कोरोना से जंग में मास्क से महरूम न रहे कोई, फ्री बांट रहे 11 लाख मास्क
महाराष्ट्र से मंगाया 70 हजार मीटर कपड़ा। साढ़े चार लाख मास्क बनाकर भेजे। कॉटन के डबल लेयर के मास्क हैं। पांच सौ कामगार इस मुहिम में लगे हैं।
पानीपत, [रवि धवन]। शहर की बाहरी कालोनी में लाइन में लगकर कामगारों को राशन बांटा जा रहा था। यह तो सुनिश्चित कर लिया कि कम से कम खाने के अभाव में किसी को अपने शहर से बाहर नहीं जाने देंगे। दूर खड़े स्वदेशी जागरण मंच के विभाग प्रमुख महेश थरेजा अलग ही उधेड़बुन में थे। दरअसल, उनकी चिंता ये थी कि भूख तो मिटा देंगे पर वायरस से बचाने के लिए इन लोगों को मास्क कैसे उपलब्ध कराएं। सर्जिकल मास्क तो उपयोग करने के बाद फेंकने पड़ते हैं। कपड़े के मास्क ही सबसे बेहतर विकल्प सोचकर उन्होंने कुछ हजार मास्क कहीं से उपलब्ध कराने की ठानी। यहीं से निकले इस आइडिया ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि पानीपत शहर ने एक्सपोर्ट क्वालिटी के 11 लाख मास्क बनाने की ठान ली। उत्साह इतना दिखाया कि साढ़े चार लाख मास्क की पहली खेप तो हरियाणा के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में रवाना भी कर दी है। आइये, पढ़ते हैं कैसे पानीपत ने ये संकल्प धीरे-धीरे परवान चढ़ा। अब तो पचास लाख मास्क बनाने की बात होने लगी है।
कुछ हजार मास्क बनवाने के लिए सबसे पहली बैठक हुई एक्सपोर्टर अविनाश पालीवाल के साथ। पालीवाल ने पहली बात सुनते ही कह दिया, वह कॉटन के पचास हजार मास्क बनवाकर देंगे। उनके साथ उनकी बेटी स्वाति भी बैठी थीं। कारोबार को संभालती हैं। स्वाति ने उसी समय तय कर लिया कि इसका डिजाइन और कपड़ा वह खुद चुनेंगी। महेश थरेजा तो कुछ हजार मास्क की उम्मीद में वहां पहुंचे थे, पचास हजार के संकल्प ने उनका उत्साह बढ़ा दिया। बात यहीं नहीं रुकी। पानीपत एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने ठान लिया कि अब वे इस प्रोजेक्ट को संभालेंगे। आखिरकार 11 लाख मास्क बनाने की ठान ली। अब बात थी, कपड़ा कैसा होना चाहिए। क्या इसे एक लेयर में ही बनाया जाए, इस सवाल का जवाब दिया स्वाति ने। उन्होंने कहा, जिस कपड़े को हम विदेश में एक्सपोर्ट करते हैं, वैसा ही होना चाहिए। महाराष्ट्र से 70 हजार मीटर का आर्डर दिया। मास्क को डबल लेयर बनाना तय किया, ताकि सुरक्षा कवच और मजबूत बने।
आसान नहीं था लक्ष्य, क्योंकि चाहिए थे पांच सौ कामगार
इंडस्ट्री चलाने के साथ सेवा के इस काम के लिए कामगारों की जरूरत थी ही। 11 लाख मास्क बनाने के लिए कम से कम पांच सौ कामगार चाहिए थे। उद्यमियों ने अपने आर्डर बीच में रोककर, अलग-अलग शिफ्टों में फैक्ट्री चलाकर इस मुहिम को थमने नहीं दिया। दो मशीन पर ये मास्क तैयार होता है।
एक मास्क की लागत साढ़े सात रुपये
एक मास्क बनाने में कितने की लागत आई, दैनिक जागरण के इस सवाल पर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रधान ललित गोयल ने कहा कि वह इस गणित में नहीं पडऩा चाहते। पर दोबारा पूछने पर विभू पालीवाल ने बताया, फैक्ट्री में डबल लेयर के कॉटन मास्क की लागत करीब साढ़े सात रुपये आई है। मार्केट में दस से 12 रुपये में बिक सकता है। यानी करीब सवा करोड़ रुपये इस प्रोजेक्ट पर खर्च हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी, हमें न चीनी मशीन चाहिए न ही चीनी कपड़ा
पहली खेप को रवाना करने के लिए उद्यमियों ने मुख्यमंत्री मनोहरलाल से बात की। सीएम ने ऑनलाइन बैठक कर हरियाणा के अलग-अलग जिलों में मास्क भेजने के लिए सहमति प्रदान की। इसी बैठक में एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव विभू पालीवाल ने कहा, मुख्यमंत्री जी। हमें न चीनी कपड़ा चाहिए और न ही चीनी मशीन की जरूरत है। हम कॉटन के मास्क बनाने के लिए आत्मनिर्भर हैं। सीएम ने इस बात को खूब सराहा भी।
पचास लाख मास्क की तैयारी
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रकल्प है स्वदेशी जागरण मंच। इस मंच के जिला विभाग प्रमुख महेश थरेजा ने बताया कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यह प्रोजेक्ट इतना बड़ा रूप ले लेगा। पानीपत के ही सर्व संगठन सेवा संस्थान ने अस्थायी राशन कार्ड बनाकर कामगारों तक सूखा राशन पहुंचाया। जब मास्क बांटने की पहल हुई तो इसमें भी पीछे नहीं हटे। अब तक सांसद संजय भाटिया के सहयोग से पचास लाख मास्क बनवाने की तैयारी हो रही है। यह लक्ष्य हम जरूर हासिल करेंगे।