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गरीबी से जंग में बेटों की जिंदगी हार गया परिवार

कोर्ट परिसर में बिल्डिंग निर्माण में लगे श्रमिक के दो बेटों की खाना खाने के बाद तबीयत बिगड़ गई। थोड़े से अंतराल में दोनों की मौत हो गई। बीते शनिवार को बड़े और मंगलवार को छोटे बेटे ने दम तोड़ दिया। उल्टी लगने के बाद दोनों भाइयों ने अपनी मां से गले में दर्द और पेशाब न आने की शिकायत की थी। परिजनों ने बिना पोस्टमार्टम कराए दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Oct 2019 07:35 AM (IST)Updated: Wed, 30 Oct 2019 07:35 AM (IST)
गरीबी से जंग में बेटों की जिंदगी हार गया परिवार
गरीबी से जंग में बेटों की जिंदगी हार गया परिवार

जागरण संवाददाता, पानीपत : कोर्ट परिसर में बिल्डिंग निर्माण में लगे श्रमिक के दो बेटों की खाना खाने के बाद तबीयत बिगड़ गई। थोड़े से अंतराल में दोनों की मौत हो गई। बीते शनिवार को बड़े और मंगलवार को छोटे बेटे ने दम तोड़ दिया। उल्टी लगने के बाद दोनों भाइयों ने अपनी मां से गले में दर्द और पेशाब न आने की शिकायत की थी। परिजनों ने बिना पोस्टमार्टम कराए दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। चार दिन में दो बेटे खो देने के बाद मां का बुरा हाल है। डॉक्टर भी बच्चों की मौत का कारण नहीं समझ पाए।

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मप्र के उज्जैन का मोहब्बत अली पत्नी रुखसाना व चार बच्चों के साथ छह महीने पहले पानीपत आया था। रुखसाना ने बताया कि शुक्रवार रात को खाना खाने के बाद उसके बड़े बेटे सात वर्षीय सलमान और छोटे बेटे पांच वर्षीय समीर को उल्टी होने लगी। इसके बाद दोनों ने गले में दर्द की बात कही। दोनों को निजी अस्पताल लेकर गए। जहां, चिकित्सक ने 15 हजार रुपये जमा कराने को कहा, जबकि 1300 रुपये पहले ले लिए। परिजन दोनों भाइयों को लेकर सिविल अस्पताल पहुंचे। उन्हें हैदराबादी अस्पताल रेफर कर दिया। यहां चिकित्सकों ने पहले 50 हजार और फिर एक लाख रुपये जमा कराने को कहा। रुपये का इंतजाम नहीं हुआ तो दोनों को पीजीआइ रोहतक ले जाया गया। वहां उपचार के दौरान दोनों ने दम तोड़ दिया। अब मोहब्बत के पास 11 वर्षीय शहनाज और सात महीने की बेटी मोहिनी हैं। ठेकेदार ने नहीं दिये रुपये, समय से उपचार न मिलने से गई जान

सरकार ने आयुष्मान योजना लागू की है, ताकि रुपये के कारण इलाज के अभाव में किसी की जान न जाए। मजदूर परिवार के पास योजना का कार्ड नहीं था। उसने बताया कि पति ने ठेकेदार से रुपये मांगे, मगर ठेकेदार ने आठ-दस हजार रुपये ही दिए। इलाज के लिए एक लाख रुपये की जरूरत थी। कभी कैंसर तो कभी टीबी बताते रहे चिकित्सक

रुखसाना ने बताया कि पानीपत और रोहतक में चिकित्सकों ने दोनों बेटों की बीमारी की सही जानकारी नहीं दी। चिकित्सक कभी टीबी, कैंसर तो कभी मलेरिया बताते रहे। अंत तक भी बीमारी का पता नहीं लग पाया। जहरीला पदार्थ खाने का शक

आसपास के लोगों ने बताया कि दोनों भाइयों को पहले उल्टी लगी थी। जिसके बाद उन्हें गले में दर्द और पेशाब न आने की परेशानी हुई। काफी पूछने के बाद भी दोनों भाइयों ने खाने के बारे में नहीं बताया। रुखसाना ने बताया कि शुक्रवार को सभी रोटी के साथ चाय पीकर सोये थे। गरीब को हर कदम गरीबी से लड़ना पड़ा

रुखसाना ने बताया कि निजी एंबुलेंस चालक ने सिविल अस्पताल से हैदराबादी अस्पताल तक के 1200 रुपये और फिर रोहतक पीजीआइ तक ले जाने के दो हजार रुपये ले लिये। निजी अस्पताल में 10 हजार रुपये से अधिक खर्च हो गये और बच्चे भी नहीं बच पाये। वर्जन :

सलमान को पेशाब न आने की शिकायत थी। समीर को उल्टी लगी थी। दोनों बच्चों को पीजीआइ रेफर कर दिया था। बच्चों की मौत की वजह बीमारी थी या फिर कुछ और। इसका पता नहीं लग पाया है।

डॉ. सुखदीप कौर, सिविल अस्पताल, पानीपत।


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