अलविदा: जानिए किसे कहते थे बास्केटबाल में एशिया का टाइगर, 10 साल रहे इंडिया टीम के कैप्टन
ओमप्रकाश ढुल नहीं रहे। बास्केटबाल में एशिया का टाइगर कहे जाने वाले ओमप्रकाश हरियाणा के जींद में रहते थे। अर्जुन अवार्ड और भीम अवार्ड के अलावा राष्ट्रपति ने विशिष्ट सेवा मेडल से किया था सम्मानित। जींद के गांव ईक्क्स में अंतिम सांस ली।
जींद, जागरण संवाददाता। बास्केटबाल के मैदान पर विरोधियों को छकाने वाले एशिया का टाइगर नहीं रहा। जींद के गांव ईक्कस निवासी अर्जुन अवार्डी ओमप्रकाश ढुल का निधन हो गया। बुधवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। पूरे गांव-गुहांड के लोगों ने शोकाकुल माहौल में उन्हें अंतिम विदाई दी। ओमप्रकाश ढुल ने लगातार 10 वर्ष तक इंडिया टीम का प्रतिनिधित्व किया। उनकी अगुआई में टीम इंडिया 1975 में एशिया की टाप स्कोरर भी रही।
गांव ईक्कस के निवर्तमान सरपंच हरपाल ढुल ने बताया कि वर्ष 1962 में गांव के युवाओं में खेलों के प्रति खूब जुनून था। गांव के मास्टर ओम सिंह उस समय संयुक्त पंजाब की कबड्डी टीम के कप्तान थे। ओमप्रकाश भी उन्हीं से प्रेरित होकर खेलों के दम पर आर्मी में भर्ती हुए। आर्मी में बास्केटबाल व वालीबाल खेलना शुरू कर दिया। सेना के मेजर ने उनकी शारीरिक बनावट और अच्छी कद-काठी को देखकर सिर्फ एक गेम बास्केटबाल खेलने के लिए प्रेरित किया।
एशिया के स्टार खिलाड़ी बन गए
मेजर के कहने पर ओमप्रकाश ने बास्केटबाल के मैदान पर कदम तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक तरह से कहा जाए तो उनकी कहानी भी मिल्खा सिंह की तरह ही है। आर्मी में ही बास्केटबाल के गुर सीखे और इतनी ज्यादा मेहनत की कि दो साल में ही बास्केटबाल की इंडिया टीम के सदस्य बन गए। देखते ही देखते वह बास्केटबाल में एशिया के स्टार खिलाड़ी बन गए।
12 साल तक देश पहले स्थान पर रहा
ओमप्रकाश ढुल ने लगभग दो दशक तक सेना में सेवाएं दी। सेना की तरफ से खेलते हुए उनकी टीम लगातार 12 साल तक देश में पहले स्थान पर रही। सेना में रहते हुए वह 1970 से 80 तक इंडिया टीम में भी खेले। केंद्र सरकार ने 1979-80 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। इसके बाद हरियाणा सरकार ने भी उन्हें भीम अवार्ड से सम्मानित किया।
इन्हें बास्केटबाल का टाइगर कहा जाने लगा
ओमप्रकाश ढुल दस साल तक इंडिया बास्केटबाल टीम के हीरो रहे। उनकी खासियत यह थी कि वह दोनों हाथों से गोल करते थे। इसी कारण गेंद उनके हाथों में आ जाती थी तो सीधे गोलपोस्ट में ही जाती थी। करीब 6 फुट 2 इंच लंबे ओमप्रकाश को साथी खिलाड़ी व खेलप्रेमी बास्केटबाल का टाइगर कहते थे।
आर्मी से रिटायर होने के बाद हरियाणा में कोच बने
1985 में उन्हें राष्ट्रपति ने विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया था। आर्मी से रिटायर होने के बाद उन्होंने हरियाणा के खेल विभाग में बास्केट बाल के कोच के तौर पर भी सेवाएं दी। जब उन्हें अर्जुन अवार्ड मिला, तब गांव ईक्कस ही नहीं पूरे जिले में जोश था।
कैंसर से जीती थी जंग
ओमप्रकाश ने गांव में बास्केटबाल का ग्राउंड तैयार करके युवाओं को इस खेल के गुर सिखाए। काफी खिलाड़ी उनसे सीखकर आगे बढ़े और एनआईएस से डिप्लोमा लेकर खेल विभाग, पुलिस व आर्मी में सेवाएं दे रहे हैं। उनके दोनों बेटे जितेंद्र व यशपाल भी बास्केटबाल के नेशनल लेवल के खिलाड़ी रहे। करीब दो दशक पहले उन्हें गले में कैंसर हो गया था। अपनी जीवटता से उन्होंने कैंसर को भी मात दे दी थी। लेकिन अब आखिरी दिनों में फेफड़े खराब होने से शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। उनके निधन पर पूरे गांव सहित खेल प्रेमियों में गहरा शोक है।