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HSSC - समृद्ध हरियाणा की दूसरी तस्‍वीर, 18 लाख युवा क्‍यों चाहें फोर्थ क्‍लास नौकरी

हरियाणा में ग्रुप डी की भर्ती के लिए परीक्षाएं शुरू हो रही है। शहरों में युवाओं के हूजूम के हुजूम उमड़ रहे हैं। दसवीं पास इस परीक्षा में बैठ सकता था। पर आवेदन एमफि‍ल, एमए और बीएड पास युवाओं ने भी किया।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 09:40 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 01:16 PM (IST)
HSSC - समृद्ध हरियाणा की दूसरी तस्‍वीर, 18 लाख युवा क्‍यों चाहें फोर्थ क्‍लास नौकरी
HSSC - समृद्ध हरियाणा की दूसरी तस्‍वीर, 18 लाख युवा क्‍यों चाहें फोर्थ क्‍लास नौकरी

जेएनएन, पानीपत - हरियाणा। यह नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में आती है इस प्रदेश की तरक्‍की। दो लाख रुपये प्रति व्‍यक्ति औसत आय है यहां। ओलंपिक हो या कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स, सबसे ज्‍यादा मेडल कौन लाता है। जवाब होता है- हरियाणा। पर इसी प्रदेश की एक दूसरी तस्‍वीर भी है। और वो है बेरोजगारी की। हरियाणा स्‍टाफ सिलेक्‍शन कमीशन ने ग्रुप डी यानी, चतुर्थ श्रेणी की भर्ती के लिए आवेदन मांगे थे। नौकरियां थी 18 हजार, आवेदन पहुंच गए 18 लाख। प्रदेश के विभिन्‍न जिलों में चल रही परीक्षा में हजारों-हजार युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ा।  आखिर क्‍यों, अफसर बनने की योग्‍यता रखने वाले युवा चपरासी बनना चाहते हैं। पढि़ए ये रिपोर्ट।

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कैथल के सिवन का गुलाब ग्रुप-डी की परीक्षा देने आया। उसने बताया कि वह टैक्निकल लाइन में जाना चाहता था। 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद आइटीआइ की। अच्छी नौकरी नहीं मिली। उसे अब ग्रुप-डी की नौकरी के लिए अपना भाग्य आजमाना पड़ रहा है। असंध की प्रियंका ने बताया कि वह इकनॉमिक्स में एमए पास है। उसका सपना किसी विभाग में बड़ा अधिकारी या सरकारी स्कूल में लेक्चरर बनने का है। कंपीटिशन की दौड़ में छोटी नौकरी से अपना जीवन शुरू करने का फैसला लिया है। उसकी नौकरी की पहली परीक्षा है। उसका पेपर अच्छा हुआ है। इसी तरह की सैकड़ों कहानियां आपको मिल जाएंगी। दरअसल, बेरोजगारी की मार इन युवकों को ग्रुप डी की नौकरी करने के लिए मजबूर कर रही है। कहीं न कहीं ये भी दिमाग में है कि एक बार चपरासी लग भी गए तो अपनी डिग्री की बदौलत क्‍लर्क जैसा पद बाद में मिल जाएगा। संभव है कि जिस सरकारी विभाग में नौकरी लगे, वहां उनकी डिग्री को देखते हुए सम्‍मान मिल जाए।

बेरोजगारी का ऐसा आलम भी

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गणित में एमएससी है पूनम
गुरुग्राम निवासी पूनम ने बताया कि वह गणित में एमएससी पास है। उसका पति इंजीनियर है। उसकी दो बेटी है। महंगाई के इस दौर में एक नौकरी से गुजारा हो पाना मुश्किल है। उसके पति को छुट्टी नहीं मिल पाई तो वह मां अनिता को साथ लेकर आई है। उसकी मां ने उसकी तीन महीने की बेटी को परीक्षा केंद्र के बाहर संभाल कर रखा। उसका पेपर अच्छा हुआ है। इससे पहले किसी सरकारी नौकरी का फार्म नहीं भरा था।

