जानिए कैसे बची राव इंद्रजीत सिंह के करीबी मंत्री की कुर्सी, पढ़िए- मनोहर मंत्रिमंडल विस्तार की इनसाइड स्टोरी
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत के एक खास सिपहसालार की कुर्सी खिसकने की चर्चाओं पर अब विराम लग गया है। राव ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए करीबी मंत्री की कुर्सी बचा ली है। भाजपा और सीएम मनोहर लाल ने भी मौके की नजाकत को समझा।
रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही बहुत सी बातें स्पष्ट हो गई है। हालांकि हमेशा की तरह इस बार भी निकट भविष्य में किसी की विदाई होने व किसी की एंट्री होने के प्रचार से कुछ विधायक उम्मीद का झुंझुना बजाते रहेंगे, मगर वर्तमान स्थिति की बात करें तो मुख्यमंत्री मनोहर का संदेश स्पष्ट है-डोर खींचो, मगर इतनी भी नहीं की टूट जाए। दक्षिण हरियाणा से एक मंत्री की विदाई होने की लंबे समय से चल रही चर्चाओं पर आज विराम लगने के पीछे यह भी एक बड़ा कारण है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत की नरमी व मुखिया मनोहर की की रणनीति ने राव के सिपहसालारों की कुर्सियां सुरक्षित रखी है।
राव इंद्रजीत के एक खास सिपहसालार की कुर्सी खिसकने की चर्चाओं ने झज्जर जिले के गांव पाटौदा में 23 सितंबर को हुई राव इंद्रजीत सिंह की रैली के बाद जोर पकड़ा था। हालांकि इस रैली को शहीदी दिवस समारोह नाम दिया गया था, मगर राजनीति के जानकार जानते हैं कि राव की रैली राजनीतिक थी। यह आयोजन केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की जन आशीर्वाद यात्रा का रूट गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र में निर्धारित करने और यात्रा के दौरान पूर्व मंत्री जगदीश यादव और रणधीर कापड़ीवास जैसे राव विरोधी चेहरों को तवज्जो देने के विरोध में अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने के लिए किया गया था। उस समय पार्टी प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की मौजूदगी में जिस तरह राव व उनकी बेटी आरती राव ने इस रैली में पार्टी की रीति-नीति को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ललकारा था, उससे भाजपा में राव के खिलाफ माहौल बनने लगा था, मगर हालात को भांपकर राव ने जल्दी ही डैमेज कंट्रोल कर लिया।
पटौदा रैली के बाद राव ने दो बार सीएम के साथ मंच साझा किया, मगर कहीं पर भी पाटौदा जैसे तेवर नहीं दिखाए। पिछले महीने बावल में हुई मनोहर की रैली में तो राव बेहद विनम्र रहे। सत्ता और संगठन की भी अपनी रणनीति रहती है। वर्तमान परिस्थितियों में सत्ता के मुखिया और पार्टी के मुखिया दोनों ही राव को नाराज करना नहीं चाहते। राज्यमंत्री ओमप्रकाश को राव का सबसे वफादार माना जाता है। कोसली के विधायक लक्ष्मण यादव के लिए रोहतक के सांसद डा. अरविंद शर्मा पूरी पैरवी कर रहे थे और लक्ष्मण भी हर जगह यह तर्क दे रहे थे कि रोहतक लोकसभा क्षेत्र से एकमात्र विधायक होने के कारण उन्हें पद दिया जाना पार्टी के लिए फायदे का सौदा रहेगा, मगर लक्ष्मण को बनाने के लिए तीन को नाराज करना पड़ता।
रेवाड़ी जिले से पहले ही डा. बनवारीलाल मंत्री हैं। इनकी गिनती भी राव के खास समर्थकों में होती है। हालांकि इन्हें कुछ समय से राव से अधिक संगठन के प्रति भी निष्ठावान माना जाता है, मगर डा. लाल बावल में राव की ताकत से अनजान नहीं है। अगर मनोहर, लक्ष्मण यादव को मंत्री बनाते तो उन्हें दूसरे यादव विधायक ओमप्रकाश को मंत्रीपद से हटाना पड़ता। इसके अलावा डा. लाल की भी छुट्टी करनी पड़ती। ऐसे में एक को राजी करने के लिए तीन को नाराज करने का जोखिम पार्टी नहीं ले सकती थी। भाजपा भी वर्तमान चुनौतीपूर्ण माहौल में राव जैसे कद्दावर नेता की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती थी। मनोहर की यह रणनीति और राव का बदला रुख सिपहसालारों को बचा गया।
चर्चा में है राव की चाय
इन दिनों राव की चाय भी चर्चा में है। राव बारी-बारी से हर पखवाड़े अपने कार्यकर्ताओं को चाय पर बुला रहे हैं। भाषण शैली छोड़कर सभी कार्यकर्ताओं की टेबल तक खुद पहुंच रहे हैं। उनसे फीडबैक ले रहे हैं। राव अपने समर्थकों की फौज को इतनी मजबूती देने में लगे हुए हैं, जिससे भाजपा में मान-सम्मान को ठेस पहुंचने की सूरत में उनकी राजनीति जिंदाबाद रहे। राव समर्थकों का कहना है कि, मूंछों की मरोड़ राव की पहचान है। इसे मरोड़ी लगाने का प्रयास हुआ तो नरम रुख फिर गरम होगा अन्यथा एक का साथ दूसरे को ताकत देने का काम करेगा।