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लोगों में पौधे लगाने की चाह, देखरेख की अभाव में नहीं पनपते

लोगों में पौधे लगाने की चाह तो है मगर शहर में जगह और सार्वजनिक स्थानों पर देखरेख के अभाव में पौधे पेड़ नहीं बन रहे हैं। गांवों में गार्ड ट्री न होने बेसहारा पशुओं के चरने और खेतों में पड़ोसी द्वारा पेड़ों को नुकसान पहुंचाने के कारण सामने आए हैं। पेड़ लगाने व उनकी देखभाल करने में किशोरावस्था छात्र जीवन और सेवानिवृत्त लोग सबसे आगे मिले। नौकरी काल और परिवार में उलझे लोगों के पास जीवन के इस आधार के लिए समय नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 08:14 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 06:16 AM (IST)
लोगों में पौधे लगाने की चाह, देखरेख की अभाव में नहीं पनपते
लोगों में पौधे लगाने की चाह, देखरेख की अभाव में नहीं पनपते

कपिल पूनिया, पानीपत

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लोगों में पौधे लगाने की चाह तो है मगर जगह और सार्वजनिक स्थानों पर देखरेख के अभाव में पौधे नहीं बन रहे हैं। गांवों में गार्ड ट्री न होने, बेसहारा पशुओं के चरने और खेतों में पड़ोसी द्वारा पेड़ों को नुकसान पहुंचाने के कारण सामने आए हैं। पेड़ लगाने व उनकी देखभाल करने में किशोरावस्था, छात्र जीवन और सेवानिवृत्त लोग सबसे आगे मिले। नौकरी काल और परिवार में उलझे लोगों के पास जीवन के इस आधार के लिए समय नहीं है।

पेड़ जीवन का आधार हैं। जीवन के इस आधार को संवारने में शहर के लोगों की रूचि जानने के लिए जागरण ने करीब सौ लोगों से बात की। सर्वे में 20 से 65 वर्ष तक के सरकारी और प्राइवेट नौकरी पेशा, छात्र, युवा, दुकानदार, सेवानिवृत्त और गृहिणी को शामिल किया गया। ये लोग अलग-अलग पेशे से हैं। करीब 90 फीसद लोगों ने अपने जीवन काल में पौधे लगाए हैं। पेड़ लगाने और उसकी देखभाल करने के लिए सबसे अधिक रूचि छात्र जीवन में देखने को मिली। पानीपत औद्योगिक नगरी है। यहां अन्य प्रदेशों के लोग भी काफी मिले। शहरी लोगों ने बताया कि शहर में जगह का अभाव है। वह गमलों में होने वाले छोटे फूल वाले पौधे तो लगाते हैं, लेकिन बड़े पेड़ नहीं लगा पाते। वहीं, कुछ ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर पेड़ लगाए, लेकिन देखरेख के अभाव में करीब 80 फीसद पौधे पनप नहीं पाए। गांव के लोगों ने बताया कि घर और घेर में तो पौधों की देखरख करके उन्हें बड़ा कर लिया गया, लेकिन गांव के बाहर और खेतों की मेड़ पर लगाए गए पौधे बेसहारा पशुओं तथा पड़ोसी किसान को भाते नहीं हैं।

औषधीय पौधे व फलदायी पौधे नहीं मिलते

सर्वे में लोगों ने बताया कि कोरोना काल में औषधीय पौधों का महत्व समझ आ रहा है। औषधीय और फलदायी पौधों की उपलब्धता नहीं होती। वन विभाग की ओर से भी गिनी-चुनी प्रजातियों के पौधे ही वितरित किए जाते हैं। ऐसे में लोगों की रूचि कम हो रही है।

ट्री गार्ड मिले तो पनपें पौधे

पौधे मजबूत होने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ट्री गार्ड न होना है। जिले में काफी संख्या में बेसहारा पशु हैं। राजस्थान से भी पानीपत में पशुओं का आना-जाना रहता है। बेसहारा पशुओं का यह झुंड जहां से गुजरता है, वहां छोटे पौधे नष्ट हो जाते हैं। ट्री गार्ड से इन पौधों को पेड़ होने तक बचाया जा सकता है।

10 पैसे में लगाया पौधा, सात साल बाद 6600 में बिका

पानीपत में चाय की दुकान चलाने वाले उप्र. के उन्नाव जिले के ब्लॉक सुमेरपुर निवासी अनिल कुमार ने बताया कि वर्ष 1984 में स्कूली दिनों में अपने दोस्त के साथ मिलकर सफेदे के दो पौधे लगाए थे। तब ब्लॉक से 10 पैसे प्रति पौधा मिला था। दोनों पौधे तालाब के किनारे घेर में लगाए। दोनों पौधों की लगातार देखभाल की तो पनपते रहे। एक पेड़ सीधा और काफी मोटा होता गया, जबकि दूसरा पेड़ उस तरह नहीं बढ़ पाया। सात साल बाद लकड़ी ठेकेदार को एक अच्छा वाला पेड़ बेचा तो उसके 6600 रुपये मिले। उस समय में यह अच्छी रकम थी। स्वजनों को रुपये दिए तो खुशी हुई।


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