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जिद से अखाड़े पहुंची बेटी, गाय का दूध ही खुराक, जापान में जीता सोना

तानों को नजरअंदाज कर चढ़ी सफलता की सीढ़ी। आर्थिक तंगी के बावजूद बेटी ने कुश्‍ती खेलना जारी रखा। खुराक न होने पर केवल गाय के दूध से काम चलाया। भाई भी बैडमिंटन में हो रहा सफल।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 05:33 PM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 07:16 PM (IST)
जिद से अखाड़े पहुंची बेटी, गाय का दूध ही खुराक, जापान में जीता सोना
जिद से अखाड़े पहुंची बेटी, गाय का दूध ही खुराक, जापान में जीता सोना

पानीपत [विजय गाहल्याण] । खेल का मैदान भी नहीं था। खुराक के लिए रुपयों की कमी थी। लोग तंज भी कसते थे। इनकी परवाह न करते हुए मजदूरी कर और लोन लेकर बेटी व बेटे को खेलों का चैंपियन बना दिया। पट्टीकल्याणा के सतीश पांचाल और आइओसीएल रिफाइनरी के केमिस्ट चंद्रदत्त को जो पहले ताने मारते थे, आज उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं।

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सतीश की बेटी कोमल पांचाल ने 16 नवंबर को जापान में अंडर-15 गर्ल्‍स कुश्ती एशियन चैंपियनशिप में 36 किलोग्राम में स्वर्ण पदक जीता है। वहीं राघव 21 से 24 नवंबर को बड़ौदा में सीबीएसई नेशनल बैडमिंटन चैंपियनशिप में दमखम दिखाएगा।

घर चलाना मुश्किल हो रहा है, बेटी को कुश्ती से मना नहीं कर पाया
मजदूरी करने वाले सतीश पांचाल की चार बेटी व एक बेटा है। तीसरे नंबर की बेटी कोमल ने अखाड़ा जाने की जिद की। पत्नी कुसुम ने घर की आर्थिक स्थित कमजोर होने की बात कहकर मना कर दिया। दो दिन बेटी ने खाना नहीं खाया और कहती रही कि उसे खुराक के लिए बादाम की जरूरत नहीं है। गाय के दूध से ही काम चला लेगी। बेटी की जिद को देख उसने साथ दिया और अखाड़े भेज दिया। कोच कृष्ण, अमित और ङ्क्षरकू ने बेटी को ट्रेनिंग  दी। दो साल में अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर एक-एक और राज्य स्तर पर पांच स्वर्ण पदक जीत चुकी है। उसे बेटी पर नाज है।

बेटी सरकारी स्कूल में ही पढ़े
कुसुम ने बताया कि बेटी कोमल गांव के राजकीय कन्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल की नौवीं कक्षा में पढ़ती है। वह भी वहीं पर मिड डे मिल बनाती है। उसकी बेटी को अब निजी स्कूल वाले फ्री में शिक्षा दिलाना चाहते हैं, लेकिन उसकी इच्छा है कि बेटी सरकारी स्कूल में ही पढ़े, ताकि अन्य बेटियों भी उसकी तरह खेलों में आगे बढ़े।

लोन लेकर बेटे को दिलाई ट्रेनिंग
रिफाइनरी टाउनशिप में रहने वाले चंद्रदत्त ने बताया कि बड़ी बेटी आकांक्षा बैडमिंटन की स्टेट चैंपियन है। बेटी को देख बेटा राघव (14) भी बैडमिंटन का अभ्यास करने लगा। मैदान सही नहीं था और न ही सुविधा थी। नौकरी की कमाई से घर का गुजारा मुश्किल हो रहा था। इसलिए बैंक से लोन लेकर उसने बेटे राघव को बहादुरगढ़ की बैडमिंटन एकेडमी में अभ्यास के लिए छोड़ा। बेटे की ट्रेनिंग पर हर महीने 30 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। राघव राज्य व राष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिता में पांच पदक जीत चुका है। अभ्यास में खलल न पड़े, इसलिए बेटा व बेटी को मोबाइल फोन और टीवी से दूर रखता हूं। पत्नी वीना ने भी साथ दिया। अब बेटे को कामयाबी मिल रही है।


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