सांसद संजय भाटिया और विधायक महीपाल ढांडा की चली, लोकेश नांगरू आगे नहीं बढ़ सके
दुष्यंत भट्ट दो बार मेयर पद के लिए चुनाव लड़ चुके थे। इससे नीचे का पद उन्हें पार्टी देगी या वे खुद इसे स्वीकार करेंगे इस पर पार्षदों को संशय था।
जागरण संवाददाता, पानीपत : सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में यह तो साफ हो गया कि जिला और नगर निगम की सियासत में सांसद संजय भाटिया और विधायक महीपाल ढांडा सबसे ज्यादा प्रभावशाली हैं। ज्यादातर पार्षद यही मानकर चल रहे थे कि लोकेश नांगरू और अशोक कटारिया को कुर्सी मिलेगी, पर पर्ची खुली तो दुष्यंत भट्ट और रवींद्र फुले का नाम सुनकर सभी चौंक गए। दुष्यंत भट्ट दो बार मेयर पद के लिए चुनाव लड़ चुके थे। इससे नीचे का पद उन्हें पार्टी देगी, या वे खुद इसे स्वीकार करेंगे, इस पर पार्षदों को संशय था। रवींद्र का तो दौड़ में नाम ही नहीं था। पढि़ए, कौन, क्यों और कैसे बना सीनियर डिप्टी मेयर, डिप्टी मेयर। किसका नाम क्यों कटा या क्यों नाम आगे ही नहीं बढ़ा।
दुष्यंत भट्ट : इसलिए सीनियर डिप्टी मेयर बने
1- पार्टी संगठन में उनकी खुद की मजबूत पकड़। 1996 से संगठन से जुड़े हैं। विद्यार्थी परिषद में भी रहे। वर्तमान में जिला उपाध्यक्ष पद पर हैं।
2- उनका वार्ड ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में आता है। उनके नाम पर महीपाल ढांडा को भी आपत्ति नहीं थी, क्योंकि उनका क्षेत्र ही मजबूत होता।
3- सांसद संजय भाटिया का भी उन्हें समर्थन रहा। दुष्यंत भट्ट शहर की राजनीति नहीं करते। भट्ट के हाईकमान तक रिश्ते हैं। इसलिए उनका नाम कटवाना आसान नहीं था।
4- लगातार दूसरी बार पार्षद बने। नगर निगम के एक्ट को अच्छे से समझते हैं। संदेश जाएगा कि भट्ट मेयर के साथ मिलकर शहर में अच्छा काम करेंगे। रवींद्र : युवा चेहरा, महीपाल का साथ
1- ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं रवींद्र। महीपाल ढांडा ने अपने क्षेत्र के समर्थक को डिप्टी मेयर बनवाने के लिए पैरवी की।
2- महीपाल ढांडा दो दिन पहले मुख्यमंत्री मनोहरलाल से मिलकर आए। प्रदेश अध्यक्ष को भी रवींद्र का नाम दिया। पार्टी ने ढांडा के नाम पर अपनी मुहर लगा दी।
3- रवींद्र को पद देकर यह संदेश दिया कि पार्टी युवाओं पर भरोसा रखती है। कार्यकर्ताओं को मौका मिलता है। लघु सचिवालय में रवींद्र के समर्थकों ने यह बात कही भी कि पार्टी ने उनका सम्मान बढ़ा दिया है।
4- विधायक प्रमोद विज और मेयर अवनीत कौर को भी रवींद्र के नाम पर आपत्ति नहीं थी। रवींद्र आमतौर पर शांत रहते हैं। विवाद में नहीं रहते। विवाद करते भी नहीं।
लोकेश नांगरू का नाम इसलिए कटा
1- सांसद संजय भाटिया, विधायक प्रमोद विज और पार्षद लोकेश नांगरू, तीनों मॉडल टाउन के हैं। सांसद और विधायक, दोनों का ही नांगरू को स्पष्ट समर्थन नहीं मिला।
2- दुष्यंत भट्ट के नाम का प्रस्ताव आया तो नांगरू का नंबर इसलिए कट गया कि उन्हें तो दोबारा मौका दे सकते हैं। भट्ट दो बार मेयर का पद हार चुके हैं, इसलिए भट्ट को संगठन की ओर से अवसर मिलना चाहिए।
3- नांगरू अपने वार्ड में लोकप्रिय हैं। स्पष्ट बात करने में यकीन रखते हैं। काम नहीं होने पर विधायक प्रमोद विज पर सवाल उठा चुके हैं।
4- सांसद, विधायक ये दावे करते रहे कि उन्हें भी नहीं मालूम था कि संगठन ने किसका नाम भेजा है। पर नांगरू ने चुनावी बैठक के बाद ही कह दिया कि उन्हें तो पहले ही पता चल गया था कि मेरा नाम नहीं है। यानी, अंदरुनी सियासत की वजह से नाम कटा। अशोक कटारिया इसलिए नहीं बने
1- पूर्व मंत्री कृष्णलाल पंवार और पार्षद अशोक कटारिया रिश्तेदार हैं। अगर कटारिया को बनाते तो ये संदेश जाता कि अपने स्वजनों को आगे बढ़ाया जा रहा है।
2- शहर की सियासत में पंवार की भूमिका बढ़ जाती, जिसे विधायक से लेकर मेयर तक स्वीकार नहीं करते। अंजली शर्मा को इसलिए निराश किया
1- वार्ड तीन के निवासी, एक दिन पहले सोमवार को विधायक विज से मिले। उन पर दबाव बनाया कि अंजली को डिप्टी मेयर बनाया जाए। अगर ये बात स्वीकारी जाती तो ये संदेश जाता कि दबाव की राजनीति से अंजली को पद मिला।
2- स्व. हरीश शर्मा की बेटी अंजली शर्मा ने कई बार संगठन के लिए मुश्किल खड़ी की है। इस वजह से उनके नाम पर सहमति नहीं बनी।
3- संगठन ने पहले ही तय कर लिया था महिला को पद नहीं देंगे। दरअसल, मेयर का पद पहले ही महिला के पास है।
नगर निगम के तीनों बड़े पद ग्रामीण क्षेत्र से
एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि नगर निगम के तीनों ही बड़े पद पर चुने गए प्रतिनिधि ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं। मेयर अवनीत कौर यमुना एनक्लेव में रहती हैं। दुष्यंत भट्ट और रवींद्र का वार्ड ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है। विधायक महीपाल ढांडा ने कहा भी कि तीनों पद उनके एरिया में आ गए। हालांकि शहर के विधायक विज ने मीडिया से बातचीत में कहा कि निगम तो शहर का ही है।