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कुरुक्षेत्र में कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए संकटमोचन बने वालंटियर, इनके हौसले से बची कई जान

कुरुक्षेत्र के अशोक टामक ने बताया कि कोरोना की पहली लहर में जरूरतमंद लोगों के घरों तक जरूरत का सामान और भोजन पहुंचाने का काम किया। इसके बाद दूसरी लहर आई तो आक्सीजन का संकट खड़ा हो गया जिसमें लोगों की मदद कर उनका जीवन बचाया।

By Naveen DalalEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 02:27 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 02:27 PM (IST)
कुरुक्षेत्र में कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए संकटमोचन बने वालंटियर, इनके हौसले से बची कई जान
रेडक्रास के साथ मिलकर 364 सिलेंडर पहुंचाए गए थे कोरोना पाजिटिव मरीजों के घर तक।

कुरुक्षेत्र, विनीश गौड़। कोरोना की दूसरी लहर में जब सांसों पर संकट खड़ा हाे रहा था और लोग अपने घरों से बाहर निकलने में भी घबरा रहे थे उस समय ऐसे भी लोग थे जो संकटमोचन बनकर कोरोना पाजिटिव मरीजों के पास पहुंचे। ऐसे ही शख्स हैं जिला रेडक्रास सोसाइटी के वालंटियर अशोक टामक। उन्होंने जरूरत पड़ने पर न केवल अपनी कार से कोरोना पाजिटिव मरीजों के घरों तक आक्सीजन के सिलेंडर पहुंचाए, बल्कि उनका हौंसला भी बने। ये न तो कोरोना पाजिटिव मरीजों के पास जाने से घबराए और न ही उन्हें हाथ लगाने से। उन्होंने खुद आक्सीजन सिलेंडर बदलकर मरीजों का हौसला बढ़ाया। यही वजह रही कि जिला प्रशासन ने उन्हें इसके लिए जनवरी 2022 में सम्मानित भी किया। 

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परिवार अब तक है नाराज, हमें भी संकट में डाला 

अशोक टामक ने बताया कि कोरोना की पहली लहर में जरूरतमंद लोगों के घरों तक जरूरत का सामान और भोजन पहुंचाने का काम किया। इसके बाद दूसरी लहर आई तो आक्सीजन का संकट खड़ा हो गया। मगर रेडक्रास के साथ मिलकर आक्सीजन पहुंचाने का नेक काम भी किया। अशोक बताते हैं कि कोरोना काल में मरीजों के घर-घर जाने की बात से उनका परिवार काफी नाराज हो गया था। उनकी माता, भाई, पत्नी और बच्चे सबको लगता था कि उन्होंने न केवल अपनी बल्कि उनकी जान को भी खतरे में डाला। परिवार के सदस्य आज तक इस बात को लेकर नाराजगी जाहिर करता है। मगर मुझे उनकी नहीं बल्कि उन मरीजों की फिक्र थी जो आक्सीजन की कमी की वजह से जिंदगी और मौत के बीच में झूल रहे थे। मेरा फर्ज उन मरीजों के प्रति ज्यादा गहरा था। इसलिए परिवार की बात को भी नहीं सुना। मानवता धर्म सबसे बड़ा धर्म है। हमें यह बात समझनी होगी। 

हमें देखकर कोरोना पाजिटिव मरीजों के स्वनजों को मिलती थी हिम्मत 

अशोक टामक ने बताया कि बहुत बार जब होम आइसोलेट कोरोना पाजिटिव मरीज की आक्सीजन खत्म होने लगती थी तो मरीज के स्वजन बाहर खड़े होकर बैचेनी से उनका इंतजार कर रहे होते थे। जब वे वहां आक्सीजन का सिलेंडर लेकर पहुंचते तो हमारी कार दूर से ही देखकर उन्हें हिम्मत मिलती थी। उनके चेहरे पर चिंता के साथ-साथ एक सुकून भी दिखाई देता था। बहुत बार ऐसा हुआ कि मरीजों की सांसे टूटती टूटती बची। कोरोना पाजिटिव मरीजों की काउंसिलिंग ज्यादा जरूरी थी। बाहर के लोग उनसे मिलने और हाथ लगाने से भी घबराते थे उन मरीजों के पास बैठकर उनकी काउंसिलिंग भी की गई। 

कार के पार्ट निकलवाए, परिजनों को भी नहीं करने दिया प्रयोग

अशोक बताते हैं कि शुरुआत में रेडक्रास के पास ज्यादा वाहन नहीं थे। इसलिए वे अपनी कार से ही मरीजों के घर आक्सीजन की डिलीवरी करते थे। उनकी कार में आक्सीजन सिलेंडर पूरा नहीं आता था। इस वजह से उन्होंने दरवाजे के एक पार्ट को भी हटाना पड़ा। परिवार को भी इस कार का प्रयोग नहीं करने दिया।


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