¨जदगी छीन सकती है अल्ट्रासाउंड केंद्रों की लापरवाही
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : कभी पुरुष के पेट में गर्भाश्य तो कभी दो बच्चों की जगह एक ही बच्च
जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : कभी पुरुष के पेट में गर्भाश्य तो कभी दो बच्चों की जगह एक ही बच्चे को रिपोर्ट में दिखाना। अल्ट्रासाउंड केंद्रों की यह लापरवाही जानलेवा साबित हो रही है। उनकी गलत रिपोर्ट मर्ज का पता लगाने की बजाय ¨जदगी छीन भी सकती है और ऐसा हाल ही में गुरुग्राम में हुआ भी है, जिसके चलते जन्म से पहले ही एक बच्चे की मृत्यु हो गई।
अल्ट्रासाउंड केंद्रों की कमी, लगती है भीड़
जिले में अल्ट्रासाउंड केंद्रों की बड़ी कमी है। नागरिक अस्पताल की ओर से 68 मशीनों को लाइसेंस दिया गया है। इनमें से 29 मशीनों को चिकित्सकों ने स्वेच्छा से बंद किया हुआ है। महज 39 अल्ट्रासाउंड मशीनें ही चल रही हैं, जबकि जिले में महज एक दर्जन ही रेडियोलॉजिस्ट हैं, बाकी की मशीनों को एमबीबीएस चिकित्सक ही इस्तेमाल कर रहे हैं। रेडियोलॉजिस्टके गिने चुने अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर सुबह से लेकर शाम तक मरीजों की लंबी लाइनें लगती है। शायद ही कोई केंद्र हो जिस पर एक घंटे से पहले नंबर आता हो। प्रतिदिन 100 के लगभग अल्ट्रासाउंड कर रहे रेडियोलॉजिस्ट सभी रिपोर्ट को ठीक तरीके से बना रहे हों, ऐसी संभावना भी कम ही लगती है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि रेडियोलॉजिस्ट हर रिपोर्ट को स्वयं नहीं बनाते, बल्कि वहां मौजूद ऑपरेटर तय फारमेट में रिपोर्ट बनाता है और रेडियोलॉजिस्ट उसको देखकर हस्ताक्षर करते हैं। ऐसे में गलती की गुंजाइश भी कहीं न कहीं रह जाती है।
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संदेह हो तो लेवल-2 का कराए अल्ट्रासाउंड
डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. सर्वजीत थापर का कहना है कि किसी भी अल्ट्रासाउंड में अगर कोई संदेह हो तो चिकित्सक को मरीज का लेवल-2 का अल्ट्रासाउंड करना चाहिए। लेवल-2 में सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं। या तो इसमें चिकित्सक लापरवाही कर जाते हैं या फिर मरीज पैसे अधिक लगने की बात को देखते हुए लेवल-2 अल्ट्रासाउंड नहीं कराते। ऐसे में संदेह रहने पर रिपोर्ट भी ठीक नहीं आती। इसके अतिरिक्त एमबीबीएस भी अपने यहां पर अल्ट्रासाउंड करते हैं, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट द्वारा किया जाने वाला अल्ट्रासाउंड ही ज्यादा विश्वसनीय होता है। वहीं, अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ज्यादा मरीज होने के कारण चिकित्सक हर रिपोर्ट को ध्यान से देख नहीं पाते और लापरवाही से किए गए हस्ताक्षर मरीज को खासे भारी पड़ सकते हैं।
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रिपोर्ट पूरी तरह से ठीक बने, इसके लिए आवश्यक है कि रेडियोलॉजिस्ट कंप्यूटर पर रिपोर्ट को कट-पेस्ट करना छोड़े। प्रत्येक मरीज की पूरी रिपोर्ट नए सिरे से बनाई जाए तो गलती नहीं होगी। इसके अतिरिक्त रेडियोलॉजिस्ट रिपोर्ट को अच्छे से पढ़कर ही साइन करे। रिपोर्ट को गंभीरता से बनाने के लिए जिले के तमाम रेडियोलॉजिस्ट की शीघ्र ही मी¨टग भी ली जाएगी, क्योंकि गलत रिपोर्ट मरीज का जीवन भी छीन सकती है।
-डॉ. कृष्ण कुमार, सिविल सर्जन।