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कोरोना की नहीं घर पहुंचने की है चिता

कोरोना संक्रमण के बढ़ रहे मामलों और लाकडाउन के बीच लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ने लगा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 May 2021 07:02 PM (IST)Updated: Sat, 08 May 2021 07:02 PM (IST)
कोरोना की नहीं घर पहुंचने की है चिता
कोरोना की नहीं घर पहुंचने की है चिता

जागरण संवाददाता, रेवाड़ी : कोरोना संक्रमण के बढ़ रहे मामलों और लाकडाउन के बीच लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ने लगा है। जिसके चलते हर कोई अपने घर पहुंचना चाहता है। शनिवार को रेलवे स्टेशन पर सैकड़ों की संख्या में यात्रियों की भीड़ इसी प्रकार की भावना व्यक्त कर रही थी। उदयपुर से चलकर दोपहर 12:30 बजे रेवाड़ी जंक्शन पर पहुंची उदयपुर न्यू जलपाईगुड़ी ट्रेन में बैठने के लिए यात्रियों की भीड़ बता रही थी कि उन्हें अपने घर जाने की कितनी जल्दबाजी है। गाड़ी में सवार होने वालों में उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल के नागरिक कोई अकेले तो कोई बच्चों और स्वजन के साथ भारी भरकम सामान लेकर विभिन्न कोच में चढ़ने की जद्दोजहद कर रहे थे। अधिकांश यात्रियों की सीट आरक्षित थी लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो बिना आरक्षण के ही सफर पर निकल पड़े थे। घर पर जाकर करेंगे खेती

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इन यात्रियों का कहना था कि लाकडाउन लगने के कारण सभी प्रकार के काम धंधा ठप हो गए हैं। जल्द राहत मिलने की संभावना भी नहीं है। ऐसे में यहां बेरोजगार होकर बैठे रहने से अच्छा है, घर पर जाएंगे तो मक्का तोड़ने और बागवानी कर आर्थिक परेशानी कुछ तो दूर होगी। बिहार के समस्तीपुर निवासी रामनरेश, सुरजन सिंह, मधुबनी निवासी सोमनाथ, सुंदर सिंह, 24 परगना निवासी सुरेंद्र सिंह, संजय सिंह, राकेश कुमार आदि का कहना है कि वे और उनके साथ बहुत से साथी विभिन्न अनाज मंडियों में मजदूरी का काम कर रहे थे। पिछले एक सप्ताह से काम धंधा ठप है। इसी प्रकार उनके साथ अन्य साथी भिवाड़ी, धारूहेड़ा, बावल आदि स्थानों पर मजदूरी, होटल आदि में काम कर रहे थे। एक सप्ताह से अधिक समय से रोजगार छिन गया तो मकान का किराया देने के रुपये भी खत्म होने लगे हैं। ऐसे में अपने घर लौटना ही बेहतर है। आरक्षण खिड़की पर भी लंबी कतार रेलवे स्टेशन पर आरक्षण खिड़की पर भी लंबी लाइन लग रही है। सैकड़ों की संख्या में प्रतिदिन सुबह से शाम तक विभिन्न गाड़ियों में आरक्षण कराने के लिए लोग पहुंच रहे हैं। गाड़ियों की संख्या कम होने के कारण सीटें भी नहीं मिल पा रही हैं।


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