Tokyo Paralympics: भारतीय तीरंदाज हरविंद्र सिंह ने जीता कांस्य पदक, कोरोना काल में खेत में करते थे अभ्यास
टोक्यो पैरालिंपिक में भारतीय एथलीटों ने कमाल कर दिया। भारतीय पुरुष तीरंदाज हरविंद्र सिंह ने आर्चरी में कांस्य पदक जीता। कैथल के रहने वाले हरविंद्र सिंह के पिता ने कहा कि पुत्तर ने कित्ता सी मेडल दा वादा जित्त लेया।
कैथल, [सुनील जांगड़ा]। भारतीय पुरुष तीरंदाज हरविंद्र सिंह ने पुरुष व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा के कांस्य पदक जीता। कैथल के रहने वाले हरविंद्र ने कोरिया के किम मिन सू को 6-5 से हराया। वह पैरालिंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय तीरंदाज बने।
कैथल के गांव अजीतनगर कस्बा गुहला जिला कैथल निवासी हरविंद्र सिंह ने टोक्यो पैरालिंपिक के रिकर्व इवेंट में इतिहास रच दिया। हरविंद्र ने देश के लिए ब्रांज मेडल हासिल किया है। रिकर्व इवेंट में हरविंद्र हरियाणा से एकमात्र खिलाड़ी पैरालिंपिक में भाग ले रहे थे। शुक्रवार को सुबह से लेकर शाम तक पांच चरणों में टोक्यो पैरालिंपिक में आर्चरी के रिकर्व इवेंट में हरविंद्र सिंह के मुकाबले हुए।
स्वजन सुबह ही टीवी के आगे बैठ गए थे और हरविंद्र के सभी मैच लाइव देखे। घर में हरविंद्र के पिता परमजीत सिंह, छोटा भाई अर्शदीप सिंह, अर्शदीप की पत्नी सुखविंद्र कौर, बेटी अनुरीत कौर मौजूद रहे। ब्रांज मेडल के लिए कड़े मुकाबले में हरविंद्र ने कोरिया के खिलाड़ी को हराया। छोटे भाई अर्शदीप ने बताया कि जैसे-जैसे भाई मैच जीत रहा था, उनकी खुशी बढ़ती जा रही थी। ब्रांज मेडल जीतने के बाद बधाई देने वालों का तांता लग गया। फोन और वाट्सएप पर बधाई संदेश मिलने लगे। पिता परमजीत ने कहा- पुत्तर ने मेडल ल्याण दा वादा कित्ता सी, उसने अपना वादा निभाया। जीत की खुशी में बधाई देने आए लोगों को मिठाई खिलाकर उनका मुंह मीठा करवाया गया।
इस तरह से हुई थी खेल की शुरुआत
हरविंद्र सिंह एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं। पिता परमजीत सिंह खेती बाड़ी से घर का गुजारा करते हैं। डेढ़ साल की आयु में गलत इंजेक्शन लगने से हरविंद्र की एक टांग की ग्रोथ रुक गई थी। 2010 में बीए करने के लिए पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में दाखिला लिया। वहां हरिवंद्र कभी-कभी तीरंदाजी देखने के लिए मैदान पर चला जाता था। साल 2012 के लंदन ओलिंपिक में तीरंदाजी का मैच टीवी पर देखा और वहीं से तीरंदाजी करने की प्रेरणा मिली। कुछ दिन बाद मैदान पर जाकर कोच से तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। लगातार चार साल अभ्यास करने के बाद भी उसका चयन भारतीय टीम में नहीं हुआ था। चयन न होने से दुखी होकर उसने खेल छोडऩे का मन बना लिया था। उसके बाद उन्हें कोच जीवनजोत ने तीरंदाजी न छोडऩे की सलाह दी। कोच की प्रेरणा से नए तरीके से खेल की शुरुआत की और पहले ही साल में नेशनल प्रतियोगिता में मेडल हासिल किया।
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