गोयला में 1730 एकड़ में गेहूं की फसल पककर तैयार, ग्रामीण खुद दे रहे पहरा
अंदेशा है कि करीब तीन माह पहले हुआ झगड़ा दोबारा हो सकता है। अगर प्रशासन ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया तो गांव में खूनी संघर्ष हो सकता है।
संवाद सहयोगी, सनौली : गोयला खुर्द गांव की 1730 एकड़ शामलात भूमि का विवाद सुलझता दिखाई नहीं दे रहा है। गेहूं की फसल लगभग पककर तैयार है। ग्रामीणों ने लाठी-डंडों के सहारे अपनी फसल का पहरा देना शुरू कर दिया है। अंदेशा है कि करीब तीन माह पहले हुआ झगड़ा दोबारा हो सकता है। अगर प्रशासन ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया तो गांव में खूनी संघर्ष हो सकता है। मामले को लेकर करीब एक माह पहले समालखा डीएसपी प्रदीप कुमार ने बापौली थाने में दोनों पक्षों को बुलाया था। इसमें एक पक्ष पहुंचा ही नहीं था। इससे पूर्व एक पक्ष के 17 व दूसरे पक्ष के 51 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है।
गोयला खुर्द गांव की करीब 1730 एकड शामलात भूमि को गांव के तीनों पाने राजा, तिहाई और मनसा में बराबर बांट रखा था। इसमें करीब छह एकड़ में रास्ता था। राजा पाने की जमीन का कुछ हिस्सा यमुना नदी में चला गया। कुछ जमीन पर उत्तर प्रदेश के टांडा गांव के किसानों ने कब्जा कर लिया था। इस पर विवाद चला हुआ है। राजा पाने के लोग बाकी बची जमीन को दोबारा से बांटने की बात कह रहे थे। सहमति नहीं बन सकी थी। खेत में राजा व तिहाई पाने के सैकड़ों लोगो के बीच जमीन को लेकर जमकर लाठी व डंडे चले थे।
हुई थी महापंचायत
गांव में शांति व्यवस्था बनाने के लिए करीब 30 गांवों के गणमान्य लोगों की महापंचायत हुई थी। निर्णय लिया गया था कि जो पक्ष जिस भूमि की जुताई कर रहा है, वो आगे भी उसी की करेगा। एक कमेटी बनाई गई। तीनों पानों की तरफ से सार्वजनिक तौर पर जलालपुर प्रथम गांव के पूर्व सरपंच रत्न सिंह रावल, बापौली के सरपंच प्रतिनिधी एडवोकेट शिवकुमार रावल, गढ़ी भलौर के पूर्व सरपंच सूरजभान, संजौली के पूर्व सरपंच पप्पू, कर्ण सिंह गोयला कलां, जयपाल गोयला खेड़ा, अतौलापुर के पूर्व सरपंच जीवन रावल, ताहरपुर के पूर्व सरपंच रणबीर सिंह, मतरौली के पूर्व सरपंच पवन सिंह, अब्बल सिंह खोजकीपुर, नारायाणा के पूर्व सरपंच बिजेंद्र सिंह को कमेटी में शामिल किया गया। तीनों पानों से एक-एक व्यक्ति से दस-दस लाख के जमानत के चेक लिए। जो फैसला मानने से इन्कार करेगा, उससे पंचायत ये रुपये वसूल करेगी।
दशकों पुराना है जमीन का विवाद
इससे पहले भी 1995, 1998, 2001, 2002 में भी झगडा हुआ था। मामले दर्ज हुए थे। ग्रामीणों ने बताया कि कुछ विवाद तो भाईचारे के तौर पर ही सुलझा लिए गए थे।