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संस्कारशाला:: लक्ष्य प्राप्ति के लिए जुनून व समय प्रबंधन जरूरी

दीपा कर्माकर की प्रेरक कहानी जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : हर कोई अपने क्षेत्र में सफल

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 06:31 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 06:31 PM (IST)
संस्कारशाला:: लक्ष्य प्राप्ति के लिए जुनून व समय प्रबंधन जरूरी
संस्कारशाला:: लक्ष्य प्राप्ति के लिए जुनून व समय प्रबंधन जरूरी

दीपा कर्माकर की प्रेरक कहानी जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : हर कोई अपने क्षेत्र में सफल होना चाहता है। इसके लिए वह अपना हरसंभव प्रयास करता है, लेकिन कई बार यह प्रयास कामयाबी दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं होता। कामयाब होने के लिए नई सोच, स्वयं पर भरोसा व अपनी गलतियों से सीख लेना आवश्यक है। इससे भी ज्यादा जुनून और समय प्रबंधन बेहद जरूरी है। लीक से हटकर सोचने के साथ प्रयास कर प्राप्त की गई सफलता का जीवन में आनंद अलग होता है। कभी कभी असफल होने पर व्यक्ति के मन में कुंठा घर कर जाती है। व्यक्ति अपनी क्षमता पर संदेह करने लगता है। ऐसी स्थिति में नई सोच व मनोबल लक्ष्य तक पहुंचाएगा। असफलता के भूत को अपने मन में जगह न बनाने दें क्योंकि यह ¨चता से भी अधिक विनाशकारी होता है। असफलताओं से सफलता प्राप्त करने का जुनून अंतर्राष्ट्रीय जिम्नास्टिक खिलाड़ी दीपा कर्माकर के जीवन से सीखा जा सकता है। उन्होंने साबित किया कि ओलंपिक जैसे बड़े टूर्नामेंट में खेलने का लक्ष्य हासिल करने के लिए नैसर्गिक प्रतिभा ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सच्ची लगन भी जरूरी है। दीपा कर्माकर के मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा था, जिससे आज वे दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हैं। छह साल की उम्र में दीपा ने जिम्नास्टिक का प्रशिक्षण लेना आरंभ किया था। अगरतला में दीपा को प्रशिक्षक बिश्वेस्वर नंदी ने जिम्नास्टिक का प्रशिक्षण दिया। दीपा के पैरों के आकार के कारण नंदी को भी उन्हें प्रशिक्षित करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। हालांकि जिम्नास्टिक दीपा की पहली पसंद नहीं थी लेकिन उनके पिता दुलाल ने उन्हें इस ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जब एक बार या बार-बार प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में निराश न होकर अपनी सोच व मनोबल पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ने से कामयाबी अवश्य मिलती है। कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए 5 प्रतिशत प्रेरणा तथा 95 प्रतिशत कड़ी मेहनत व जुनून की आवश्यकता होती है। जब आप जी जान से किसी काम में लग जाते हैं तो कामयाबी अवश्य मिलती है। जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने के लिए समय प्रबंधन भी आवश्यक है। जब आप समय पर हर कार्य करेंगे तो अवश्य ही सफलता आपके कदम चूमेगी।

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- पवन भारद्वाज, निदेशक, भारती सीनियर सेकंडरी स्कूल, बोड़ियाकमालपुर।

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कामयाबी के लिए हौसला जरूरी बचपन में पैर समतल होने पर अथक परिश्रम करके अपनी लगन के दम पर ओलंपिक तक का सफर तय करने वाली दीपा कर्माकर आज हर वर्ग के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुईं हैं। रियो ओलंपिक के जिम्नास्टिक के फाइनल में अपनी जगह बनाने वाली दीपा कर्माकर पहली भारतीय महिला है। दीपा दुनिया की उन पांच महिला खिलाड़ियों में से एक हैं, जो सफलतापूर्वक प्रोडुनोवा वॉल्ट कर पाती हैं। 52 साल बाद भारत का कोई जिम्नास्ट ओलंपिक में उतरा और उपलब्धि हासिल कर ली। हमें उनके जीवन से प्रेरणा मिलती है कि उनके जीवन में प्रत्येक वस्तु का अभाव होने पर संघर्ष व कड़ी मेहनत के साथ जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। उनकी शिक्षा है कि आने वाली पीढ़ी को नवीनतम उपकरणों के माध्यम से खेल के प्रति रुचि पैदा कर अपने जीवन को सफलता बनाना चाहिए। एक अच्छा व सफल खिलाड़ी अपनी मातृभूमि को उच्चतम शिखर पर पहुंचा सकता है। जिम्नास्टिक में अद्वितीय प्रदर्शन के लिए अर्जुन अवार्ड प्राप्त दीपा कर्माकर ने जीवन में उतार चढ़ाव का दौर देखा है, लेकिन वे कमजोरियों को हथियार बनाकर सफलता के शिखर तक पहुंची। आजादी के बाद से भारत की ओर से 11 पुरुष जिम्नास्ट ओलंपिक खेलों में शामिल हुए थे। वह भी 1952 में दो, 1956 में तीन और 1964 में छह खिलाड़ी शामिल हुए थे। दीपा दुनिया की ऐसी चु¨नदा पांच जिम्नास्ट में शामिल हैं, जो प्रतियोगिता के दौरान बेहद मुश्किल प्रॉडुनोवा वॉल्ट करती हैं। दीपा ने 2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। किसी भी ओलंपिक में प्रतिभागी करने वाली वे देश की पहली महिला जिम्नास्ट हैं। इस ओलंपिक में उन्होंने फाइनल में जगह बनाई और मामूली अंतर से कांस्य पदक से वंचित हुईं। भले ही वह कोई पदक नहीं जीत पाईं हों, लेकिन इस उपलब्धि ने उन्हें देशभर में प्रसिद्ध कर दिया। दीपा की कहानी इस बात का प्रमाण है कि लक्ष्य के प्रति केंद्रित ²ष्टि, उसे प्राप्त करने के लिए सतत प्रयास व मन में जुनून हो तो सफलता खुद ब खुद कदम चूमने लगती है। जरूरत इस बात की है कि हम अपना मनोबल कम नहीं होने दें और अर्जुन की तरह लक्ष्य पर पूरी दृष्टि रखें।

- सरिता यादव, ¨प्रसिपल, राव निहाल ¨सह पब्लिक स्कूल दड़ौली।


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