कभी यहां युधिष्ठिर ने नवग्रह कुंडों की स्थाापित किया था, देखते-देखते हो गए गायब
कैथल में पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने शहर में नौ अलग-अलग जगहों पर नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। नौ कुंडों में चार कुंड विलुप्त हो चुके हैं। अभी पांच स्थापित हैं। नव ग्रह कुंडों के विलुप्त होने का मामला हिंदू महासंघ ने उठाया।
कैथल, जेएनएन। कैथल में स्थापित महाभारतकालीन नवग्रह कुंडों के विलुप्त होने के मामले में अखिल भारतीय हिंदू महासंघ ने सीएम विंडों में शिकायत दी है। इस शिकायत में कुंडों पर किए गए अवैध कब्जों को हटवाने की मांग की है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि यदि कुंडों की जानकारी को लेकर जांच की जाएगी तो शहर में वर्तमान में भी यह नवग्रह कुंड खोजने पर मिल सकते हैं। महासंघ के चेयरमैन सतपाल गुप्ता ने बताया कि समिति की ओर से पिछले दस सालों से विलुप्त हुए पांच कुंडों का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते इसकी जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है।
यह है नवग्रह कुंडों का इतिहास
बता दें कि पांडवों के सबसे बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर द्वारा शहर में नौ अलग-अलग जगहों पर नवग्रह कुंडों की स्थापना की गई थी। इनकी स्थापना 3100 ईसा पूर्व तब हुई जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। युधिष्टर ने युद्ध में शहीद हुए पितरों की आत्मा की शांति के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की। इनकी विशेषता यह है कि ब्रह्मांड में जिस अक्षांस और कोण पर यह नवग्रह हैं, कैथल में उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए गए हैं।
वर्तमान में यह है स्थिति
नवग्रह कुंडाें में वर्तमान समय में सूर्य कुंड कैथल के केंद्र में माता गेट पर, शनि कुंड परशुराम चौक से आगे, शुक्र कुंड माता गेट के पास, गुरु कुंड परशुराम चौक से आगे बुध कुंड वाल्मीकि चौक की ओर और मंगल, राहु केतु कुंड पुरानी जेल के पास स्थापित हैं। वर्तमान में सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध कुंड तो आज भी मौजूद हैं। जबकि चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शुक्र कुंड का अस्तित्व समाप्त हो गया है। जिसे आज के समय में तलाशने की आवश्यकता है।
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