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पिता ने हुनर तराशा तो फर्श से अर्श पर पहुंची बेटी, लगा दी मेडल की झड़ी Panipat News

अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी गगनजोत कौर गिल ने ताइक्वांडो में मुकाम हासिल किया है। अंबाला की रहने वाली गगनजोत ने हाल में हुए इंटरनेशनल इवेंट में मेडल जीता।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 02:44 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 05:37 PM (IST)
पिता ने हुनर तराशा तो फर्श से अर्श पर पहुंची बेटी, लगा दी मेडल की झड़ी Panipat News
पिता ने हुनर तराशा तो फर्श से अर्श पर पहुंची बेटी, लगा दी मेडल की झड़ी Panipat News

पानीपत/अंबाला, जेएनएन। पांच साल की उम्र में गगनजोत कौर गिल ने सपना देखा कि इंटरनेशनल लेवल पर पदक जीतना है, जो अब पूरा हुआ है। नेपाल में हुई ताइक्वांडो की इंटरनेशनल इवेंट में गगनजोत कौर ने सिल्वर मेडल जीता है। इंटरनेशनल लेवल पर उनका यह पहला पदक है, जबकि इस में साउथ एशिया के सात देशों के खिलाडिय़ों ने भाग लिया। सपना ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का है, जिसके लिए वे तैयारी कर रही हैं। पिता जसबीर सिंह गिल भी ताइक्वांडो खिलाड़ी रहे हैं। उनके चाचा जगदीप सिंह से ताइक्वांडो की बारीकियां सीखी हैं। स्कूल से ही खेलों के प्रति दीवानगी ऐसी रही कि जब तक 24 पदक अपने नाम कर चुकी हैं। 

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  • परिचय
  • नाम : गगनजोत कौर गिल
  • शिक्षा : बीए 
  • पिता का नाम : जसबीर सिंह गिल
  • कोच का नाम : जगदीप सिंह 
  • पहला पदक : छह साल की उम्र में स्कूल स्टेट में गोल्ड जीता
  • अब तक कितने पदक जीते : नेशनल लेवल तक 24 पदक, इंटरनेशनल लेवल पर एक पदक 
  • लक्ष्य : ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड जीतना। 

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ताइक्वांडो खेल के प्रति दिलचस्पी कैसे बढ़ी?

पिता जीत को ताइक्वांडो खेलते देखा, तो उन्होंने भी जिद की वे भी इसी खेल में आगे बढऩा चाहती हैं। ताइक्वांडो की पहली शिक्षा पिता जी ने ही दी थी। धीरे-धीरे इस में भाग लेना शुरू किया और काफी लंबा रास्ता तय कर लिया है। मंजिल (ओलंपिक) तक अभी पहुंचना बाकी है। वह भी जरूरत हासिल कर लूंगी।

अब तक कितने पदक जीत चुकी हैं और पहला पदक कब जीता था?

पांच साल की उम्र में ताइक्वांडो सीखना शुरू किया था। कुछ साल बाद ही स्कूल स्टेट गेम्स में गोल्ड मेडल जीत लिया था। इसके बाद कई प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज की और पदक जीते। नेशनल लेवल पर अब तक 14 गोल्ड, सात सिल्वर और चार कांस्य तक जीते हैं। अब ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना है। 

शिक्षा के साथ-साथ खेलों को कैसे मैनेज किया ?

शिक्षा के साथ खेलों में सामंजस्य बैठाने के लिए काफी परेशानी हुई। कई बार पेपर छोडऩा पड़ा और आगामी साल में इसे क्लीयर किया। कई बार पेपर के लिए प्रतियोगिता को छोडऩा पड़ा। दिक्कतें तो आईं, लेकिन इसके लिए काफी संघर्ष किया। संघर्ष का ही परिणाम  है कि इंटरनेशनल लेवल पर पदक जीता है। 

खेल के दौरान होने वाली इंजूरी से कैसे निजात पाई, जबकि अंबाला में व्यवस्था नहीं है ?

प्रेक्टिस या प्रतियोगिता के दौरान चोट भी सामने आई हैं, लेकिन इसके लिए अपने स्तर पर ही काबू पाया। कभी प्राइवेट फिजियो का सहारा लेना पड़ा, तो कभी स्‍पोट्र्स इंस्टीट्यूट के प्रशिक्षकों का सहारा लेना पड़ा। काफी दिक्कत आई तो लेकिन यह सौभाग्य ही कहें कि चोट जल्द ही ठीक हो गई और मैदान में फिर उतर गए। 


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