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यमुनानगर की इन महिलाओं ने आपदा को अवसर में बदला, लॉकडाउन में पुराने कपड़ों से यूं बदली किस्मत

ये कहानी है यमुनानगर की महिलाओं के समूह की। लॉकडाउन में खाली बैठी थीं। ग्रामीणों से कपड़े लेकर मास्क बनाने लगीं। ग्रामीणों में मुफ्त में बांटती। फिर भी कई मास्क बच जाते। इसके बाद दुकानों से ऑर्डर लेने लगीं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 09:04 AM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 09:04 AM (IST)
यमुनानगर में मास्क बनाकर ग्रामीणों में बांटती समूह की महिलाएं।

यमुनानगर, जेएनएन। कोरोना महामारी से बचाव में मास्क सबसे बड़ा हथियार है। जब महामारी फैली, तो मास्क को लेकर मारामारी मची। बाजारों में मास्क कई गुने दामों पर बिकने लगी। ऐसे में कुछ महिलाओं ने घर पर मास्क तैयार करना शुरू कर दिया और जरूरतमंदों को बांटे। इसी तरह से गांव हरिपुर कम्बोयान में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह सूरज ने सूती कपड़े लाओ मास्क ले जाओ गांव बचाओ अभियान शुरु किया था। समूह की प्रधान रिजू कांबोज ने अन्य सदस्यों रितिका, सोनिया, रेखा, बबली व प्रवेश रानी के साथ मिलकर मास्क तैयार करने शुरु किए। 

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समूह की महिलाओं ने ग्रामीणों व जरूरतमंदों को निशुल्क मास्क बांटे, ताकि वह कोरोना से बचे रहे। समूह की प्रधान रिजू ने बताया कि जब लॉकडाउन लगा था, तो काम बंद हो गया था। घर पर भी खाली बैठे थे। ऐसे में मास्क की कीमतें बढ़ने की खबरें मिल रही थी। गांव में भी लोग बिना मास्क के घूमते रहते हैं। वह यही कहते थे कि इतना महंगा मास्क कहां से लाए। जिस पर समूह की सदस्यों को एकत्र किया और उनसे मास्क तैयार करने के बारे में बात की। लॉकडाउन था, तो ऐसे में बाहर भी नहीं जा सकते थे। मास्क के लिए कपड़ा कहां से आए। यह सोचा, फिर विचार आया कि ग्रामीणों से पुराने सूती कपड़े लिए जाएं और फिर उनके ही मास्क तैयार किए जाए। बस इसके बाद मास्क तैयार करने का अभियान शुरू किया। 

डिटॉल व फिटकरी से किया जाता था सैनिटाइज

समुह की सदस्य महिलाओं ने ग्रामीणों से पुराने सूती कपड़े लेने शुरू कर दिए। पुराने होने की वजह से खतरा रहता था। इसलिए पहले इन कपड़ों को डिटोल व फिटकरी के घोल से धोकर एंटी बैक्टीरियल करते थे। फिर इन कपड़ों का मास्क तैयार किया जाता था। मास्क के लिए प्लास्टिक रबर नहीं मिल रही थी। जिस पर कपड़े की तनी ही बांधने के लिए लगाई गई थी। यह मास्क ग्रामीणों को बांटे गए। ग्रामीणों को निशुल्क ही यह मास्क दिए जाते थे। साथ ही उन्हें बताया जाता था कि इन मास्क काे धोकर दोबारा प्रयोग कर सकते हैं। 

मास्क से कमाई भी हुई

प्रधान रिजू व सचिव रितिका, सोनिया ने बताया कि ग्रामीणों से जो कपड़ा आता था। उससे कई मास्क तैयार हो जाते थे। ग्रामीणों को देने के बाद भी मास्क बच जाते थे। इसलिए लॉकडाउन में कमाई भी हुई। दुकानदारों से मास्क के लिए ऑर्डर लेने शुरू कर दिए। काफी ऑर्डर मिले। दुकानदारों को काफी कम कीमत पर ये मास्क उपलब्ध कराए गए। इससे मास्क के कार्य में लगी समुह की महिलाओं को भी आमदनी हुई थी।


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