खुद ही बंदर पकड़ने के लिए निगम को तैयार करने थे पिजरे, डेढ़ माह बाद भी इंतजाम अधूरे
शहर की कालोनियों से बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। नगर निगम के अधिकारी हाथ पर हाथ रखकर योजना पर सिर्फ मंथन करने का बहाना बना रहे हैं।
जागरण संवाददाता, रोहतक: शहर की कालोनियों से बंदरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। नगर निगम के अधिकारी हाथ पर हाथ रखकर योजना पर सिर्फ मंथन करने का बहाना बना रहे हैं। बीते साल 15 अक्टूबर को हाउस की बैठक के दौरान फैसला लिया था कि बंदर पकड़ने का अभियान चलाया जाएगा। बाद में 24 फरवरी को बजट की बैठक के दौरान निगम के अधिकारियों ने खुद ही बंदर पकड़ने के लिए छह पिजरे तैयार करने की बात कही थी। करीब डेढ़ माह बाद निगम के अधिकारियों के दावे धरातल पर खरे नहीं उतर सके।
फिलहाल सेक्टर-1, सेक्टर-3, सेक्टर-6, सेक्टर-14, अनाज मंडी, सब्जी मंडी, कच्चाबेरी रोड, दुर्गा कालोनी, रेलवे रोड, किला मुहल्ला आदि कालोनियों में बंदरों का आतंक है। वार्ड-11 के पार्षद कदम सिंह अहलावत ने दाव किया है कि निगम के अधिकारियों से बार-बार अनुरोध किया। मगर यही कह देते हैं कि बंदरों पर सारा पैसा खर्च नहीं कर सकते। खुद के पिजरे बनाने का भी फैसला हुआ था। नगर निगम के हर दावे-वादे अधूरे रहते हैं। इसलिए भी पार्षदों की नाराजगी है। निगम हाउस की बैठक के दौरान डेढ़ साल पहले फैसला हुआ था कि कुत्ते, बंदर व बेसहारा पशुओं को पकड़वाने के लिए एक कमेटी का गठन होगा। इसमें वार्ड-11 के पार्षद कदम सिंह को चेयरमैन बनाया गया। एक साल बाद निगम के अधिकारियों की छोड़िए कर्मचारियों तक ने कोई योजना नहीं बनाई। पशु कितने पड़े, कब अभियान चलाया गया आदि तक की जानकारी नहीं दी। पागल कुत्तों को पकड़ने पशु पालन के साथ बैठक नहीं
बजट की बैठक के दौरान निगम के अधिकारियों ने दावा किया था कि पागल कुत्तों को पकड़ने के लिए पशु पालन विभाग के साथ बैठक करेंगे। फिर भी निगम के अधिकारी अपने ही आदेशों पर अमल नहीं कर सके। बजट की बैठक के दौरान वार्ड-6 के पार्षद सुरेश किराड़ ने दावा किया था कि पागल कुत्तों को पकड़वाने के लिए लोग शिकायत करते हैं तो निगम के कर्मचारी इन्कार कर देते हैं। फिर भी समस्या का समाधान नहीं हो सका। पार्षदों का कहना है कि समस्या विकराल है।