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गलघोंटू बीमारी से जरा बचकर, बच्चे को खांसी आ रही तो खतरे की घंटी

मेवात में गलघोंटू से बच्चों की मौत के बाद नोडल अधिकारी सतर्क हो गए हैं। अब बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए डीटी का टीका लगेगा। बच्चों को इस बीमारी से ज्यादा खतरा है।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 01:47 PM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2018 04:15 PM (IST)
गलघोंटू बीमारी से जरा बचकर, बच्चे को खांसी आ रही तो खतरे की घंटी
गलघोंटू बीमारी से जरा बचकर, बच्चे को खांसी आ रही तो खतरे की घंटी

पानीपत, जेएनएन। राजधानी और उसके आसपास के इलाकों में गलघोंटू यानी डिप्थीरिया का कहर मासूमों की जान ले रहा है। यह एक संक्रमित बीमारी है। जो बच्चों में तेजी से फैल रहा है। मेवात में मासूमों की मौत के बाद प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया है। अब नोडल अधिकारियों ने इसकी जिम्मेदारी संभाल ली है। जानिए आखिर इतनी क्यों खतरनाक है ये बीमारी।

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पांच साल की उम्र तक होने वाली जानलेवा बीमारी गलघोंटू (डिप्थीरिया) ने अपनी उम्र बढ़ा ली है। अब 18 साल तक के किशोरों में भी यह बीमारी मिल रही है। हरियाणा के मेवात में इस बीमारी से हुई मौतों से सबक लेकर विभाग बच्चों को डीपीटी (डिप्थीरिया, काली खांसी व टिटनेस) की जगह अब नई वैक्सीन टीडी का टीका लगाएगा। 

टीकाकरण ही बचाव
जिला टीकाकरण अधिकारी (डीआइओ) एवं डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. नवीन सुनेजा ने बताया कि गलघोंटू से बचाव के लिए अभी तक बच्चों को डीपीटी का टीका डेढ़, ढाई और साढ़े तीन महीने की उम्र में लगाया जाता है। इसके बाद 16-24 महीने और 5-6 साल की उम्र में टिटनेस बूस्टर टीका लगाया जाता है। तकरीबन 50 फीसद बच्चों को बूस्टर टीका नहीं लग पाता। इसके चलते बच्चे बीमारी से सुरक्षित नहीं हो पाते। नतीजा, बीमारी की चपेट में अब 18 साल तक किशोर भी आ रहे हैं। मेवात जिले में कुछ मौत भी हुई हैं। अब टिटनेस के बूस्टर टीके के साथ डिप्थीरिया को जोड़कर (टीडी) टीका लगाया जाएगा। 

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देंगे ट्रेनिंग 
कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. मनीष पासी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ 22 को इस संबंध में ट्रेनिंग देंगे। वहां से लौटने के बाद सीएचसी-पीएचसी के एमओ, स्टाफ नर्स आदि को ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष बीमारी से किसी बच्चे की मौत नहीं हुई है। 

संक्रमण फैलने पर हो सकती है मौत
इस बीमारी के होने पर गला सूखने लगता है, आवाज फटने लगती है, गले में जाल पडऩे के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है। इलाज न कराने पर शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण फैल जाता है। यदि इसके जीवाणु हृदय तक पहुंच जाएं तो जान भी जा सकती है। डिफ्थीरिया से संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने पर अन्य बच्चों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।

क्या है डिप्थीरिया
यह बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। पीडि़त के गले में दर्द, तेज बुखार और मुंह में सफेद झिल्ली बन जाती है। गले में सूजन से सांस नली दब जाती है। दिल पर भी असर होता है। सही समय पर इलाज नहीं मिलने से बच्चे-किशोर की मौत भी हो जाती है।

डिफ्थीरिया के लक्षण

  • इस बीमारी के लक्षण संक्रमण फैलने के दो से पांच दिनों में दिखाई देते हैं।
  • डिफ्थीरिया होने पर सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • गर्दन में सूजन हो सकती है, यह लिम्फ नोड्स भी हो सकता है।
  • बच्चे को ठंड लगती है, लेकिन यह कोल्ड से अलग होता है।
  • संक्रमण फैलने के बाद हमेशा बुखार रहता है।
  • खांसी आने लगती है, खांसते वक्त आवाज भी अजब हो जाती है।
  • त्वचा का रंग नीला पड़ जाता है।
  • संक्रमित बच्चे के गले में खरास की शिकायत हो जाती है।
  • शरीर हमेशा बेचैन रहता है।

डिफ्थीरिया के कारण

  • यह एक संक्रमण की बीमारी है जो इसके जीवाणु के संक्रमण से फैलती है।
  • इसका जीवाणु पीडि़त व्यक्ति के मुंह, नाक और गले में रहते हैं।
  • यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से फैलता है।
  • बारिश के मौसम में इसके जीवाणु सबसे अधिक फैलते हैं।
  • यदि इसके इलाज में देरी हो जाये तो जीवाणु पूरे शरीर में फैल जाते हैं।

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