महाभारत काल में भी है सरस्वती नदी का अस्तित्व, अब जल प्रवाह के लिए आदिबद्री में बनेगा डैम
हरियाणा के यमुनानगर के सरस्वती नदी के लिए आदिबद्री में डैम बनाया जाएगा। इस डैम के बाद से विश्व पटल पर पहचान बनाएगा यमुनानगर। आदिबद्री में डैम और काठगढ़ के पास बैराज के लिए अनुमति भी मिल गई है।
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। आदिबद्री में डैम और काठगढ़ के पास बैराज के लिए अनुमति मिलने पर अब सरस्वती नदी में जल प्रवाह होने के साथ दूसरी योजनाओं पर भी काम शुरू होने की उम्मीद जगी है। यह क्षेत्र बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा। हरिद्ववार की तरह यहां भी भारी संख्या में पर्यटक व श्रद्धालु आया करेंगे। सोम नदी के सरस्वती नदी में जुडऩे से बाढ़ की समस्या दूर होगी। कालका से कलेसर तक पहाडियों से रोड व देहरादून तक रेलवे लाइन निकालने के लिए यहां पर सर्वे हो चुका है।
नदी में जल प्रवाहित होने पर जिले का नाम विश्व पटल पर गूजेंगा। क्योंकि सरस्वती नदी की महत्ता ग्रंथों में भी। गंगा व यमुना की तरह इस नदी के प्रति भी लोगों क आस्था जुड़ी है। वर्ष 2015 में उप मंडल बिलासपुर के गांव रोलाहेड़ी से सरस्वती नदी के लिए खोदाई शुरू हुई थी। बता दे कि हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के सीएम ने आदिबद्री में 88 एकड़ में बनने वाले डैम के लिए 21 जनवरी को पंचकूला में एमओयू पर हस्ताक्षर किए है।
सोम व बरसाती नदियां से फसल नष्ट नहीं होगी
हर साल बाढ़ आने पर सोम व बरसाती नदियों उफान पर आती है। डैम का निर्माण होने से क्षेत्र के लोग बाढ़ की चपेट में आने से बच जाएंगे। हर साल बाढ़ में हजरों एकड़ फसल बर्बाद हो जाती है। लंबे समय से यहां के लोग इस तरह का नुकसान झेल रहे हैं। साथ ही पानी की किल्लत भी दूर हो जाएगी। यह भी बताया जा रहा है कि सिंचाई के लिए भी लोगों को इस योजना से पाइप लाइन के माध्यम से पानी की मिल सकता है। जिससे लोगों को लाभ होगा।
संस्कृत विभाग से डाक्टर मोहम्मद इसराइल खां ने सरस्वती को पौराणिक नदी रूप में लिख चुके हैं। उनके मुताबिक पुराणों का विषय बहुत ही विशाल एवं विस्तृत है। जीवन का कोई भी पहलू इनसे अछूता नहीं है। सरस्वती नदी गंगा की तरह दिव्य है। पृथ्वी पर वाडवाग्नि राक्षक ने उत्पाद मचाया हुआ था। भगवान विष्णु ने सरस्वती से प्रार्थना की वह राक्षक से सभी की रक्षा करें, मगर पिता बह्मा की आज्ञा बिना सरस्वती ने कहीं भी जाने से अस्वीकार कर दिया। तब विष्णु भगवान ने बह्मा से प्रार्थना कर सरस्वती को धरती पर जाने की अनुमति दी। स्वर्ग से हिमालय पर सरस्वती धरा पर आई। वेद, पुराण का अध्यन पर सरस्वती व अन्य नदियों के बारे में लिखा है।
ये धार्मिक मान्यता
पुराणों के मुताबिक सरस्वती विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई मैदानों से होती हुई अरब सागर में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है। वैदिक काल में इसमें हमेशा जल रहता था। सरस्वती नदी गंगा की तरह उस समय की विशालतम नदियों में से एक थी। उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल में सरस्वती नदी में पानी कम था, लेकिन बरसात के मौसम में इसमें पानी आ जाता था। भूगर्भी बदलाव की वजह से सरस्वती नदी का पानी गंगा में चला गया, कई विद्वान मानते हैं कि इसी वजह से गंगा के पानी की महिमा हुई, भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग (इलाहाबाद) में तीन नदियों का संगम माना गया, जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं।
महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाडिय़ों से आदिबद्री से निकलती थी। लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं। आदिबद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को ही लोग सरस्वती कह देते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय हैं। जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं और यह तालाब और झीलें अर्धचंद्राकार शक्ल में पाई जाती हैं। कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्धचंद्रकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। इसका इतिहास काफी पुराना है। बिलासपुर से साढौरा चंडीगढ़ जाने वाली पक्की सड़क पर बना पीडब्ल्यूडी का पुल भी सरस्वती के नाम से जाना जाता है।