बरगद और पीपल के पेड़ वन विभाग की नहीं बन पा रहे प्राथमिकता, दुर्लभ हुई वट वृक्ष की छाया
पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बरगद (वटवृक्ष अथवा बड़) और पीपल वन विभाग की प्राथमिकता नहीं बन पा रहे हैं। सरकारी नर्सरियों का आंकड़ा इसका गवाह है।
रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। पर्यावरण की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बरगद (वटवृक्ष अथवा बड़) और पीपल वन विभाग की प्राथमिकता नहीं बन पा रहे हैं। सरकारी नर्सरियों का आंकड़ा इसका गवाह है। बड़-पीपल और गूलर न केवल पर्यावरण व पर्यावास के लिए उपयोगी हैं, बल्कि हमारी सनातन संस्कृति का भी आधार हैं। लेकिन, नर्सरियों में इनकी संख्या 10 फीसद भी नहीं है।
सेवानिवृत्ति के बाद संन्यास लेकर हरिद्वार में रह रहे पूर्व वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान (अब स्वामी ज्ञानानंद) के अनुसार, बड़-पीपल को लेकर भूत-प्रेत जैसी भ्रांतियां फैली है, मगर कभी दुष्प्रचार के पीछे का विज्ञान नहीं समझाया गया। ऋषि-मुनियों ने इन पौधों को घर के निकट लगाने की इसलिए मनाही की थी, क्योंकि जड़ों का विस्तार जहां घरों को नुकसान पहुंचा सकता था। वहीं, इनके फल में मौजूद कीट और फैलाव से होने वाली गंदगी समस्या थी। खेती की जमीन में इसलिए मनाही थी, क्योंकि इन पेड़ों के नीचे फसल नहीं हो पाती।
क्यों नहीं लग पा रहे वट वृक्ष
बड़ और पीपल को अधिक पानी की जरूरत होती है। धार्मिक दृष्टि से जल अर्पित करने के विधान के पीछे का विज्ञान भी यही है। वन विभाग सिर्फ दो वर्ष तक सिंचाई के लिए बजट उपलब्ध करवाता है। मृत पौधों की संख्या में कमी रखने व इसी बजट में काम चलाने की बाध्यता ने कम उपयोगी पौधों की संख्या बढ़ाई जबकि अधिक उपयोगी पौधों को प्राथमिकता से बाहर कर दिया।
सरकारी नर्सरी में हर किस्म का पौधा तैयार करने के लिए मात्र साढ़े 14 रुपये का बजट मिलता है। पौधे को अन्यत्र रोपने व मेंटीनेंस के लिए कुछ वर्षो तक अलग बजट अवश्य मिलता है, लेकिन पर्याप्त नहीं। सिंचाई, खाद व अन्य खर्च मिलाकर 1100 पौधों के लिए मात्र 97200 रुपये मिलते हैं। निजी नर्सरियों में दो-तीन वर्ष की उम्र का नीम लगभग 50 रुपये व बड़ एवं पीपल का पौधा लगभग 80 रुपये का मिलता है। अच्छी गुणवत्ता के फल वाले पौधे 500 रुपये से भी अधिक कीमत तक बिक रहे हैं। सरकारी नर्सरियों से बिक्री नहीं होती, बल्कि इनका निशुल्क वितरण होता है, मगर उपयोगी पौधे कम, कम उपयोगी अधिक वितरित होते हैं। यह सिस्टम बदलना होगा।
शुष्क क्षेत्रों के लिए क्या है श्रेष्ठ
खेतों में: जांटी अथवा खेजड़ी का पौधा लगाएं। यह ऐसा पौधा है जिसको सबसे कम पानी की जरूरत होती है। इस पेड़ की विशेषता यह है कि इसके नीचे बोई गई फसल खराब नहीं होती, जबकि दूसरे पेड़ों के नीचे खेती नहीं हो पाती।
घरों में: नीम का पौधा लगाएं। यह चलती-फिरती प्रयोगशाला है। पांच-छह इंच मोटाई का तना होने के बाद कम पानी में ही बढ़ता रहता है।
हरियाणा के वन मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने इस संबंध में कहा कि हमारी सभी नर्सरियों में वट वृक्ष व पीपल उपलब्ध हैं। सरकार दैनिक जागरण के सुझावों पर विचार करेगी और निश्चित रूप से बड़-पीपल के पौधों की संख्या बढ़ाई जाएगी। अच्छे पौधों के लिए बजट बढ़ाने पर विचार करेंगे।
वहीं, डॉ. आरपी बालवान उर्फ स्वामी ज्ञानानंद का कहना है कि अगर वन विभाग बजट बढ़ा दे तो पहाड़ियों की तलहटी, निर्जन स्थानों, आरक्षित व संरक्षित जंगल और पंचायती जमीन पर लाखों बड़-पीपल लग सकते हैं। जगह की कमी बहाना है। तालाबों और जलाशयों के किनारों पर अभी संभावनाएं मौजूद हैं। इन्हें घरों, नहरों व रेल पटरियों के पास लगाना उचित नहीं, मगर इसकी आड़ में इन बहु उपयोगी जीवनदायी पौधों से प्रेम कम न करें। -
जागरण सुझाव
कहां लगाएं बड़-पीपल
- पहाड़ों की तलहटी में।
- नदियों के किनारों पर।
- पंचायती भूमि पर।
- आरक्षित व संरक्षित वन क्षेत्र में।
- कहां पर न लगाएं बड़-पीपल
- नहर के किनारों पर।
- रेल पटरियों के साथ।
- खेतों के किनारों पर।
- बिना चौड़ी ग्रीन बेल्ट वाली सड़कों पर।