सब सुन रहे हैं कीर्ति के हौसले की 'कीर्ति', कुछ ऐसी है होनहार बेटी के संघर्ष की कहानी Panipat News
हरियाणा की बेटी ने एड़ी कटने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। जीवन से संघर्ष किया। रिंग में उतरी और विरोधियों को परास्त कर चैंपियन बनी।
पानीपत, [विजय गाहल्याण]। मन में यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो शारीरिक अक्षमता भी सफलता की राह नहीं रोक पाती। ऐसा ही उदाहरण पेश कर रही हैं हरियाणा स्थित पानीपत की कीर्ति। 2014 में बुआना लाखू गांव की होनहार बेटी कीर्ति के पैर की एक एड़ी ट्रैक्टर से कुचल गई। बॉक्सिंग के रिंग में चीते सी फुर्ती के साथ विरोधियों को परास्त करने वाली कीर्ति के लिए यह समय बहुत ही दुखदायी साबित हुआ।
डॉक्टरों ने सर्जरी के बाद हिदायत दी कि अब वह कभी नहीं खेल पाएगी। एड़ी पर दबाव पड़ा तो वह फिर से टूट जाएगी। पिता संजय के पास बेहतर इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे। हालात से समझौता कर कीर्ति ने घुट-घुटकर जीना सीख लिया, मगर दिल में बॉक्सिंग में नाम कमाने की चाहत कम नहीं हुई।
आगे बढऩे की जिद और कोच का हौसला आया काम
कीर्ति के कोच सुरेंद्र के लिए भी यह स्थिति अत्यंत चुनौतीपूर्ण थी। हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कीर्ति का हौसला बढ़ाते रहे। आगे बढऩे की जिद और कोच के हौसले का असर ही था कि कीर्ति ने वह कर दिखाया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय फलक तक न केवल उन्होंने प्रतियोगिताओं में भाग लिया, बल्कि पदकों से झोली भी भर ली। 17 से 22 नवंबर तक दिल्ली में हुई 65वीं स्कूल नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 54 से 57 किलोग्राम में तो उसने पांच बॉक्सरों को नाकआउट कर स्वर्ण पर कब्जा जमाया। इसी के दम पर कीर्ति का चयन नेशनल बॉक्सिंग एकेडमी रोहतक में हुआ है। आइटीबीपी ने भी कीर्ति के हुनर को पहचाना और दिल्ली के द्वारका में 11वीं कक्षा की मुफ्त में पढ़ाई का इंतजाम कराया।
रजनी से ली प्रेरणा, ट्यूशन से बंक मारकर पहुंची रिंग में
कीर्ति ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में गांव की अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर रजनी के जच्बे को सराहा। रजनी को बॉक्सिंग करते देख वह भी रिंग में उतरी। उसने ट्यूशन से बंक मारा और रिंग में अभ्यास के लिए चली गई। पता चलने पर पिता ने डांटा, मगर मां ने साथ दिया। उसने पहली ही स्कूली प्रतियोगिता में पदक जीता तो पिता ने खेलने की अनुमति दे दी। स्पैट में भी चयन हुआ और 1200 रुपये प्रति महीने की आर्थिक मदद भी मिली। इससे खुराक का प्रबंध हुआ और सफलता भी मिली।
लड़कों की तरह रहना पसंद, पंजे के बल करती हैं अभ्यास
बॉक्सिंग कोच सुरेंद्र मलिक ने बताया कि 2014 में ट्रैक्टर की चपेट में आने से कीर्ति ने पैर की एड़ी गंवा दी। वह पंजे के बल हर रोज छह घंटे अभ्यास करती है। वह मजबूत पंच से विरोधी बॉक्सर को नाकआउट कर देती है। कीर्ति को लड़कों की तरह रहना पसंद है। पहले उसके पहनावे पर लोग तंज कसते थे, मगर उस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वह कामयाबी होती चली गई।