शिमला मौलाना की ¨वका ने बॉ¨क्सग में पदकों की झड़ी लगाई, ग्रामीणों ने बेटियों को बढ़ाया आगे
पानीपत के शिमला मौलाना के टैक्सी चालक धर्मेंद्र की बेटी ¨वका के सिर में बचपन में चोट लग जाने के बावजूद उसने बॉक्सिंग जैसे खतरनाक खेल को चुना और पदकों की झड़ी लगा दी।
जागरण संवाददाता, पानीपत : शिमला मौलाना के टैक्सी चालक धर्मेंद्र की बेटी ¨वका के सिर में बचपन में चोट लग गई थी। डॉक्टरों ने सिर पर भारी वजन उठाने व ऐसे खेलों से दूर रहने की नसीहत दी जिससे सिर पर चोट लग सकती हो। ¨वका ने परिजनों के मना करने के बावजूद बॉ¨क्सग खेल चुना। ग्रामीणों ने तंज कसे कि यह खेल लड़कियों का नहीं है। पिता पर भी दबाव डाला कि बेटी को ¨रग से दूर रखो। नाक की हड्डी टूट गई तो कोई रिश्ता भी नहीं करेगा।
यह सब नजरअंदाज करते हुए पिता ने बेटी को न सिर्फ खेलने की आजादी दी, बल्कि उसे शिवाजी स्टेडियम में लाने व ले जाने की जिम्मेदारी निभाई। इसी का नतीजा रहा कि ¨वका ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बॉ¨क्सग चैंपियनशिप में 12 पदक जीते। ¨वका की सफलता से अब ग्रामीण भी गदगद हैं और गांवों में लड़कियों को खेलों में आगे बढ़ाया जा रहा है। वह ग्रामीणों की चहेती खिलाड़ी बन चुकी है। पिता धर्मेंद्र का कहना है कि बेटी ¨वका पहले हॉकी खेलती थी। फिर बॉ¨क्सग ¨रग में उतरी। उसे भी यह खेल पसंद नहीं था। बेटी को मना किया, लेकिन वह नहीं मानी। बेटी ने लगातार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर नाम रोशन कर दिया है। लोग उसे ¨वका के पिता के नाम से जानते हैं। बेटी पर नाज है।
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डर जाती तो सफल नहीं होती
¨वका का कहना है कि बॉ¨क्सग में चोट लगने का खतरा ज्यादा रहता है। प्रतियोगिता के दौरान कई बार पंच लगने से उसके मुंह व सिर पर चोट लगी। खून भी बहा। वह डरी नहीं। डटी रही। डर जाती तो सफलता नहीं मिलती। माता-पिता और कोच सुनील कुमार ने साथ दिया। उससे प्रेरित होकर गांव की लड़कियों खेलों में आगे रही हैं। इसका उसे सुकून है।