बंद कमरे में हकीकत से दूर सरकारी नीतियां, इसलिए जल संकट गंभीर समस्या Panipat News
बंद कमरे में हकीकत से दूर जिस तरह से सरकारी पॉलिसी बन रही है उससे भावी पीढ़ी के लिए जल संकट जल्द नजर आएगा। ये बात जागरण विमर्श कार्यक्रम के दौरान सामने आईं।
पानीपत, जेएनएन। जल का अंधाधुंध दोहन जिस तरह से किया जा रहा है, दो-ढाई दशक के बाद भावी पीढ़ी के समक्ष जल संकट की गंभीर समस्या आ सकती है। बंद कमरे में हकीकत से दूर पॉलिसी जरूर बनती हैं वो कारगर साबित नहीं होती है। प्राकृतिक संसाधन जल को बचाने के लिए पॉलिसी में सुधार किया जाना चाहिए। सेक्टर 29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण के कार्यालय में सोमवार को जागरण विमर्श कार्यक्रम में यह बात जल सरंक्षण अभियान से जुड़े आर्य कॉलेज में वनस्पति विज्ञान संकाय के विभागाध्यक्ष डॉ. बलकार सिंह ने कही।
उन्होंने कहा कि शरीर में 70 फीसद जल होता है। जल की कमी होने पर शरीर अस्वस्थ हो जाता है। पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से भोजन तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया में 90 फीसद जल का उपयोग होता है। जल का स्तर धीरे धीरे कम हो रहा है। 70-80 फीट पर उपलब्ध होने वाला जल अब 250 फीट की गहराई तक पहुंच गया है। जल संरक्षण के लिए सरकार नीतियां तो बनाती है लेकिन वो समस्या का समाधान करने में कामयाब नहीं होती है। विज्ञापन पर पैसे खर्च करने से जल नहीं बचेगा। जल की समस्या को देखते हुए उसी के अनुरूप नीति बना उसे लागू किया जाए।
ऐसे बचाएं जल
नहर किनारे बनाएं रिचार्ज सिस्टम डॉ. बलकार ने सुझाव दिया कि जल बचाने का एक कारगर तरीका यह हो सकता है कि नहर के किनारे एक-दो किलोमीटर के अंतराल पर वाटर रीचार्ज सिस्टम बनाए जाएं। ज्यादा पानी आने की स्थिति में उसका शटर उठा कर रिचार्ज बोर में डाला जा सके।
-किसानों को इस शर्त पर ट्यूबवेल का कनेक्शन दिया जाए कि उनके खेत में भूजल रीचार्ज सिस्टम लगा होगा। छोटे किसानों के लिए दस-बीस एकड़ की भूमि पर सामूहिक एक वाटर रीचार्ज सिस्टम लगाया जाए। बड़े जमींदार स्वयं ऐसा सिस्टम लगवाएं।
-जीटी रोड और रेलवे स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थानों पर सामुदायिक रीचार्ज सिस्टम भी लगाया जा सकता है।
-गांव से शहर तक जहां सरकारी जल की आपूर्ति की जा रही है उस जगह पर अवैध सबमर्सिबल को बंद किया जाए। सफेदे के बजाय आम लगाएं डॉ. बलकार ने बताया कि सफेदे का एक पेड़ एक दिन में 150-200 लीटर पानी लेता है। आसपास की भूमि पर कुछ उगा नहीं सकते हैं। इसकी जगह आम का पेड़ लगाया जाए। 10-20 लीटर में ही काम चल जाता है। कोनोकॉर्प्स पौधे की डिमांड बढ़ रही है। ये पौधा भी सफेदे की तरह पानी लेता है।
मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका
रजापुर राजकीय स्कूल में कार्यरत अध्यापक ओमवीर जांगड़ा ने कहा कि स्लोगन के सहारे जल बचाने का जमाना अब नहीं रहा है। पंचायत में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम दिखाने के लिए लगे हैं। जल को वे नहीं बचा रहे हैं। मीडिया इस दिशा में महती भूमिका निभा सकती है।
ये प्रश्न पूछे गए
-जल बचाने में शिक्षाविद का रोल कितना है?
-नौकरशाही समस्या की जड़ है इसका समाधान क्या है।
-जल शक्ति मंत्रालय का प्रयास पानी बचाने में कितना कारगर होगा।