तंत्र के गण - इस शहर में बना झंडा सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में लहराता है
भारतीय सेना ने 12 जुलाई 1999 को लिबर्टी एम्ब्रायडर्स के संचालक गुरदीप सिंह को दिया था प्रशंसा पत्र। कारगिल युद्ध के दौरान रातोंरात तैयार कर पचास तिरंगे भेजे गए थे हवाई जहाज से।
अंबाला [दीपक बहल] । क्या आपको मालूम है, दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन पर जो तिरंगा लहराता है, वो कैसे और कितने जतन से तैयार होता है। इतना ही नहीं, देशभर के सेना क्षेत्रों और उत्तर भारत में जो तिरंगा फहराते हैं, वो एक शहर से सप्लाई हो रहा है। ये वो शहर है, जहां पर राफेल जैसे लड़ाकू विमान को तैनात किया जाना है। हम बात कर रहे हैं अंबाला की।
फौजियों के इस शहर अंबाला छावनी की राय मार्केट में तैयार होने वाला तिरंगा 18 हजार 875 फीट की ऊंचाई पर हमारा गौरव बढ़ाता है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान को मात देकर अपनी चोटियों पर फहराया गया तिरंगा भी अंबाला में बनाया गया था। युद्ध के दौरान ही रातोंरात पचास तिरंगे बनाकर हवाई जहाज से भेजे गए थे। तब भारतीय सेना ने लिबर्टी एम्ब्रायडर्स के संचालक गुरदीप सिंह को प्रशंसा पत्र दिया था। विरासत में कामकाज संभाल रहे उनके बेटे गुरप्रीत सिंह ने बताया कि पांच दशकों से हर वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी पर औसतन एक हजार से अधिक तिरंगे तैयार करते हैं। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के अलावा, 365 दिन तिरंगा तैयार किया जाता है।
इस तरह शुरू हुई ये दुकान
बात 1964 की है। तब हरियाणा और पंजाब एक ही राज्य थे। गुरदीप सिंह अंबाला में कपड़ों की दुकान चलाते थे। एक फौजी ने उनसे तिरंगा बनवाया। तब अंबाला छावनी से एकाएक उनके पास तिरंगा बनवाने के लिए मांग बढ़ गई। इस तरह उन्होंने तिरंगा सिलने को ही अपना कारोबार बना लिया। अब उनकी दुकान पर हर रोज तीस से चालीस तिरंगे सिले जाते हैं। बड़ा तिरंगा, जिसका साइड 12 बाई 18 है, उसकी कीमत तीन हजार रुपये है। यह सवा घंटे में तैयार होता है। गुरप्रीत ने बताया कि नवीन जिंदल, जिन्होंने कोर्ट के माध्यम से जन-जन को तिरंगा फहराने का अधिकार दिलाया, वे भी उनके पास ही झंडा ले जाते हैं।
इस तरह तैयार करते हैं तिरंगा, पैरों में नहीं पहनते जूते
राष्ट्रीय झंडा बनाना इनके लिए गौरव से कम कार्य नहीं है। सिलाई के समय पैरों में जूते नहीं पहनते। बच्चों को यहां कपडे़ से खेलने की मनाही है। किसी भी हाल में तिरंगा मैला नहीं होने देते। जिस सफेद कपड़े पर अशोक चक्र प्रिंट होता है, उसके लिए मशीन लगाई हुई है। मशीन की ऑयलिंग-सर्विस करने के बाद किसी अन्य कपड़े पर काम करके देखा जाता है कि कहीं कोई दाग तो नहीं लग रहा। इसके बाद ही तिरंगे का निर्माण होता है। आकार को लेकर कोई सवाल न उठे, इसके लिए पहले ही कपड़े की लंबाई ज्यादा बढ़ा देते हैं। बाद में कटाई करके बराबर कर लेते हैं।अशोक चक्र को विशेष कढ़ाई द्वारा आकर्षक व सुंदर रूप दिया जाता है। तिरंगे को तैयार करने के लिए थ्री प्लाइ के धागे का इस्तेमाल करते हैं, ताकि मजबूती बनी रही। टेरीकॉट, साटन व खद्दर, तीन क्वालिटी और 5 साइज के तिरंगे तैयार होते हैं।