंह नाटक में बिशन सिंह का गांव टोबा टेक सिंह पाक के हिस्से में रह जाता है, तो वह भारत आने की बजाय सरहद के बीचों-बीच जीरो लाइन पर अपने प्राण त्याग देता है। रावी पार बंटवारे के समय पाक से पलायन करके भारत आने वाले एक परिवार की दुखभरी कहानी है। पलायन के समय इनका एक नवजात बच्चा ट्रेन में गुजर जाता है। लेकिन डर, चिता, अवसाद और घबराहट उन पर इतना हावी हो जाते हैं कि वे गलती से अपने स्वस्थ बच्चे को भी रावी में फेंक बैठते हैं और इस तरह अपने दोनों बच्चों को खो देते हैं। इनसे अलग, सीमा में एक महिला की मनस्थिति और उसके जीवन के द्वंद्वों को दिखाया गया। टोबा टेकसिंह में हेमंत गौतम, सीमा में साउद नियाजी और रावी पार में रामगोपाल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई और अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। आइएमए हाल में हुए इन एकल नाटकों का निर्देशन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की ग्रेजुएट सुनीता तिवारी नागपाल ने किया।