कौशल के बल पर सोना बनी मिट्टी
लाकडाउन की लंबी अवधि और इसके साथ ही कोरोना की पाबंदियों ने बहुत से ऐसे चूल्हों को ठंडा कर दिया था जिनकी रोजी-रोटी हाथ की दस्तकारी पर निर्भर है।
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी: लाकडाउन की लंबी अवधि और इसके साथ ही कोरोना की पाबंदियों ने बहुत से ऐसे चूल्हों को ठंडा कर दिया था, जिनकी रोजी-रोटी हाथ की दस्तकारी पर निर्भर है। अब दीपावली का पावन पर्व आया है तो उन चेहरों पर भी मुस्कान आई है जो मिट्टी के दीपक बनाकर बाजारों में बेचते हैं। इस दीपावली मिट्टी के दीयों की भी बाजारों में जमकर बिक्री हुई। मिट्टी के दीये बनाने वाले प्रजापत समाज के ये लोग सालों से वोकल फार लोकल के नारे को बुलंद कर रहे हैं।
चाइनीज लाइटों को पछाड़ रहे मिट्टी के दीपक
दीपावली पर हर साल चाइनीज लड़ियों से ही घर रोशन होते थे लेकिन इस बार माहौल पूरी तरह से बदला हुआ है। कोरोना के चलते चीन से माल नहीं आया, जिसका पूरा फायदा भारतीय बाजार को मिला है तथा स्थानीय उत्पादों की मांग बढ़ी है। प्रजापत समाज के लोग मिट्टी के दीपक व बर्तन बनाने के काम में पीढि़यों से जुटे हैं। समय बदला तो इनका काम भी कम होता चला गया। मिट्टी के दीपक का स्थान मोमबत्तियों व बिजली से जलने वाली चाइनीज लड़ियों ने ले लिया, लेकिन अब धीरे-धीरे फिर से इनके पुराने दिन लौटने लगे हैं।
मोहल्ला कुतुबपुर में सालों से मिट्टी के दीपक व बर्तन बनाने का काम कर रहे राजेंद्र कुमार ने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम हैं। जो परदादा करते थे वही दादा और पिता के बाद अब उनके हिस्से में आया है। आधुनिकता ने उनके हाथों से दो वक्त की रोटी को भी छीन लिया था लेकिन अब फिर से पुराने दिन लौटने की उम्मीद बंधी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोकल फार लोकर का जो नारा दिया है, उससे उनके उत्पादों की भी कद्र बढ़ी है। इस बार चीन की लाइटें नहीं आई तो मिट्टी के दीपक की मांग बढ़ी है। हमारे हुनर को भी अब कद्रदान मिलने लगे हैं।