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गेहूं फसल की इन किस्‍मों में पीला रतुआ का अधिक खतरा, जानें कैसे बचाएं फसल

मौसम लगातार ठिठुरने पर मजबूर कर रहा है। तापमान में गिरावट से फसल को भी नुकसान है। क‍ृषि विभाग ने एडवाइजरी जारी की है। गेहूं की फसल में नमी से पीला रतुआ का खतरा मंडरा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह मानने को कहा गया है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 09:59 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 09:59 AM (IST)
गेहूं फसल की इन किस्‍मों में पीला रतुआ का अधिक खतरा, जानें कैसे बचाएं फसल
गेहूं की फसल में पीला रतुआ का खतरा।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। तापमान में गिरावट गेहूं की फसल में पीला रतुआ का कारण बन सकती है। संक्रमण की संभावना को देखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से एडवाइजरी जारी कर दी गई है। सभी खंड कृषि अधिकारी व कृषि विकास अधिकारियों अपने-अपने क्षेत्र के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही किसानों को भी सलाह दी जा रही है कि नियमित रूप से फसल की निगरानी करते रहें। यदि लक्षण दिखाई दें तो तुरंत कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें। कृषि विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले कई दिनों से कड़ाके की ठंड चल रही है। जिसके कारण मौसम में नमी है। यह नमी पीला रतुआ के संक्रमण के भी अनुकूल है। जनवरी माह के अंतिम सप्ताह व फरवरी के शुरुआती दौर में पीला रतुआ के संक्रमण की संभावना अधिक रहती है।

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यह है पीला रतुआ

यमुना नदी के साथ लगते जिलों में बीमारी के फैलने की संभावना अधिक बताई जा रही है। क्योंकि इन क्षेत्रों में नमी की मात्रा अधिक होती है। जानकारों के मुताबिक बीमारी फंगस के कारण फैलती है। नमी के दौरान यह फंगस और भी अधिक सक्रिय हो जाता है। बीमारी के दस्तक देने पर गेहूं के पौधों के पत्तों पर पीले का रंग का पाउडर देखा जाने लगता है। यह पाउडर लाइनों में होता है। धीरे-धीरे पत्ता सूखने लगता है और पत्ते सूख जाने के बाद प्रकाश संश्लेषण के क्रिया नहीं हो पाती जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे पूरा पौधा सूखने लगता है।

इन किस्मों में अधिक संभावना

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं की फसल में पीला रतुआ शुरुआती दौर में पैचेज में फैलता है। पौधों पर गोल दायरे में फैलता है। इसके बाद यह आगे खेत में फैल जाता है। गेहूं की पीबीडब्ल्यू 373, डब्ल्यूएच 147, पीबीडब्लू 550, एचडी 2967, डीबीड्ब्ल्यू 88, एचडी 3059, डब्लूएच 1021 और सी 306 किस्मों में पीले रतुआ का प्रकोप होने की संभावना ज्यादा रहती है। ये किस्में पीले रतुआ के लिए अति संवेदनशील हैं।

यह हैं लक्षण

पीला रतुआ की चपेट में आने के बाद फसल की पत्ती पर पीले पाउडर दिखाई देने लगता है। यह पीली पट्टियों में दिखाई देता है। कपड़े या कागज को रगड़ने पर यह रंग छोड़ देता है। इन दिनों खेत में जल भराव के कारण भी फसल में पीलापन आ सकता है। जरूरी नहीं है कि इसमें पीला रतुआ का संक्रमण हो।

चपेट में आने पर यह करें छिड़काव

पीला रतुआ आने पर प्रोपिकोनाजोल 25 फीसद ईसी एक मिलीलीटर, प्रति लीटर पानी में मिलाकर अथवा 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल 25 फीसद ईसी को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ प्रभावित फसल पर कोन अथवा कट नोजल से स्प्रे करवाएं। इस बीमारी को रोकने के लिए 200 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव करना आवयश्क है। रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए 15 से 20 दिन के अंतराल में दूसरा स्प्रे भी करें।


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