दंपती ने जुगाड़ से लगवाया टीका
सिविल अस्पताल के वैक्सीनेशन केंद्र में 23 फरवरी को सामने आया। एक सूटिड-बूटिड जनाब अपनी पत्नी के साथ बड़ी गाड़ी से वैक्सीनेशन केंद्र पहुंचते हैं। चंद मिनट किसी का इंतजार करते हैं।
राज सिंह, पानीपत
कोरोना वैक्सीनेशन 16 जनवरी को शुरू हुआ था। लाभार्थियों में हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्कर्स को शामिल किया गया। इसी के साथ टीकाकरण में भाई-भतीजावाद और अपने-पराये का खेल शुरू कर दिया गया। ऐसा ही एक केस सिविल अस्पताल के वैक्सीनेशन केंद्र में 23 फरवरी को सामने आया। एक सूटिड-बूटिड जनाब अपनी पत्नी के साथ बड़ी गाड़ी से वैक्सीनेशन केंद्र पहुंचते हैं। चंद मिनट किसी का इंतजार करते हैं। इसके बाद वैक्सीनेशन केंद्र में प्रवेश कर जाते हैं। दोनों रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराकर वैक्सीन का टीका लगवाकर, आब्जर्वेशन एरिया में बैठ जाते हैं। जनाब खुद को दिल्ली के बड़े अस्पताल में डेंटल सर्जन, पत्नी को स्त्री रोग विशेषज्ञ (प्रेक्टिस नहीं करतीं) और माडल टाउन निवासी बताते हैं। फोटो भी खिचवाते हैं। बाद में पता चलता है कि दोनों न तो हेल्थ वर्कर हैं और न फ्रंटलाइन वर्कर। एक डिप्टी सिविल सर्जन की मेहरबानी से दोनों को टीकाकरण हुआ है। टीका अनिवार्य भी हो सकता है
स्वैच्छिक है पर जरूरी है। जी हां, कोरोना महामारी को मात देनी है तो जहन में यह स्लोगन चलता रहना चाहिए। संक्रमण न फैले, लॉकडाउन की नौबत फिर न आए, इसलिए टीकाकरण जरूरी है। ये बात हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्कर्स को पता नहीं क्यों समझ नहीं आ रही है। जिले के तकरीबन सभी बड़े अधिकारियों ने कोरोना वैक्सीन का टीका लगवा लिया, लेकिन वर्कर्स उनसे प्रेरणा नहीं ले सके। चिकित्सकों, पुलिसकर्मियों, होमगार्ड्स, सीआइएसएफ के जवानों ने उत्साह से इस निर्णायक जंग में हिस्सा लिया है। नगर निगम और पंचायती राज विभाग के अधिकारी व कर्मचारी वैक्सीनेशन से परहेज कर रहे हैं। आंगनबाड़ी वर्कर्स-हेल्पर्स भी दूरी बनाए हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग बैठकें कर-करके थक गया है। यह स्थिति तब है जब टीकाकरण निश्शुल्क है। कोरोना संक्रमण बढ़ा और टीकाकरण की स्थिति ऐसी ही रही तो सरकार सख्त रवैया अपनाते हुए सभी के लिए टीका जरूरी जैसी सख्ती भी कर सकती है। जांच पर जांच, देर पर देर
सरकारी कामकाज कछुआ की गति से चलते हैं। बात गड़गड़झाला की जांच से जुड़ी हो तो स्पीड और कम हो जाती है। अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत दिसंबर 2019 में 66 पदों पर हुई भर्ती को ही देखें। शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री सहित तमाम आला अधिकारियों तक पहुंची। एनएचएम हरियाणा निदेशक ने डीसी को जांच के आदेश दिए। डीसी ने तत्कालीन नगराधीश से जांच कराई, उन्होंने 16 अक्टूबर 2020 को जांच रिपोर्ट सौंपी जिसमें चयन प्रक्रिया को ठीक नहीं बताया था। सात दिसंबर 2020 को यह रिपोर्ट निदेशक को भेजी गई। 30 दिसंबर 2020 को निदेशक ने पदों को रद करने के आदेश दिए। हैरत यह कि नगराधीश की जांच रिपोर्ट के बाद मामले की दोबारा जांच शुरू कर दी गई है। जांच में देरी यानि, आरोपितों का बचाव करने का मौका देना जैसा है। इस केस में तो फिलहाल ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। रेडक्रास तलाश रही अपनी जमीन
तो क्या सिविल अस्पताल में खुलेगा जन औषधि केंद्र सवाल इसलिए कि जिला रेडक्रास सोसाइटी ने इसे अपनी नाक का सवाल बना लिया है। दरअसल, जून-2019 में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र ओपीडी ब्लाक में खुला था। रेडक्रास ने इसे 22 हजार रुपये प्रतिमाह किराये पर दे दिया। अस्पताल की डिस्पेंसरी में दवा स्टाक का अभाव रहने से औषधि केंद्र पर भीड़ रहने लगी। कुछ माह पहले एक विधायक का सिफारिश पत्र लेकर एक युवक सिविल सर्जन से मिला और दूसरा केंद्र खोलने के लिए जगह मांगी। सिविल सर्जन ने इंकार कर दिया। बस, पहले से खुले जन औषधि केंद्र की शिकायतें डीजी हेल्थ तक पहुंचने लगी। डीजी हेल्थ ने केंद्र को अस्पताल से बाहर शिफ्ट कराने का आदेश जारी कर दिए। औषधि केंद्र बना रहे, डीसी इस पक्ष में रहे। डीजी हेल्थ मिशन में कामयाब रहे। अब रेडक्रास पटवारनामा में जाकर, सिविल अस्पताल में अपनी जगह तलाश रही है।