नूरां सिस्टर्स बोलीं- बेशक एक-दूसरे से अलग हो गए, पर जोड़ी आज भी सलामत है
सूफी गायक नूरां सिस्टर्स का कहना है कि जोड़ी ऊपर वाला बनता है। इसके साथ ही कुछ करिश्मा हमारी आवाज का भी है।
रोहतक [रीतू लाम्बा]। आवाज बेशक हमारी मोटी है, पर इस आवाज के जादू ने ही हमें यहां तक पहुंचाया है। कई बार लोगों ने हमारी मोटी आवाज को लेकर बोला है। इतना सुनकर भी हम दोनों कभी नहीं रुकी। यह कहना सूफी गायन के लिए लोगों के दिलोदिमाग पर छा चुकी नूरां सिस्टर्स का। उनका मानना है कि जोड़ी ऊपर वाला बनता है। इसके साथ ही कुछ करिश्मा हमारी आवाज का भी है।
बकौल नूरां सिस्टर्स हम खुदा के लिए ही गाते हैं। हम दोनों जब भी गाते हैं खुद को भूल जाते हैं और खुदा में खो जाते हैं। यह सब बातें नूरां सिस्टर्स ने मदन लाल कम्युनिटी सेंटर में आयोजित लोहड़ी और मकर संक्रांति उत्सव में दैनिक जागरण के साथ बातचीत के दौरान कहीं।
सवाल : गाने की शुरुआत कहां से हुई और किस उम्र से इस प्रोफेशन में आई?
जवाब : सुल्ताना नूरांं ने बताया कि हम दोनों के बीच उम्र का थोड़ा सही ही फासला है। मैंने सात साल और ज्योति ने 5 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया गया था। हम दोनों ने अपनी पहली प्रस्तुति 2005 में दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में दी। हम दोनों ने लगभग एक ही उम्र से गायिकी के लिए रियाज शुरू किया। उस दौरान हमें यह नहीं लगता था कि कौन बड़ा और कौन छोटा। अब तो मंच पर चढ़ते हैं और गाना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी हम दोनों में कौन क्या शुरू करेगा। इस बात पर रिहर्सल लगा लो या फिर बहस लगा लो, इस पर चर्चा हो जाती है। अभी तक हंिदूी, तमिल फिल्मों में सूफी संगीत पर काम कर चुकी हैं।
सवाल : शादी के बाद आप दोनों में कभी दूरी बढ़ी हो?
जवाब : सुल्तान नूरांं ने बताया कि शादी के बाद हम दोनों बेशक एक-दूसरे से अलग हो गए हो, लेकिन जोड़ी आज भी सलामत है। गृहस्थी में मैं अपने बेटे को संभालती हूं। ज्योति मुंबई में रहती है, तब भी मैं अपनी छोटी बहन का आज भी उतना ही ख्याल रखती हूं। शादी के बाद भी हम दोनों बहनें एक साथ ही परफॉर्म करती हैं। जब हम अकेले प्रस्तुति देते हैं, तो बहुत अजीब लगता है।
सवाल : सूफी संगीत के समय आज के आधुनिक वाद्ययंत्र से कैसे तालमेल बैठाती हैं?
जवाब : नूरांं सिस्टर्स ने बताया कि हमने गिटार से लेकर अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र में सूफी गीतों को पेश किया है। सूफी गीतों के लिए आधुनिक वाद्य यंत्र की जरूरत नहीं, बल्कि गीत, लय के साथ एहसास का होना जरूरी है। फिल्मों में तो अकसर हमारे सामने वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट ही होते हैं, लेकिन हम फिर भी अपने ही अंदाज में सूफी गीत गाते हैं। हमने वाद्य यंत्र के लिए खुद की टीम तैयार की हुई है।