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शौर्य गाथाः पाकिस्तानियों में था लालचंद का खौफ, पांच आतंकियों को उतार दिया था मौत के घाट

लालचंद एलएमजी चलाने व सटीक निशाना लगाने में पारंगत थे। जब बार्डर पर ड्यूटी होती थी तो सामने की पोस्ट पर मौजूद रहने वाले पाकिस्तानियों में भी उनका खौफ रहता था। उनके मौसेरे भाई ग्रेनेडियर ओमकार कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 04:15 PM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 04:15 PM (IST)
शौर्य गाथाः पाकिस्तानियों में था लालचंद का खौफ, पांच आतंकियों को उतार दिया था मौत के घाट
नायक लालचंद यादव की फाइल फोटो। सौजन्य स्वजन

रेवाड़ी [कृष्ण कुमार]। अहीरवाल का इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है। जिले के गांव कहाड़ी निवासी नायक लालचंद यादव व उनके परिवार की शौर्य गाथा भी गर्व से सिर ऊंचा कर देती है। कारगिल युद्ध में जख्मी होने के बाद भी नायक लालचंद ने पहाड़ी पर घात लगाए बैठे पांच आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था। उनके शरीर पर ग्रेनेड हमले से जख्मी होने के निशान आज भी मौजूद हैं। साल 1971 के युद्ध में लालचंद के ताऊ कैप्टन नंदराम भी अपनी वीरता दिखा चुके है। सेना ने कैप्टन नंदराम को वीर चक्र से सम्मानित किया था।

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पहाड़ी पर छिपे थे पांच आतंकी

गांव कहाड़ी निवासी नायक लालचंद कारगिल युद्ध के दौरान 22 ग्रेनेड अल्फा कोर में शामिल थे। उनकी नियुक्त कश्मीर अनंतनाग क्षेत्र में ओपी रक्षक में थी व टीम में 15 जवान शामिल थे। युद्ध के दौरान पता लगा कि अनंतनाग के एक गांव में पहाड़ी पर पांच आतंकी छिपे हैं। लालचंद के अनुसार जब वह पहाड़ी पर चढ़ रहे थे तो ऊपर घात लगाए बैठे आतंकियों ने फायरिंग व ग्रेनेड से हमला कर दिया था।

लालचंद पोजिशन लेते हुए आतंकियों के करीब पहुंच गए व एलएमजी (लाइट मशीनगन) से हमला कर दो आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। गड्ढे में छिपे कुछ अन्य आतंकवादियों व उनके बीच क्रास फायरिंग होती रही। आतंकियों ने ग्रेनेड से हमला किया, जिसमें उनका एक हाथ व एक पैर जख्मी हो गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। आतंकियों को ललकारते हुए कहा कि हम हिंदुस्तानी मर जाएंगे, लेकिन कभी पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने दो और आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। पांचवें आतंकी ने भागने का प्रयास किया, उसे भी ढेर कर दिया।

पाकिस्तानियों में था लालचंद का खौफ

लालचंद एलएमजी चलाने व सटीक निशाना लगाने में पारंगत थे। जब बार्डर पर ड्यूटी होती थी तो सामने की पोस्ट पर मौजूद रहने वाले पाकिस्तानियों में भी उनका खौफ रहता था। उनके मौसेरे भाई ग्रेनेडियर ओमकार कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।


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