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रुक जाना न कहीं हार के: 10 लाख पैकेज की जाॅब छाेड़ी, पकाैड़े व दूध बेच रहे हैं हरियाणा के प्रदीप

हरियाणा के चरखी दादरी के युवा प्रदीप बागड़ी एक मल्‍टी नेशनल कंपनी में 10 लाख सालाना की नौकरी करते थे। उन्‍होंने यह जॉब छोड़ दिया और अब पकाैड़े जलेबी और मिल्‍क पार्लर चला रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 04:12 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 08:54 AM (IST)
रुक जाना न कहीं हार के: 10 लाख पैकेज की जाॅब छाेड़ी, पकाैड़े व दूध बेच रहे हैं हरियाणा के प्रदीप
रुक जाना न कहीं हार के: 10 लाख पैकेज की जाॅब छाेड़ी, पकाैड़े व दूध बेच रहे हैं हरियाणा के प्रदीप

रोहतक, [ओपी वशिष्ठ]। 'रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पे चलके मिलेंगे साए बहार के, ओ राही.. ओ राही...' अमर गायक किशोर कुमार का यह गीत आपने जरूर सुना होगा। इस गीत से मिले संदेश को अपना जज्‍बा बनाया है हरियाणा के चरखी दादरी जिले के युवा प्रदीप श्‍याेराण ने। प्रदीप एक मल्टीनेशनल कंपनी में 10 लाख रुपये सालाना पैकेज की जॉब करते थे। अब उसे छोड़कर मिल्‍क पार्लर चला रहे हैं और पकाैड़े व जलेबी बेच रहे हैं।

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दस लाख रुपये सालाना का पैकेज छोड़कर शुरू किया था रोहतक में बागड़ी मिल्क पार्लर

प्रदीप ने जॉब छोड़ने के बाद स्टार्ट्सअप के रूप में बागड़ी मिल्क पार्लर शुरू किया। वह इसके माध्‍यम से देसी गाय का दूध उपलब्ध कराते थे। लोग इसे ऑर्गेनिक मिल्क पार्लर कहते थे। दसके साथ में वह तंदूरी चाय, जलेबी और देसी घी के पकौड़े भी उपलब्ध कराते हैं। लॉकडाउन में यह काम बंद सा हो गया तो वह दादरी जिले में स्थित अपने गांव पहुंच गए। गांव में तरबूज और खरबूजे की खेती की। उससे लाभ कमाते हुए कर्मचारियों का वेतन दिया। अब फिर से अपना मिल्क पार्लर और पकौड़े व जलेबी की दुकान खोल दी है।

 

तंदूरी चाय, ऑर्गेनिक गर्म व ठंडा दूध, जलेबी और देसी घी के पकौड़ों का स्टार्टअप रहा हिट

मूल रूप से चरखी दादरी के गांव मांडी पिरानू निवासी 25 वर्षीय प्रदीप श्योराण ने हिसार के गुरु जंबेश्वर विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद कई कंपनियों में जॉब की। कंपनी में बतौर मर्केटिंग मैनेजर के पद तक पहुंच गए। लेकिन, अचानक उनको स्वरोजगार अपनाने का आइडिया आया। दो साल पहले नौकरी छोड़कर रोहतक में बागड़ी मिल्क पार्लर शुरू किया, जिसमें गाय के दूध और उससे बने प्रोडक्ट बेचना शुरू कर दिया।चूंकि प्रोडक्ट हेल्थ से जुड़े थे, इसलिए कारोबार रफ्तार पकड़ने लगा।

तरबूज की खेती के मुनाफे से दिया कर्मचरियों को वेतन, युवा उद्यमी ने फिर शुरू किया मिल्क पार्लर

धीरे- धीरे पार्लर में उत्पाद बढ़ाने लगे, लेकिन इसी बीच कोरोना महामारी आ गई, जिसमें कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। मुश्किल क की घड़ी प्रदीप ने हौसला नहीं खोया। गांव में चले गए और तरबूज और खरबूजे की खेती की, लेकिन पार्लर के कर्मचाारियों को नहीं जाने दिया। प्रदीप ने तरबूज की खेती के मुनाफे से उनका वेतन दिया। सरकार ने जैसे ही कोरोना महामारी में कारोबार में राहत दी, तुरंत उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया।

लॉकडाउन में पांच कर्मचारियों को दिया 75 फीसद वेतन

प्रदीप श्योराण ने बताया कि मिल्क पार्लर में पांच कर्मचारी हैं। कोरोना महामारी में काम बंद हो गया। कर्मचारी अपने घर जाना चाहते थे। इस पर उन्होंने 75 फीसद वेतन का प्रस्ताव दिया। इससे कर्मचारियों को राहत मिली और वे रुकने को राजी हो गए। चूंकि काम-धंधा तो बंद था, इसलिए वेतन और पार्लर का किराया देना भारी हो गया। उन्होंने गांव में तरबूज और खरबूज की खेती की।

इसके बाद भगवान ने उनकी सुनी और अच्छी पैदावार हुई। फसल में हुए मुनाफे को कर्मचारियों के वेतन में रूप में खर्च कर दिया। कुछ परिवार से रुपये लिए और किराया दे दिया। अब दोबारा से काम शुरू कर दिया है। खर्च निकलना शुरू हो गया, आने वाले दिनों में मुनाफ भी मिलने लगेगा।

मिल्क पार्लर में प्रोडक्ट बढ़ाने का निर्णय

प्रदीप ने मिल्क पार्लर में गाय के दूध व दूध से बने प्रोडक्ट, तंदूरी चाय के अलावा देसी घी की जलेबी, पकौड़े भी शुरू कर दिए थे। प्रोडक्ट की मांग भी अच्छी खासी हो गई। अब खर्च ज्यादा हो गया है, इसलिए फ्रूट चाट व अन्य स्टॉल भी शुरू करने का निर्णय लिया है। पार्लर को पूरी तरह से देशी लुक दिया गया है। पार्लर को हर वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है।

पर्यावरण और स्वच्छता का विशेष ध्यान

पार्लर को पूरी तरह से इको फ्रेंडली बनाया गया है। चाय और दूध प्लास्टिक व डिस्पोजल में देने की बजाय मिट्टी के कुल्हड़ में दिया जाता है। इससे एक तो पर्यावरण संरक्षण होगा, वहीं कुंभकार को भी रोजगार मिलेगा। साथ ही, गाय के दूध का ज्यादा इस्तेमाल करने से गाय का भी संरक्षण हो और लोग आमदनी के लिए गाय पालने में आगे आएंगे।

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