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पीड़ा संघर्ष और कुर्बानियों से गुजर रहा अन्नदाता : दीपेंद्र हुड्डा

आज देश और प्रदेश का अन्नदाता पीड़ा संघर्ष और कुर्बानियों के दौर से गुजर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 07:00 AM (IST)
पीड़ा संघर्ष और कुर्बानियों से गुजर रहा अन्नदाता : दीपेंद्र हुड्डा
पीड़ा संघर्ष और कुर्बानियों से गुजर रहा अन्नदाता : दीपेंद्र हुड्डा

संवाद सहयोगी, महम :

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आज देश और प्रदेश का अन्नदाता पीड़ा, संघर्ष और कुर्बानियों के दौर से गुजर रहा है। अपनी जायजा मांगों को लेकर वो दिल्ली बॉर्डर समेत प्रदेश के अलग-अलग इलाको में खुले आसमान के नीचे इस कड़कड़ाती ठंड में धरने दे रहा है। ऐसे में नए साल या जन्मदिन का जश्न मनाना उचित नहीं है। ये कहना है राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा का। सांसद दीपेंद्र शुक्रवार को नए साल के मौके पर मदीना टोल प्लाजा पर किसानों के बीच पहुंचे थे। साल का पहला दिन उन्होंने किसानों के बीच बिताया।

दीपेंद्र हुड्डा ने ऐलान किया कि वो किसान आंदोलन के चलते इस बार चार जनवरी को अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे। क्योंकि अन्नदाता अगर पीड़ा में है तो हम खुशियां नहीं मना सकते। इसलिए उन्होंने फैसला लिया है कि वो चार जनवरी को पूरा दिन किसानों की सेवा में बिताएंगे। वो प्रदेश में जारी अलग-अलग धरनास्थलों पर पहुंचकर किसानों की सेवा करेंगे और उनका आशीर्वाद लेंगे। साथ ही उन्होंने अपने सभी साथियों और शुभचितकों से भी यही अपील की। उन्होंने कहा कि आप लोग हर जन्मदिन पर हजारों की तादाद में उन्हें बधाई और आशीर्वाद देने पहुंचते हैं। लेकिन इस बार ऐसा करने की बजाय आप लोगों को किसानों के बीच पहुंचना चाहिए और उनकी हर संभव मदद और सेवा करनी चाहिए। यहीं तमाम लोगों की तरफ से उनके लिए जन्मदिन का आशीर्वाद होगा। इस मौके पर सांसद दीपेंद्र और आनंद सिंह दांगी के साथ रोहतक से विधायक बीबी बतरा, चौधरी सोमबीर सिंह, बलराम दांगी समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। किसानों की मांगे पूरी तरह जायज : दांगी

महम से पूर्व विधायक आनंद सिंह दांगी ने कहा कि किसानों की मांगे पूरी तरह जायजा हैं। तीन कृषि कानून पूर्ण रूप से किसानों के खिलाफ हैं। इसका किसान ही नहीं गरीब, मजदूर, आम उपभोक्ता, हर वर्ग पर विपरित असर पड़ेगा। इसलिए सरकार को जल्द से जल्द तीनों कानून वापस लेने चाहिए। 37 दिन से पूरे देश में इतना बड़ा आंदोलन चल रहा है। 40 से ज्यादा किसान अपनी जान की क़ुर्बानी दे चुके हैं, लेकिन सरकार पूरी तरह संवेदनहीन बनी बैठी है।


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