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एमए, बीएड है चंद्रपाल
हिसार से आए चंद्रपाल बीए, एमए व बीएड हैं। कही नौकरी नहीं मिली, तो ग्रुप डी के लिए आवेदन कर दिया। पूछने पर बताया कि इतना पढऩे के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल सकी। अब ग्रुप डी की परीक्षा पास हो जाए, तो उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी।

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मोनू ने ग्रेजुएशन पर उठाए सवाल
नारनौल से आए मोनू ने अभी 12वीं की परीक्षा पास की है। वह भी ग्रुप डी की परीक्षा देने के लिए आए हैं। उनका कहना है कि ग्रेजुएशन करने में समय क्या खराब करना। यदि वह पास हो गया, तो सरकारी नौकरी मिल जाएगी। इससे अधिक और कुछ नहीं चाहिए।

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सरकारी नौकरी को मानते हैं बल्‍ले-बल्‍ले
भिवानी से आए संदीप ने बीएससी, एमएससी व बीएड कर रखी है। वह भी परीक्षा देने के लिए आए हैं। उनका कहना है कि सरकारी नौकरी अलग होती है। एक बार सरकारी नौकरी मिल गई, तो बल्ले-बल्ले हो जाएगी। इतनी पढ़ाई करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली। इसलिए ग्रुप डी में भाग्य आजमा रहे हैं।

ऑटो चालकों ने वसूले 100 से 150 रुपये 
परीक्षार्थियों की मजबूरी का आटो चालकों ने भी खूब फायदा उठाया। बिलासपुर के न्यू हैप्पी स्कूल, सिद्धिविनायक कॉलेज, गणपति कॉलेज, सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल में केंद्र बनाए गए थे। जगाधरी से बिलासपुर के लिए जो आटो चले उन्होंने एक-एक आवेदक से 100 से 150 रुपये तक लिए। हिसार से आए रोनित, पलवल के विकास ने बताया कि वे यमुनानगर के बारे में अनजान थे। आटो चालकों से उन्होंने बिलासपुर के स्कूल में जाने की बात कही। इस पर आटो चालक ने कहा कि वह उन्हें सीधे स्कूल के बाहर छोड़ आएगा लेकिन इसके बदले में एक सवारी के 150 रुपये लगेंगे। कहीं पेपर देने से वंचित न रह जाएं इसलिए मजबूरी में उन्होंने 150 रुपये देने पड़े।

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परीक्षा केंद्र पर अपने कड़े उतारती एक महिला।

यहां से वहां भटकते रहे आवेदक, परीक्ष्‍ाा केंद्र पर उतरवाए सब जेवर
शनिवार व रविवार दो दिनों में करीब 88 हजार आवेदकों को परीक्षा देनी है लेकिन प्रशासन ने इसके लिए कोई तैयारी नहीं की। दूसरे जिलों से आए आवेदक पूरा दिन यहां से वहां भटकते रहे। लोगों से पूछ-पूछ कर वे किसी तरह परीक्षा केंद्र तक पहुंचे। यदि प्रशासन चाहता तो बस स्टैंड या मुख्य चौराहों पर ऐसे होर्डिंग लगा सकता था जिन पर परीक्षा केंद्रों का नाम व दिशा चिन्हित हो। काफी आवेदक ऐसे भी दिखे जो लेट हो गए और दौड़ते हुए परीक्षा केंद्र की तरफ जा रहे थे। हजारों युवकों ने अपना केंद्र तलाशने के लिए गूगल मैप का सहारा लिया। वे मोबाइल की मदद से अपने सेंटर तक पहुंचे। वहीं, परीक्षा केंद्र एक और मुसीबत का सामना करना पड़ा। किसी भी तरह का जेवर अंदर ले जाने से इन्‍कार कर दिया गया। 


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